सुबह के 2 बज रहे हैं। मैं अभी अभी पुरी रेलवे स्टेशन उतरा। मोबाइल पर जगन्नाथ मंदिर खोजा तो पता चला यहां से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यह मंदिर। मैंने सोचा कि ऑटो ले लु या पैदल ही चले जाऊँ। फिर मैं पुरी की शांत सी गलियों में पैदल ही चल पड़ा। हल्की हल्की ठंडी हवा जैसे उस रास्ते को और ज्यादा खूबसूरत बना रहे थे। एक आनंद की अनुभूति हो रही थी, जैसे जैसे मैं मंदिर की ओर बढ़ रहा था। करीब 3 बजे मैं जगन्नाथ मंदिर के पास पहुंचा।
मंदिर का दरवाजा बंद था। बहुत सारे श्रद्धालू मंदिर के पास मंदिर का दरवाजा खुलने का इंतजार कर रहे थे। मैंने वहां के एक आदमी से पूछा तो उन्होनें बताया कि मंदिर 5 बजे खुलेगा। फिर मैं भी बाकी लोगों की तरह वहां मंदिर खुलने का इंतजार करने लगा। 4 बजने के बाद आसपास के दुकान खुलने लगे। मैंने वहां एक दुकान में अपना बैग मोबाइल रख दिया और पैर हाथ धो कर मंदिर में घुसने के लिए तैयार हो गया। बहुत सारे श्रद्धालु मंदिर मे प्रवेश करने के लिए लाइन में लग गए थे। मैं भी जाकर लाइन में लग गया और मंदिर खुलने का इंतजार करने लगा। ठीक 5 बजे मंदिर का दरवाजा खुला। सभी लोग भाग कर भगवान जगन्नाथ के मुख्य मंदिर में घुस गए और मंदिर के मुख्य दरवाजे के सामने अपना अपना स्थान लेके बैठ गए। थोड़ी देर बाद वहां भगवान का भजन शुरू हुआ और पुजारी सब मंदिर के अंदर जाकर पूजा करने लगे। करीब एक घंटे तक अंदर पूजा चलती रही। फिर मैंने सुबह की आरती ली, और मंदिर से बाहर आ गया।
अब समय था समुद्रतट पर जाने का। जोकि यहां से करीब 1 कि.मी की दूरी पे था। दूर से ही मुझे समुद्र दिखा। यह मेरा पहला अनुभव था समुद्र को इतने पास से देखने का। वहा बहुत लोग नहा रहे थे। समुद्र में जाल लेके जाते हुए मछुआरे, समुद्र की लहरों में ओझल होते जहाज वहां की सुंदरता में चार चांद लगा रहे थे। पहली बार मैंने समुद्र की लहरों की आवाज़ सुनी, जो बहुत ही मनमोहक थी। मन कर रहा था कि वहीं बैठ के उनकी संगीत में खो जाऊँ।
थोड़ी देर वहां रुकने के बाद मैं वहां से लौट गया।
पुरी घूमने का यह शानदार अनुभव था। आप भी आइये यहाँ कुछ दिन की छुट्टी लेके, यहाँ के कल्चर, खानपान, समुद्रतटीय सुन्दरता और भगवान जगन्नाथ के मन्दिर का आनंद उठायें।