प्राचीन समय में ब्राह्मण की हत्या को अन्य सभी पापों से बड़ा पाप माना गया है।हम सभी कुछ न कुछ पाप करते हैं।एक पाप मुझसे भी हुआ है।और वो शायद ब्रह्महत्या से भी बड़ा पाप है।
अब आपको लग रहा होगा कि मुझसे भी कुछ ऐसा ही तो नहीं हो गया।जो हुआ वो इस श्राप से भी बढ़कर था।
बात कुछ यूं है कि मैं(DM) और मेरी दोस्त(DC) लद्दाख ट्रिप पर थे।बाइक से।मौसम से लेकर मिजाज़ कब इस ट्रिप में ऊपर नीचे हो जाये,पता नहीं।लद्दाख को जाते समय कारगिल पर खाना खाने हम रुके।वो एक ढाबा था।वहाँ पर कई ट्रक वाले और हमारी तरह दूसरे बाइक वाले भी रुके थे।खाना ठीक-ठाक था।साथ ही उस ढाबे वाले भाई का व्यवहार।नो-सिग्नल वाले जोन में भाई ने हमको wifi Hotspot का एहसान दिया।(उसका jio सिम था।) राजमा-रोटी-चावल और सब्जी।सब्जी किसकी फूलगोभी की।खैर भूख थी तो स्वाद का किसे पता।(खास तौर पर मुझे,एक श्राप यहाँ भी मिला है।)हमने खाना खाया और चल दिये।असली बात तो शुरू होती है अब।लगभग हफ्ते भर बाद जब हमारी वापसी हुई तो हिसाब कुछ ऐसा बैठा की खाने के समय हम फिर कारगिल के आस-पास ही पहुँचते।DC ने मुझे पहले ही हिदायत दे दी थी कि इस बार उस ढाबे में मत रुकना।मैंने भी सहमति दी।लेह से कारगिल की दूरी लगभग 220km है।अब इतनी दूरी में उस खास ढाबे में,वो भी मना करने के बाद भला कौन रोकेगा।पर होगा तो वही,जो होना है।ब्रह्महत्या का दोष तो मुझ पर लगना ही था।उस रास्ते पर जाते हुए सड़क पर मुझे वो ढाबे वाला भाई दिख गया।उसकी वो मुस्कान मुझे रोक नहीं पाई।(सच में)
मैंने बाइक रोक दी।कहते हैं ना जब मति फिरती है तो फिर कुछ समझ नहीं आता।DC के हाव-भाव से मैं समझ चुका था।इतने लंबे सफर में ,मना करने के बाद भी वो ही ढाबा।ये कैसा संयोग था।गलती हो चुकी थी।वो भी ऐसी जो सदियों में कभी-कभी होती है।ब्रह्महत्या से भी बड़ा पाप सिर चढ़ चुका था।प्रायश्चित क्या पता नहीं।पाप काफी अक्षम्य है।पर!क्षमायाचना!इस जन्म में यही सहारा है।