पंकज घिल्डियाल
पढ़ी हुई बातें शायद हम कुछ समय में भूल जाएं, मगर अपनी आंखों के सामने इतिहास के पन्नों को पलटते हुए देखना वाकई बहुत रोमांचक होता है। चलते हैं अतीत के कुछ अनोखे यातायात साधनों के सफर पर...
वीकेंड में परिवार के साथ कहीं बाहर सैर-सपाटे पर जाने का मन था। कहां जाना है, यह तय नहीं था। इंटरनेट पर काफी कुछ खंगालने के बाद वहीं गिने-चुने डेस्टिनेशन मुंह चिढ़ा रहे थे, जहां में कई बार जा चुका हूं। लम्बे वीकेंड के बावजूद बस सोचते-सोचते ही समय निकल गया। अब बचा था सिर्फ रविवार का दिन। आज तो सुबह ही सोच लिया था कि आज तो कहीं न कीं निकल ही जाना है। एक घंटे के भीतर प्रोग्राम बना और अपने परिवार के साथ मैंने हेरिटेज ट्रांसपोर्ट म्यूजियम का रूख किया।
दोस्तों से यहां के बारे में कई बार सुन चुका था और दिमाग में था कि यह म्यूजियम कहीं गुड़गाव के आसपास है, मगर यह गुड़गांव से काफी दूर निकला है। दिल्ली से लगभग 70 किमी. की दूरी पर है यह खूबसूरत म्यूजियम। दिल्ली से निकलते हुए पहला टोल पार किया। गाड़ियों की लम्बी कतार में काफी वक्त लग गया। टोल की 60 रुपए चुकाने के बाद हम महज 30 मिनट्स में म्यूजियम के प्रवेश द्वार पर थे। एनएच 8 हाइवे में बिलासपुर चौक पर म्यूजियम का बोर्ड काफी राहत देता दिख। यहां से म्यूजियम की दूरी यही कोई से 10 किलोमीटर है। इस डायेरक्शन बोर्ड के लिए वीकेंड्स पर एक आदमी तैनात किया जाता है।
बहरहाल मुझे म्यूजियम काफी पहले ही दिखने लगा था। म्यूजियम की तस्वीरें मैं पहले ही गूगल में सर्च कर चुका था। म्यूजियम के भीतर जाते ही बाईं ओर पार्किंग है। यहां पहुंचने में हमें करीब 2 घंटे लग चुके थे। समय दोपहर का कोई 1.30 बज रहा था। उस दिन सर्दियों के इस मौसम में धूप अच्छी खिली थी। हमें लगा कि टिकट काउंटर यहीं कहीं गेट के पास होगा, लेकिन ऐसा नहीं था। टिकट विंडो तो कहीं दिखी नहीं अलबत्ता एक खूबसूरत ट्री जरूर दिखाई दिया। यह पेड़ नहीं, बल्कि आप इसे सिग्नल ट्री कह सकते हैं। इस ट्री में रोड के सभी सिग्नल चमकते रहते हैं, जो देखने में बेहद खूबसूरत दिखाई देते हैं। परिवार के दूसरे लोगों ने सेल्फी लेनी शुरू कर दी। मैं हमेशा की तरह अपने पंसदीदा डीएसएलआर कैमरे के साथ था।
जो लोग फोटोग्राफी को एन्जॉय करना जानते हैं, उनके लिए ऐसी जगहें जन्नत से कम नहीं। आपको अलग-अलग व्यू मिलते हैं। अलग-अलग एंगल और खूबसूरत गाड़ियां। यहां फोटोग्राफी की कोई मनाही भी नहीं है।
ट्री के बगल में ही ट्रॉम का एक कोच भी है। पास खड़े म्यूजियम कर्मचारी ने बताया कि यह ट्रॉम हाल-फिलहाल में कोलकाता से लाया गया है। इसके भीतर जाने की इजाजत है। लकड़ी की बनी सीट्स उसके भीतर की बनावट शानदार है। ट्रॉम के ड्राइवर सेक्शन में स्टेयरिंग आदि देख आपको अच्छा लगता है। हम लोग हंसते-हंसते लोटपोट भी हुए जब कुछ कपल्स डीडीएलजे जैसी फिल्मों में ट्रेन के साथ वाले पोज बनाने की कोशिश करते दिखे। इसके बाद आगे बढ़ने पर हमने पुराने जमाने के इंजन भी देखे। पता चला कि इन्हें 26 जनवरी, 15 अगस्त जैसे खास मौकों पर ही चलाया जाता है।
हम म्यूजियम के मुख्य द्वार की ओर बढे़। शीशे के गेट से आपको अंदाजा हो जाएगा कि आप वाकई ट्रांसपोर्ट म्यूजियम में आए हैं। गेट खोलने बंद करने के लिए बाइक के हैंडल का इस्तेमाल किया गया है। इस म्यूजियम में प्रवेश करते ही सबसे अच्छी बात यह लगी कि यह पूरी तरह से एयर कंडीशंड है। आप अपने बच्चों के साथ गर्मियों में भी बेफिक्र होकर आ सकते हैं।
