गुमनामी में खोया दिल्ली का अशोक शिलालेख

Tripoto
Photo of गुमनामी में खोया दिल्ली का अशोक शिलालेख by Shubhanjal
Day 1

सम्राट अशोक का नाम आते ही हमारे जेहन में ऐसी ऐतिहासिक छवि उभरती है, जिसने अपने पराक्रम के बल पर हर दिशा में अपना साम्राज्य फैलाने के बाद अचानक ही अहिंसा का मार्ग अपना लिया था। अशोक मौर्य साम्राज्य के तीसरे शासक थे जिन्होंने अपनी तलवार के बल पर बर्मा से लेकर कंधार तक, पूरा प्रदेश अपने अधीन कर लिया परन्तु बाद में बुद्ध की अहिंसा की शिक्षा से प्रभावित हो बौद्ध धर्म की शरण में चले गए।

अशोक ने अपने शासलनकाल में  बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार व इसके सन्देश को जन-जन तक पहुँचाने के लिए पत्थरों, दीवारों पर बुद्ध के सन्देश को उकेरने का आदेश दिया था, जिसे पढ़कर लोग सत्मार्ग पर चले। देश में कई जगहों पर अशोक के वो शिलालेख आज भी मिल जाते हैं, पर क्या आपको मालूम है कि ऐसा ही है एक शिलालेख दिल्ली में भी है? नहीं, शायद नहीं मालूम हो क्योंकि आज के समय में किसी को नहीं मालूम। जिन्हें पता था, वे भी इस ऐतिहासिक धरोहर को भूल चुके हैं।

उस दौर में दिल्ली प्रदेश मौर्य साम्राज्य के मुख्य क्षेत्र में नहीं थी, परन्तु आवा-जाही के मार्ग पर पड़ने की वजह से इस क्षेत्र में भी कहीं-कहीं अशोक स्मृतियाँ दिख जाती हैं, जिनमें से एक है दक्षिण दिल्ली स्थित- अशोक शिलालेख। ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी की ये निशानी आज ऊँचे मकानों और उपेक्षाओं के बीच कहीं गुम हो रही, और किसी को खबर तक नहीं।

मुझे काफी पहले से ही इस जगह के बारे में जानकारी थी, लेकिन कभी जाने का मौका ही नहीं मिल पाता था। एक रोज मेरा रूममेट पढ़ते वक्त सम्राट अशोक के बारे में बात कर रहा था, और तभी मेरे ज़ेहन में एकाएक इस जगह का ख्याल हो आया और मैंने बिना कोई देरी किये हमेशा की तरह ही पायजामे में इस जगह की खोज में प्रस्थान किया।

भारतीय पुरातात्विक विभाग (ASI) ने सन् 1966 में ही इस जगह को अपनी धरोहर सूची में जगह दी थी, जहाँ एक वक्त तक बौद्ध भिक्षु और म्यांमार आदि से आये विदेशी सैलानी दर्शन करने को आते थे। उस क्षेत्र में रहने वाले लोकल निवासियों को तो इस जगह की शायद खबर तक नहीं, वे बस दूर से आये इन विदेशी सैलानियों को देखते हैं और आश्चर्य करते हैं। खुद कभी उस जगह का महत्व समझने की कोशिश नहीं की किसी ने।

खैर, मैं अशोक शिलालेख के निकट पहुँच चुका था, और नेहरू प्लेस में बस से उतरकर पैदल ही उस ओर चल दिया। यदि आप भी इस अशोक शिलालेख को देखना चाहते हैं, और मेट्रो से आ रहे तो वायलेट लाइन की कालकाजी मेट्रो स्टेशन पर उतर जाइयेगा। वहाँ से बस डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर है ये। यदि बस से आ रहे, तब भी नेहरू प्लेस ही उतर जाइयेगा, वहाँ से भी समान दूरी पर ही है ये अशोक शिलालेख।

बस से उतरकर मैं पैदल ही आस्था कुंज पार्क से होता हुआ पहले इस्कॉन मंदिर,  नेहरू प्लेस की ओर गया। अगर आपको भी कैलाश हिल्स, ईस्ट कैलाश पर स्थित इस अशोक शिलालेख की लोकेशन जानने में परेशानी हो रही हो, तो बेहतर है कि पहले आसपास की किसी प्रसिद्ध जगह पर जाएँ। इस्कॉन मंदिर पास में ही था, तो पहले मैं झट से वहाँ पहुँचा। वहाँ से एक रास्ता दाएँ तरफ ढलान में नीचे की ओर जाता है, उससे नीचे उतरकर राजा धीरसिंह मार्ग पर दाएँ तरफ मुड़कर चलते जाने पर कुछ ही दूर पर कचड़ा जमा करने की एक जगह दिखेगी। बस आपको वहीं रुक जाना है।

जी हाँ, आपको भी इस जगह को कचड़े के ढेर से ही इस जगह को पहचानना पड़ेगा क्योंकि किसी ने इस ऐतिहासिक धरोहर के बारे में बतलाने के लिए बाहर एक बोर्ड लगाने तक की ज़हमत नहीं उठाई। पहली वाली तस्वीर देखिये एक बार फिर से, दाएँ तरफ कचड़ों का जमावड़ा है (फोटो में शायद न दिखे) और उसके बगल में लोहे का ये दरवाजा, जिसे देखकर साफ-साफ पता चल रहा कि ये बस खानापूर्ति के लिए है। मुझे एक बार कन्फर्म करने में वक्त लगा खुद से कि क्या इसी जगह पर अशोक शिलालेख है? मगर तभी नजर पड़ी अंदर लगे ASI के पत्थर पर, और मेरी शंका दूर हो गयी और ये साफ हो गया कि अशोक शिलालेख यहीं स्थित है।

