पार्वती घाटी जाने का प्लान अचानक ही बन गया।यात्रा से 1 हफ्ते पहले मैंने तय कर किया था कि अब बहुत हो गया। क्युकी अब तीन दिन का वीकेंड था इसलिए अब कहीं दूर निकलना होगा ।
बृहस्पतिवार को रेडबस खोली और कुल्लू का टिकट एचआरटीसी की आर्डिनरी बस में बुक कर दिया।
शुक्रवार को अपना बैग ऑफिस लेकर गया और शाम को मेट्रो से डायरेक्ट कश्मीरी गेट बस अड्डे पहुंच गया।
बस साढे सात बजे की थी और में सात बजे ही वहां था इसलिए कुछ इंतजार करना पड़ा और जब बस आगे लगी तो सबसे पहले चढ़ने वाला में ही था।
मजनू का टीला से आगे निकलते ही ढेरों वोल्वो स्लीपर बसें मिलती है जो प्राइवेट ऑपरेटर चलाते हैं।उनमें मज़े से कम्बल ओढ़कर सोते लोगों को देख रहा था।
12 बजे के आसपास करनाल के आगे कही ढाबे पर खाना खाया और फिर नींद के साथ आंख मिचौली चलती रही।
4 बजे बस आनदपुर साहिब से आगे चाय पीने के लिए रोकी गई तो में भी उतरा।ठंड थी। अंधेरा था।ये ऐसी जगह थी, जहां एक तरफ पहाड़ थे और एक तरफ मैदान। पहाड़ों पर दूर एक दो चमकती बत्तियां दिख रही थी।
सुंदर नगर में सुबह 6 बजे ड्राइवर और कंडक्टर बदले गए और फिर मंडी, पण्डोह डैम, ऑट टनल और भुंतर होते हुए कुल्लू पहुंच गए।
कुल्लू में उतरते ही याद आया कैश तो है ही नहीं। बैग में बस पचास रुपए होंगे।
बिजली महादेव की बस का पता किया तो पता चला कि अभी यहां आकर खड़ी होगी और 1 घंटे में चलेगी।
अभी 11 बजने को थे तो में अंदर कुल्लू में एटीएम ढूंढने चक दिया।एक एटीएम में रिपेयर चालू थी और वहां भी लोग इंतेज़ार में थे।आखिर मैकेनिक ने हाथ जोड़ दिए की ये आज बंद रहेगा।दूसरा एटीएम काफी देर तक कुल्लू की गलियों में भटकने के बाद मिला। 2 हजार निकाल लिए।
एक दुकान से चार पैकेट बिस्किट लिए और वापस बस अड्डे पहुंचा।
जब तक में बस अड्डे पहुंचा बस भर गई थी पर सबसे पीछे सीट मिल गई।
बस जिस पहाड़ की जड़ में ब्यास के किनारे खड़ी थी उसी पर बने रास्तों पर चढ़ने लगी।काफी ऊंचाई पर पहुंचकर कुल्लू बहुत नीचे दिख था ।वीडियो लेने के लिए कैमरा निकाला पर बस में भीड़ बहुत थी और हिल भी बहुत रही थी।
मुझे एक जगह उतार दिया गया और बस आगे चली गई।ऊपर जाती हुई सीढ़ियां बनी हुई थी जो बिजली महादेव तक जाती है।
पहाड़ों में सभी गांव सड़कों से जुड़े हुए नहीं होते।पहाड़ों पर ऊंचाई पर बसे गांवों तक सिर्फ पगडंडियों का ही सहारा होता है।में जिस पगडंडी पर चल रहा था उस पर पक्की सीढियां बना दो गई थी और ये सीढ़ियां पूरे रास्ते में है यानी बिजली महादेव तक सीढ़ियां बनी हुई है।
5 मिनट ऊपर चढ़ने के बाद सीढ़ियां एक गांव के बीच जा पहुंची।एक आंटी की छोटी सी दुकान थी तो 10 रुपए की टॉफी खरीद ली।कहीं पढ़ा था कि ट्रेक करते वक्त टॉफियां साथ होनी चाहिए, मुंह और गला सूखता नहीं है।
कुछ देर बाद वापस रोड पर आ गया और यहीं से थोड़ा आगे रोड खत्म हो गई मतलब बस वाले ने थोड़ा पहले उतर दिया ,बस था तक आ सकती थी।
मेरे नीचे की तरफ पूरा कुल्लू देखा जा सकता था।कुल्लू से लेकर भुंतर तक की घाटी दिख रही थी।
थोड़ा ऊपर चलकर जंगल आरंभ हुआ जो कि बिजली महादेव तक जारी रहता है।
रास्ते में इक्का दुक्का लोग मिलते रहते है तो डर की कोई बात नहीं है।बीच में मुझे एक चरवाहा भी मिला जो अपनी बकरियां चरा रहा था।
2 लड़कियां मिली जो एक दूसरे के फोटोशूट में मशगूल थी।बिजली महादेव पहुंचते ही पेड़ खत्म हो जाते है और एक घास का मैदान आ जाता है। इस मैदान में जानवर घास रहते है और इनके लिए एक पानी का कुंड भी बना हुआ है।
कुछ दुकानें है जो मंदिर में चढ़ाने के लिए प्रसाद रखती है।
यहां से थोड़ा सा ऊपर और चढ़ते है और पहाड़ के सबसे ऊंचे स्थान पर ही मंदिर दिख जाता है।
जिस तरफ से में चढ़ा था (कुल्लू वैली)उसके दूसरी तरफ यानी पार्वती वैली के तरफ बर्फीले पहाड़ दिखते है।यही बैठकर पहले में इन बर्फीले पहाड़ों को निहारता रहा।
कल मुझे इन्हीं की तरफ जाना था।
भुंतर में, जहां पार्वती नदी और ब्यास नदी मिलती है उनके बीच ही बिजली महादेव वाला पहाड़ है और भुंतर की तरफ से खड़ी चढ़ाई है।इसी चढ़ाई के सबसे ऊपर बिजली महादेव मंदिर है ।मंदिर के आगे घास का मैदान है और यहां से पूरा भुंतर साफ साफ दिखता है।कुल्लू मनाली एयरपोर्ट स्ट्रिप भी दिखती है और पार्वती ब्यास का संगम भी दिखता है।
अद्भुत नजारा होता है यह ।
यहीं बैठकर मैंने अपने बिस्किट चट किए और फोटो खीचे।
पहले बिजली महादेव पर बिजली गिरा करती थी और शिवलिंग खंडित हो जाता था पर अब यहां 2 सेलफोन टॉवर लग गए है तो इसलिए नहीं गिरा करती।
इसके बाद में पार्वती वैली में मणिकर्ण रोड पर छेरनाला नाम की जगह पर उतरा और मणिकर्ण की बस पकड़कर चल दिया।