राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में बसा रणथंभौर, एक पर्यटन स्थान है। यह जाना जाता है यहाँ रह रहे सैकड़ों बाघ, तेंदुए, चीते एवं अन्य जीवों के लिये। यहाँ के बाघों के ऊपर कई फिल्में बनाई जा चुकी है। नेशनल जियोग्राफी एवं ऐनिमल प्लैनेट जैसे टेलेविजन् चैनलों ने हजारों डॉक्यूमेंट्रिस यहाँ के बाघों पर फिल्माई हैँ।
यहाँ की एक बाघिन मछली के ऊपर तो कई फिल्में बनी हैं वह बहादुर, निडर बाघिन थी। सबसे पहले वह एक मगरमच्छ का शिकार करने की वजह से सुर्खियों मे आयी व फिर तो अखबार और टी. वी. चैनलों ने उसकी छोटी बड़ी हरकतो को रिकॉर्ड करना चालू कर दिया। फिर साल दर साल वह अपने निडरता के परचम लहराती गई और सुर्खियों मे बनी रही। उसकी मृत्यु के पश्चात् उसकी सत्ता उसकी बेटी ने संभाली और ये सब घटना हुई जॉन ३ मे। देखने मे सबसे खूबसूरत, भाँति- भाँति के जानवरों से भरा एवं ऐरॉहेड बाघिन के शासन वाला है ये जॉन।
कैसे पहुँचा जाये- दिल्ली से रेलगाड़ी या बस किसी भी रास्ते से 4-4:30 घंटे में सवाई माधोपुर पहुँचा जा सकता है और वहाँ से महज 13 की० मी ० की दूरी पर है रणथंभौर अभ्यारण।
टिकिट कैसे बुक किया जाये- ऑनलाइन बुकिंग के लिए आपको काफी सारी वेबसाइट दिखायी देगी उन सब पर अलग अलग चार्जेज बताए हुए हैं। वस्तविक दरें निम्नलिखित हैं-
जीप - 942
केंटर - 532
अगर आप ऑनलाइन बुक करना चाहते हैं तो वेबसाइट कि मदद ले सकते हैं अन्यथा वहां बुकिंग विंडो की लाइन में लगकर टिकिट प्राप्त कर सकते हैं जोन् का निर्धारण वहां उपलब्ध सीटों और कतार में आपके क्रमांक से होता है। क्योंकि रिसोर्ट एवं विभिन्न बुकिंग वेबसाइट के कारण वहां सीटें खत्म हो जाती हैं।
किस किस जॉन में बाघ के दर्शन हो जाते हैं- जोन् 2,5 एवं 7
इन तीनों जॉन में बाघों की संख्या ज्यादा होने से बाघ दिखने की प्रायिकता भी बढ़ जाती है और सुंदरता मे सबसे आगे है जॉन 3। 3 झीलें, एक महल एवं मनोरम दृश्य हैं इस जोन् में।
कहाँ रुकें - राजस्थान अपनी शानो शौकत एवं मेहमानवाजी के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ भी वही हाल है आपको हर रेंज की हॉटले यहाँ मिल जाएगी और सभी की बुकिंग ऑनलाइन उपलब्ध हैं। एक दिन बड़े बड़े शहरों के शोर शराबे एवं प्रदूषण से दूर, जंगल में आराम के क्षण बिताते हुए गुजारने में हर्ज़ ही क्या है। अलसुबह जंगल की सफारी करके मन भी तरोताजा हो जाता है और फिर से काम करने का मन भी जाग उठता है।
दूसरा दिन
जंगल सफारी के अलावा - जंगल सफारी के अलावा यहाँ एक किला है और किले में ही गणेश मंदिर भी है जहाँ आपको आस- पास के स्थानीय लोग काफी देखने को मिल जायेंगे। यह गणेश मंदिर इतना प्रसिद्ध है कि संपूर्ण राजस्थान के लगभग 8०% लोग आज भी विवाह का पहला निमंत्रण इन गणपति जी को ही भिजवाते है।
इस किले का भी इतिहास राजस्थान के और किलों कि ही भाँति रोचक हैं। चौहानों ने इसे बनाया था और 13 वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत ने इसे अपने कब्जे मे कर लिया। 2013 में वर्ल्ड हेरिटेज कमेटी ने राजस्थान के 5 और किलों के साथ इसे भी यूनेस्को विश्व धरोहर में शामिल कर लिया। पृथ्वीराज चौहान इस किले के एक विख्यात शासक रहे उन्हे मुगलों ने हराया और किले को अपने कब्जे में कर लिया।
फिलहाल इस किलें मे वानर सेना का राज है। इतने अधिक बंदर हैं कि मैं बयां भी नही कर सकती वे आपको या आपके सामान को कोई हानि नहीं पहुचाते परन्तु अगर आप उनके घर में घुसेंगे तो आपको उसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
काला गोरा भैरु बाबा का मंदिर - शहर के बीचों- बीच बसा यह मंदिर, यहाँ रावण ने कई वर्षों तक तपस्या की थी। परंतु अब भी ये मन्दिर सनातन धर्म का बेजोड नमूना प्रतीत होता है। यहाँ अजूबे के रूप मे विराजमान है एक स्तंभ जो कि हवा में टिका हुआ है। आप उसके नीचे से कोई कागज़ या गत्ता गुज़ार कर देखिये तो आप स्वयं ही स्तब्ध रह जायेंगे। यहाँ के पुजारियों का मानना है कि इस खंभे पर पृथ्वी टिकी हुई है। मैं तो इतना हि कहूँगी कि जहाँ विज्ञान निरुत्तर होता है वहां जवाब आस्था और धर्म ही देता है।
इन सबके अतिरिक्त यहाँ बर्ड वाचिंग पॉइंट् भी है जहाँ विदेशों से पलायन किये हुए पक्षी आते हैं जैसे - साइबेरियन सारस, पेलिकन, ग्रे हेरोन आदि। यह काफी अच्छा वीकेन्ड ट्रिप है। आप इसके बारें मे विचार कर सकते हैं। यदि आप जीव जंतुओ से बेहद प्यार करते हैं तो आपको यहाँ जरूर आना चाहिए। चिड़िया घर मे उन्हे देखना और उन्हे उनके प्राकृतिक आवास मे देखने मे बहुत बड़ा अंतर है।
प्रॉ टिप् - 1. सफारी के वक़्त पूरे कपड़े पहनें क्योंकि जंगल मे बहुत धूल है। मुंह को ढकने के लिये एक बड़ा दुपट्टा या कोई बड़ा कपड़ा ले ले वरना आप बहुत परेशान हो जायेंगे।
2. किले मे अलसुबह जाएं। वैसे तो ये सभी किलों के लिये है परन्तु यहाँ पर मुख्यत।