यदि आप दिल्ली के महरौली इलाके में गए हों तो आसार है कि कभी आपकी नजर इस मकबरे पर भी पड़ी होगी। अगर इसका नाम आपको पहले से पता है, तब तो ठीक, वरना यदि आप सीधे यहाँ जाएँगे तो शायद इस जगह का नाम भी न पता कर पायें। वजह एक ही है, इतने बड़े व खूबसूरत मकबरे में कहीं भी इसके नाम का जिक्र नहीं, और नाम का जिक्र नहीं तो जाहिर-सी बात है कि लोगों को इसके इतिहास का भी कुछ ठीक अनुमान न होगा।
बात है 16वीं शताब्दी की जब दिल्ली में मुगल बादशाह अकबर का शासन हुआ करता था। उस दौर में उनका एक सेनापति था- आदम खान। आदम खान न सिर्फ अकबर का सेनापति, बल्कि उनका मुँहबोला भाई भी था। असल में आदम खान की माँ माहम आगा बादशाह अकबर की धाय माँ थी और इसी रिश्ते की वजह से आदम खान व अकबर एक-दूसरे को अपना भाई मानते थे। आदम खान इस रिश्ते की वजह से काफी शक्तिशाली था और इसी शक्ति के नशे में चूर होकर उसने अकबर के एक करीबी प्रधानमंत्री अतगा खान की हत्या कर दी। बादशाह अकबर इस रवैये से बेहद नाराज हो गए और उन्होंने आदम खान को आगरा के किले से सर के बल नीचे फेंक देने का हुक्म दे दिया। ये मकबरा उसी आदम खान का है।
आदम खान की मौत के बाद उनकी माँ माहम आगा ने भी पुत्रशोक में 40 दिनों बाद अपनी जान दे दी और तब अकबर ने उनदोनों के लिए महरौली प्रदेश में इस मकबरे के निर्माण का आदेश दिया। इस मकबरे का निर्माण 1562 में हुआ था और यदि आपको ऐतिहासिक इमारतों की संरचना की जानकारी होगी तो आपको यह पहचानते देर नहीं लगेगी कि इस मकबरे का निर्माण पारंपरिक मुगल शैली की जगह लोदी शैली में किया गया है। इसके पीछे भी खास वजह है। यदि आप इसे देखेंगे तो पाएँगे कि ये अष्टकोण आकार में बना है, और ऐसा इसलिए है क्योंकि लोदियों को मुगल गद्दार मानते थे। इस मकबरे का निर्माण भी लोदी शैली में करवाकर अकबर दुनिया को ये बतलाना चाहता था कि आदम खान एक गद्दार था।
काफी वक्त तक ये मकबरा बिना देख-रेख के रहा पर अंग्रेजी हुकूमत आने के बाद 1830 के आसपास एक अंग्रेज अफसर ने इसे अपना आशियाना बना लिया। उस अफसर की मृत्यु के बाद कई और अंग्रेजी अफसरों ने इसे अपना आवास बनाया। एक वक्त पर तो ये पुलिस स्टेशन व डाकघर भी था। हालाँकि बाद के वर्षों में लॉर्ड कर्जन के आदेश पर इसका पुनरुद्धार किया गया। माहम आगा की कब्र नष्ट हो चुकी है, इसलिए अब वहाँ बस एक ही कब्र दिखेगी जोकि आदम खान की ही है।
ये जगह कुतुब मीनार से थोड़ा ही आगे और महरौली बस टर्मिनल से पहले ही आपको दिख जाता है। भले ही लोगों को इसका इतिहास न मालूम हो, परन्तु भीड़ यहाँ काफी तादाद में रहती है। जब मैं यहाँ गया तो मुझे महसूस हुआ कि आसपास के लोगों ने इसे अपना फेवरेट टाइम पास स्पॉट बना लिया है। कई लोग ताश खेल रहे थे, कई बच्चे पकड़म-पकड़ाई। कई महिलाएँ सीढ़ियों पर बैठ बातें कर रही थीं तो कई युवा टिकटोक वीडियो बनाने में मशगूल थे। कई लोगों के लिए ये बस पकड़ने के लिए बेहतरीन जगह का काम भी रही थी। तरीके और वजह चाहे अलग हों, पर लोगों का जमावड़ा देख अच्छा लगा।
मुझे पहले अनुमान नहीं था कि ये इतना विशाल व खूबसूरत होगा, परन्तु सड़क पर से ही इसकी भव्यता साफ दिख रही थी। ऊँचे चबूतरे पर बने होने की वजह से ये और बेहतरीन लग रहा था। ये वक्त बिताने के लिए बेहतरीन जगह है और यहाँ की दीवारों से बगल में खड़ा कुतुब मीनार भी खूबसूरत लगता है। कभी कुतुब मीनार आएँ तो थोड़ा आगे चलकर महरौली बस टर्मिनल तरफ आकर आदम खान के मकबरे भी हो आएँ। इसकी कहानी मैं बता दिया हूँ, तस्वीर आप खिंचवा लीजिए...
कैसे जाएँ?- निकटतम मेट्रो कुतुब मीनार रेलवे स्टेशन है।
प्रवेश शुल्क:- निःशुल्क।
समय:- सूर्योदय से सूर्यास्त।