खैर, मैं अंदर गया और पहली नजर डाली ASI की उस बोर्ड पर जिसके अनुसार अशोक ने धम्म के लिए जनता को ईश्वर के और करीब लाने और उनमें नैतिक मूल्य जाग्रत करने के लिए इस शिलालेख पर बुद्ध के सन्देश अंकित करवाये थे। 10 पंक्तियों में लिखित ये शिलालेख प्राकृत भाषा की ब्राह्मी लिपि में अंकित है। इतना पढ़कर मैंने एक नजर घुमाई उस कैम्पस में जोकि एक नजर में ही ऐसा महसूस हो गया कि अगर इसकी थोड़ी देख-रेख की जाए, तो ये बेहद खूबसूरत पर्यटन स्थल बन सकता है। अंदर में ही कैलाश हिल भी था (जिसपर शिलालेख स्थित है)।

छोटे-से उस पहाड़ पर चढ़ने से पहले मैंने एक चक्कर पूरे इलाके का लगाया जहाँ कुछ औरतों, पहाड़ी पर बैठे कुछ लड़कों के अलावा ग्राउंड में बैठ ताश और जुआ खेल रहे कई पुरुषों की टोली दिखाई दी। जब हम अपनी धरोहरों का ध्यान नहीं रखते, तो वह कुछ इसी तरह जुए का अड्डा बन जाती हैं। खैर, मैं ऊपर पहाड़ पर गया, जहाँ एक कक्षनुमा पिंजड़ा बना हुआ था। अशोक शिलालेख उसी में स्थित था तो मैं सीढ़ी से होता हुआ ऊपर चढ़ा। ध्यान गया कि वहाँ पत्थर पर कुछ मोमबत्तियाँ भी लगाई गयी थी। शायद लोगों ने उसे कोई दैवीय पत्थर समझ लिया था।

ऊपर गया तो लोहे का एक छोटा-सा पुल दिखा जोकि आपको उस पत्थर के और करीब ले जाता है। मैं उसपर होता हुआ पत्थर के करीब गया और उसपर लिखी बातों को देखने की कोशिश की। मुझे कुछ सही ढंग से दिखा नहीं, तो मैंने पीछे बैठे कुछ लड़कों से कन्फर्म करने के लिए पूछा-"अशोक शिलालेख यही है न?" तिसपर उनका जवाब आया-"नहीं पता भाई। अशोक शिलालेख क्या होता है?" उनके इस क्रॉस-क्वेश्चन से मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ। खैर, मैं सीढ़ी से नीचे उतरकर दूसरी तरफ से चढ़कर उसे देखने की कोशिश करने लगा और तब जाकर मुझे काफी मद्धम अक्षरों में उसपर लिखी बातें दिखी (तस्वीर में वह भी शायद न दिखे)। उसकी कुछ तस्वीरें खींचने के बाद मैं वापस नीचे उतरा, और वापस लौटने लगा।

लौटते वक्त मन में कुछ शिकायतें थीं। शिकायत ASI से, जिसने इस जगह को ढूँढ तो लिया, मगर यहाँ लोगों का ध्यान खींचने के लिए कोई खास व्यवस्था नहीं की। और उससे भी ज्यादा शिकायत दिल्ली शहर के लोगों से, जिनके सामने से ये ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी का एक अशोक शिलालेख अपना अस्तित्व खोने की तैयारी में है, और किसी को खबर तक नहीं। वक़्त की मार ने और देख-रेख के अभाव में उस शिलालेख पर अंकित सन्देश अब लगभग मिट चुका है। जो कुछ दिख रहा, कुछ समय बाद शायद वह भी न दिखे। फिर अशोक की ये शिलालेख किसी अन्य सामान्य शिला की तरह ही बनकर रह जाएगी। अशोक का गौरवशाली नाम इस पत्थर पर से इन अक्षरों के साथ ही मिट जाएगा। इसलिए इससे पहले कि ऐसा कुछ हो, देख आइये इसे...

कैसे जाएँ?:- निकटतम कालकाजी मेट्रो स्टेशन से डेढ़ किलोमीटर की दूरी। अगर किसी ई-रिक्शा वाले को जानकारी हो तो ठीक, वरना आस्था कुँज पार्क से होते हुए पैदल जाना ही अधिक सुगम। इस्कॉन मंदिर से महज 700 मीटर की दूरी।

प्रवेश शुल्क:- निःशुल्क।
समय:- सुबह 5 बजे से शाम 5 बजे का समय बेहतर।

Photo of गुमनामी में खोया दिल्ली का अशोक शिलालेख by Shubhanjal
Photo of गुमनामी में खोया दिल्ली का अशोक शिलालेख by Shubhanjal
Photo of गुमनामी में खोया दिल्ली का अशोक शिलालेख by Shubhanjal
Photo of गुमनामी में खोया दिल्ली का अशोक शिलालेख by Shubhanjal
Photo of गुमनामी में खोया दिल्ली का अशोक शिलालेख by Shubhanjal
Photo of गुमनामी में खोया दिल्ली का अशोक शिलालेख by Shubhanjal
Photo of गुमनामी में खोया दिल्ली का अशोक शिलालेख by Shubhanjal
Photo of गुमनामी में खोया दिल्ली का अशोक शिलालेख by Shubhanjal
Photo of गुमनामी में खोया दिल्ली का अशोक शिलालेख by Shubhanjal
Photo of गुमनामी में खोया दिल्ली का अशोक शिलालेख by Shubhanjal

Further Reads