आपको मुख्य द्वार से भीतर आते ही सामने एक लाल रंग की गाड़ी दिखाई देगी। यह महज गाड़ी नहीं, बल्कि म्यूजियम का आनोखा टिकट काउंटर है। बड़ों के लिए जहां 400 रुपए का टिकट रखा गया है, वहीं बच्चों के लिए 200 रुपए का टिकट है। पूरे म्यूजियम को घूमने के लिए आपको करीब 3 घंटे का समय लगता है।
टिकट काउंटर के बाईं ओर कैफेटेरिया भी है, जहां स्नैक्स का आनंद लेने के बाद म्यूजियम का सफर तय किया जा सकता है। यहीं आप उस मारुति 800 कार को भी देखेंगे, जो सबसे पहले 1983 में लॉन्च हुई थी। इसी के करीब गणेश जी की एक ऐसी मूर्ति भी है, जो आपको अपनी ओर आकर्षित करती है। इसकी खास बात यह है कि इसे गाड़ियों के ही पुर्जों से तैयार किया गया है।
टिकट खरीदते ही आपको एक ऑडियो सिस्टम भी दिया जाता है। एक छोटे से रिमोट के आकार का यह ऑडियो सिस्टम काफी उपयोगी है। इसमें जो भी नम्बर दबाएंगे, उस नम्बर के मॉडल से संबधित सभी जानकारी आप सुन पाएंगे। यह एक तरह का ऑडियो गाइड आपके साथ पूरे म्यूजियम में चलता है। इस म्यूजियम को विदेशी म्यूजियम की तर्ज पर तैयार किया गया है, जहां अधिकतर मॉडल्स को खुला रखा गया है ताकि आप करीब से इन्हें देख सकें। जब भी यहां आप जाएं तो ध्यान रखें म्यूजियम के भीतर किसी भी वस्तु को न छुएं। पग-पग पर सिक्योरिटी गार्ड आप पर नजर रखते हैं।
म्यूजियम में एक शख्स लोगों के पास जा जाकर उनके फीडबैक लेते दिखे। मैंने पास खड़े एक सिक्योरिटी गार्ड से पूछा तो पता चला कि ये तरुण ठकराल हैं और यही म्यूजियम के फाउंडर हैं। मन में उनसे बातचीत करने उत्सुकता जगी और मैं बिना किसी झिझक के उनके पास जा पहुंचे। तरुण ठकराल कहते हैं, ‘अन्य लोगों की तरह मुझे भी विंटेज और क्लासिक कारों का शौक है। विभिन्न रैलियां ही ऐसा मौका होती, जब देश भर के विंटेज कार कलेक्टर एक साथ मिलते और लोगों को ये देखने को मिलतीं। मेरा यह सपना था कि ऐसा एक म्यूजियम हो जहां महज कारें ही नहीं, बल्कि इतिहास बन चुके वे सभी यातयात के साधान जैसे तांगा, पालकी आदि हों। म्यूजियम में हर समाज के हर वर्ग के लोगों को खुश होने का मौका दे और 5 साल पहले मेरा यह सपना पूरा हो गया। यहां आज जो भी आप देखकर जाएंगे, तीन से चार महीने में बदला हुए पाएंगे।’
म्यूजियम के मुख्य आकर्षण
पैलेस ऑन व्हील: यहां पैलेस ऑनल व्हील के उस कोच को आप देख सकते हैं, जो अपने शुरुआती समय में था। टिकट पंचिंग मशीन, सिक्का डालकर कॉल करने वाले फोन से लेकर पूरा स्टेशन का लुक दिया गया है।
मारुति की जिप्सी: ‘दिल तो पागल है’ फिल्म में शाहरूख खान ने इस गाड़ी को चलाया था। यह मारुति की जिप्सी है, जिसे मॉडिफाई करवाया गया है।
तिपहिया कार: 1978 की यह तिपहिया कार आकर्षक है। सिंगल सिलेंडर और 198 सीसी की इस कार का नाम है बादल।
बच्चों के लिए एक्टिीविटीज: म्यूजियम के अलावा यहां बच्चों के लिए बहुत सी एक्टिीविटीज भी हैं। पंतग उड़ना, गाड़ी को पेंट कर चित्रकारी करना, ऊंटगाड़ी की सैर आदि। हां इसके लिए आपको अलग से शुल्क चुकाना पड़ता है।
म्यूजियम का समय: सुबह 10 से शाम 7 बजे तक। वीकेंड पर अच्छी खासी चहल पहल। सोमवार को म्यूजियम बंद रहता है।
कैसे पहुंचे: दिल्ली से यहां की दूरी करीब 70 किमी है। एनएच 8 पर आपको सीधा चलते रहना है। बिलासपुर चौक से बांए मुड़ना होगा। यहां आप हेरिटेज ट्रांसपोर्ट म्यूजियम का बैनर एक ऐरो देख सकते हैं। यहां से करीब 9 किलोमीटर दूर तावड़ू रोड पर है म्यूजियम।
गूगल मैप: बेहतर होगा आप हैरिटेज ट्रांसपोर्ट म्यूजियम लिखकर गूगल पर यहां पहंुचाने का जिम्मा सौंप दें और खुद निश्चिंत रहें।