"वृन्दावन दर्शन और गोरधन परिक्रमा"
श्री वृन्दावन धाम या यों कहे श्री कृष्ण का वृन्दावन धाम, वो पावन स्थली जहाँ स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने अपनी बाल लीलाएँ की, यहाँ की रज में लोटपोट हुए, बृज की गलियों में खेले और उन सभी लीलाओं को सुन भक्त आज भी मंत्रमुग्ध हो जाते है। और राधे राधे कहते चले आते है इसी बृज, वृन्दावन की गलियों में और अपना सब कुछ श्याम सुंदर और राधा रानी को समर्पित कर उन्ही के हो जाते है।
श्री राधे।।
हमारा सफर 21 फरवरी 2020 शुक्रवार को शुरू हुआ दिल्ली से, आप भी अगर दिल्ली से या दिल्ली के आस पास रहते है या दूर भी रहते है और वृन्दावन आना चाहते है तो भारतीय रेल सबसे उत्तम साधन है और आस पास वालों के पास अपनी गाड़ी हो तो और भी अच्छा। यहाँ आकर रहने के लिए आप धर्मशालाओं या फिर होटल्स में रह सकते हैं, जैसी आपकी श्रद्धा हो। सब कुछ आपके जेब खर्च के अंदर ही रहेगा।,
22 फरवरी 2020 शनिवार की सुबह लगभग 6 बजे हम बरसाना पहुँचे, श्री राधा रानी के मंगला दर्शन करने, श्री मान महल की सीढ़ियाँ चढ़ने (श्री राधा रानी महल), आनंद आ गया। सुबह- सुबह जब सूर्य देव भी उगने की प्रतीक्षा में थे तब का वो मनोरम वातावरण और श्री राधा रानी के दर्शन, चित्त मानो वही रम गया हो। श्री बृज महारानी के दर्शन के पश्चात हम धर्मशाला आये और गोवर्धन परिक्रमा को जाने से पहले तैयार हुए और नाश्ता किया क्योंकि अब तो भोजन परिक्रमा के बाद ही मिलना था।
गोवर्धन परिक्रमा शुरू करने से पहले एक बार भोजन कर लें, बाकी आपकी श्रद्धा है करना न करना और परिक्रमा मार्ग में भी हल्के फुल्के भोज्य पदार्थ मिल जाते है। परिक्रमा शुरू करने के बाद हम श्री गया प्रशाद जी महाराज की समाधि स्थली के दर्शन को गए, समाधि स्थल परिक्रमा मार्ग में ही आता है। हम श्री गोवर्धन जी की तलहटी वाले मार्ग से परिक्रमा कर रहे थे, ये 19 कि.मी. की परिक्रमा है और सड़क के रास्ते 22 कि.मी. , रास्ते में बहुत से श्रद्धालु दिखे जो परिक्रमा लगा रहे थे।
श्री गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा भक्तजन के तरीकों से लगते है कुछ पैदल परिक्रमा, तो कुछ दण्डौती परिक्रमा(लेट के परिक्रमा), कुछ 108 परिक्रमा तो कुछ 108 से भी ज्यादा परिक्रमा वो भी दण्डौती परिक्रमा देते है, कुछ संत भक्त आपको रास्ते में वो भी मिलेंगे जो 3 या 4 साल या उस से भी ज्यादा समय से परिक्रमा दे रहे है। शायद आप दुबारा 1 साल बाद योजना बनाए परिक्रमा देने की तो हो सकता है जो आपको आपकी पहली परिक्रमा में मिले थे वो आपको दुबारा मिल जाएँ। समान स्थान से बस कुछ दूरी पर और हाँ बहुत से श्रद्धालु वाहनों से भी परिक्रमा लगाते है मेरी भी पहली परिक्रमा तो ऐसी ही थी। इस बार पैदल परिक्रमा है भक्तों के समूह के साथ, इसका भी एक लाभ भी है, उत्साह बना रहता है और ध्यान भगवान की तरफ रहता है ।
परिक्रमा मार्ग में श्री मुखारविंद, श्री नाथ जी मंदिर, जतीपुरा, श्री राधा कुंड, श्री श्याम कुंड, कुसुम सरोवर, श्री नारद कुंड इत्यादि पावन स्थलियों के दर्शन करते हुए रात्रि 10 बजे हमारी परिक्रमा पूरी हुई। हालांकि थकान बहुत थी लेकिन परिक्रमा का अनुभव उस थकान पे भारी था। रात्रि का भोजन ले हम सब विश्राम करने लगे और आनंदमयी निद्रा में लीन हो गए। क्योंकि सुबह हमें श्री वृन्दावन धाम के दशर्न को जाना था।
23 फरवरी 2020 रविवार की सुबह हम सभी वृन्दावन को निकले बस को पार्किंग में लगवा कर पहले वृन्दावन के राजा श्री बाँके बिहारी जी के दर्शनों को गए, बहुत भीड़ के बाद भी बिहारी जी ने सबको दर्शन दिए। एक बात का ध्यान रखे वृन्दावन के बंदरो से सावधान रहें ये गोवर्धन के बंदरो की तरह शांत नहीं होते इसलिए खाने पीने की वस्तु, मोबाइल, चश्मे इत्यादि का ध्यान रखें और अगर ले जाये तो इनसे सामान वापस लेने के लिए कुछ खाने की वस्तु दे कर वापस सामान ले सकते हैं, बशर्ते कि तब तक आपका सामान सही सलामत बचे, तो अपने सामान का ध्यान रखे। श्री बिहारी जी के दर्शन के बाद हम श्री राधा रमन जी पहुँचे और श्री राधा रमन जी ने होली खेल ली हम सब के साथ ऐसा इसलिए क्योंकि बृज में होली बसंत पंचमी से ही खेलनी शुरु हो जाती है। उसके बाद निधि वन और वहाँ से दोपहर के भोजन के लिए अग्रसेन भवन पहुँचे। ये अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ मंदिर, श्री कृष्ण बलराम मंदिर, के पास है यहाँ आप 90 रुपये में पेट भर बढ़िया भोजन कर सकते है।
भोजन के पश्चात हम यमुना जी के पावन तट पर पहुँचे और वहाँ नौका विहार करते हुए केसी घाट पहुँचे, वहाँ से हम सब तटीया स्थल गए। वहाँ श्री हरिदास जी के दर्शन, बृज रज में लोट पोट हो लिए और वहाँ से हम सीधे पहुँचे कात्यायनी माता के मंदिर। वहाँ दर्शन कर हमारा आखिरी पड़ाव रहा जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज का प्रेम मंदिर, अद्भभुत दर्शन और चकाचौंध, भगवान श्री कृष्ण की लीला झांकिया, सब के दर्शन कर दिल्ली वापस निकल पड़े।
ये था वृंदावन दर्शन और गोवर्धन परिक्रमा सिर्फ दो दिनों में, जब भी समय मिले कभी आइये वृन्दावन जो अनुभव होंगे शायद ही जीवन मे उसकी विस्मृति हो।
राधे राधे।
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