हाल ही में मुझे देव भूमि हिमाचल प्रदेश भ्रमण का अवसर मिला। जैसा की आप सभी जानते हैं कि भारत के उत्तर में स्थित हिमाचल प्रदेश अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए संपूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है। यहाँ के बर्फ से ढके पहाड़, पेड़ों के समूह, मनभावन झीलें तथा चारों ओर फैली हरियाली हर किसी को आकर्षित कर लेती है। यहाँ बर्फ से ढके पहाड़ों के साथ-साथ अनेक सुंदर झीलें भी हैं।
हिमाचल प्रदेश की इन सुंदर झीलों में से एक रिवालसर झील अपना विशेष स्थान रखती है। घने वृक्षों तथा ऊँचे पहाड़ों से घिरी रिवालसर झील प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत केंद्र है। मंडी से लगभग 24 कि.मी. दूर तथा समुद्रतल से 1350 मीटर की ऊँचाई पर स्थित रिवालसर झील के किनारे विभिन्न धर्मों के अनेक पूजनीय स्थल हैं। मुख्य रूप से यहाँ बौद्ध धर्म के अनुयायी रहते हैं। जिससे यहाँ का वातावरण बेहद शांत तथा मन को भाने वाला है।
रिवालसर झील से जुड़ा एक अद्भुत रोमांच है कि यहाँ अकसर मिट्टी के टीले तैरते हुए देखे जा सकते हैं, जिन पर ऊँची-ऊँची घास लगी होती है। टीलों के तैरने की अद्भुत प्राकृतिक प्रक्रिया ने रिवालसर झील को सदियों से एक पवित्र झील का दर्जा दिला रखा है। विज्ञान कुछ भी माने, परंतु यहाँ पर टीलों का तैरना दैविक चमत्कार माना जाता है। स्थानीय लोग कहते हैं कि प्रकृति की यह लीला केवल पुण्य कर्म करने वाले लोगों को ही दिखाई देती है। यह प्रक्रिया देखने में बड़ी ही मनभावन लगती है। देखते ही देखते जमीन का एक बड़ा-सा भूखंड एक स्थान से टूटकर बहता हुआ दूसरे स्थान पर जुड़ जाता है। यह प्रक्रिया देखने की इच्छा से यहाँ दूर-दूर से लोग आते हैं।
रिवालसर बौद्ध गुरू पद्मसंभव की साधना स्थली भी माना जाती है। ये रिवालसर से तिब्बत गए और वहाँ पर बौद्धधर्म का प्रचार तथा स्थापना की। तिब्बत में पद्मसंभव को गुरू रिमबोद्दे के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि रिवालसर झील में एक किनारे से दूसरे किनारे तक समय-समय पर चलने वाले टीलों में गुरू पद्मसंभव की आत्मा का निवास है। विश्व भर से तिब्बत के लोग गुरू रिमबोद्दे की पूजा-अर्चना करने और श्रद्धांजलि देने रिवालसर आते हैं। इसी कारण यह अपने-आप में एक अद्भुत धर्म स्थल भी है।
रिवालसर झील के किनारे तीन बौद्ध मठ हैं। इनमें से एक भूटान के लोगों का है। इसके अतिरिक्त यहाँ भगवान कृष्ण, शिव जी तथा लोमश ऋषि के मंदिर भी हैं। कहा जाता है कि लोमश ऋषि ने शिव जी के निमित्त रिवालसर में तपस्या की थी।
यहाँ एक गुरूद्वारा भी है। ऐसा मना जाता है कि गुरू गोविंद सिंह ने मुगल साम्राज्य से लड़ते हुए सन् 1738 में रिवालसर झील के शांत वातावरण में कुछ समय बिताया था। गुरूद्वारे को मंडी के राजा जोगेंद्र सेन ने बनवाया था। हिमाचल में जोगेंद्र नगर इसी राजा के नाम से प्रसिद्ध है।
सुंदर हरे रंग की इस झील के एक ओर बौद्ध अनुयायियों ने रंग-बिरंगी झंडियाँ लगाई हुई हैं। इस झील में बहुत बड़ी-बड़ी मछलियाँ है। तीर्थयात्री इन्हें आटे की गोलियाँ खिलाते हैं, मगर स्वच्छता की दृष्टि से प्रशासन ने ऐसा करने पर प्रतिबंध लगा दिया है। सरकारी वन विभाग ने यहाँ एक छोटा-सा चिड़ियाघर भी बनाया हुआ है जिसमें हिरण, भालू और रंग-बिरंगे पक्षी देखे जा सकते हैं। हिमाचल के कई धार्मिक स्थानों पर उछलते-कूदते बंदरों की तरह यहाँ भी बंदरों की कमी नहीं है। पास ही एक छोटा-सा बाज़ार भी स्थित है।
शाम होते ही बिजली की रोशनी के प्रतिबिंबों से झील जगमगाने लगती है, जिससे यहाँ का नज़ारा ही बदल जाता है। हलके अंधेरे में दिखाई देते समीप के पर्वतों का आकार भयावह प्रतीत होता है। झील के सान्निध्य में रहने वाले लोग कहते हैं कि यहाँ स्वतः ही भगवत भजन करने का मन करता है। शीतकाल में रिवालसर का तापमान शून्य के आस-पास पहुँच जाता है, परंतु ग्रीष्मकाल में प्रायः मौसम सुहावना या कुछ गर्म रहता है। मंद-मंद शीतल पवन मन को आनंदित करती है। रिवालसर के समीप कुछ अन्य झीलें भी हैं, जैसे- सुखसर, कुण्ठभ्योग तथा कालासर, जहाँ पैदल जाया जा सकता है। मॉनसून के दौरान ये झीलें पानी से लबालब भरी होती हैं।
ट्रैकिंग का शौक रखने वाले रिवालसर से घने जंगलों में से होते हुए शिकारी देवी मंदिर (2850 मीटर की ऊँचाई पर स्थित) तथा कामरू नाग झील (3600 मीटर की ऊँचाई पर स्थित) तक जाकर अपनी यात्रा में रोमांच भर सकते हैं। वैसे यहाँ अनेक ऐसे स्थान हैं, जो पर्यटकों को आनंद से भर देते हैं। यहाँ घूमने-फिरने के साथ-साथ खरीदारी का आनंद भी लिया जा सकता है। यहाँ का स्वच्छ वातावरण सेहत के लिए बड़ा ही लाभदायक है।
रिवालसर मात्र एक पर्यटन स्थल नहीं है। यहाँ स्थित धार्मिक स्थल इसे आस्था का केंद्र भी बनाते हैं। इसीलिए यहाँ आने वाले लोग पर्यटन के आनंद के साथ-साथ मन की शांति भी प्राप्त करते हैं, तो सोच क्या रहे हैं, पहुँच जाइए और आनंद लीजिए इस मनोरम स्थल का......।
गुरप्रीत शर्मा
(वरिष्ठ संपादक)
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