जौलजीबी मेले के समय में एक दिन मैं (विक्की ) और मेरा दोस्त कुंदन (अम्मू) खाना खा कर सो रहे थे, तभी एक कॉल आई जो गाँव के रहने वाले दीपक सतौरी की थी वो और गाँव से आए रवि भंडारी(रब दा ) रण बहादुर चंद ( मन दा) सुरेन्द्र भंडारी ( छोटू दा) जगदीश अजगला ( जैकी दा) जौलजीबी मेले घूमने आए थे और उन्होंने हमें भी साथ चलने को बोला। हम भी चल दिए उनके साथ।
मेले में कुछ समय घूमने के बाद हम गाड़ी मै बैठे और चल पड़े एक अज्ञात सफर में। जो बाद में इतना हसीन और खूबसूरत होगा शायद किसी ने भी नहीं सोचा था। क्योंकि ठंड का समय था और सभी ठंड के कारण हल्की-हल्की रम की चुस्कियाँ लेते हुए और बेहतरीन मज़ेदार गानों को गुनगुनाते हुए ठंड के एहसास को कम करने का सभी प्रयास कर रहे थे । और तब हम धारचूला पहुँचे समय था करीब 7 बजे । धारचूला में हमने खाना खा कर आगे जाने का फैसला किया लेकिन अब भी नहीं पता था कि जाना कहा है बस इतना था कि जाना तो है। ऐसे ही दारमा वैली जाने पर चर्चाएँ हुए और चल दिए हम एक रोमांचक और ठंड से परिपूर्ण यात्रा पर।
रात के 11बज रहे थे और गाड़ी में गाने की आवाज़ें और बातें सब बंद हो चुकी थी, सभी नींद की झपकियाँ लेने लगे थे बस छोटू दा लगातार चलते जा रहे थे, ऐसा लग रहा था मानो इस सड़क का अंत हो ही ना। किसी तरह हम 3 बजे ढ़ाकर गाँव के पास बने आई टी बी पी कैंप के पास पहुँचे, हमने वहीं रुकने का फैसला किया । वहा ठंड कई गुना बढ़ गई थी, हवाएँ इतनी तेज़ थी मानो गाड़ी को उड़ा के जाए, किसी तरह वहीं रात गुज़ारी । सुबह के 6 बजे जब हल्की फुल्की सूरज की किरणें निकली तब को नज़ारा हमने वहा देखा वो पूरी ज़िन्दगी की एक सबसे खूबसूरत सुबह थी क्योंकि रात में जो बिल्कुल वीरान सा प्रतीत हुआ वो घाटी चारो ओर बर्फ और खूबसूरत नज़ारों से गुलजार थी । तब हमने वापस दुगतू गाँव जाने का फैसला किया। वहाँ से पंचाचुली बेस कैंप को एक खूबसूरत पैदल ट्रैक था जो भोजपत्र और सफेद बुरास के जंगल से होता हुआ एक खूबसूरत बुग्याल था। वो ट्रैक पार करने के बाद जो एक खूबसूरत शांतिपूर्ण और आकर्षक नज़ारा देखने को मिला वो शायद ही किसी ने सोचा था, मानो रात भर सफ़र से लगी हुई थकान और कड़कड़ाती ठंड एकदम उन खूबसूरत नजारों में कहीं विलुप्त सी हो गई। जो दृश्य वहाँ देखने को मिले जो शांति वहाँ मिली यह सभी विशेषताएँ उस घाटी को एक अलग श्रेणी में लाकर खड़ा कर देता है।
वहाँ पहुँचने के बाद हमने करीब 1 घंटा वहाँ की बर्फीली चोटियों, ऊपर से बहते हुए ठंडे पानी और बर्फीली हवाओं की फुहारों और वहाँ की बनी हुई फलों और अनाजों से बनी शराब के साथ बिताया, वास्तव में एक शांति देने वाला यादगार सफर बनकर रह गया। आप भी ऐसा ही अनुभव लेने के लिए तैयारी के साथ जा सकते हैं।
कब जाएँ- दारमा घाटी में यात्रा और ट्रेक करने का सबसे अच्छा समय बीच मार्च से जून के मध्य और बीच सितंबर से लेकर अक्टूबर के अंत तक है। इन महीनों के दौरान औसत तापमान 27 डिग्री सेल्सियस होता है, जिसमें बहुत कम बारिश होती है।
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