कमरे में पड़ा ऊब रहा था तो सोचा किसी नई जगह हो आऊँ। अपनी लिस्ट निकाली तो अनेक नामों में से एक नाम 'चोर मीनार' मेरी नज़र में आ गया। ध्यान आया कि ये तो मेरे फ्लैट से ज्यादा दूर भी नहीं, इसलिए यहाँ हो ही आता हूँ।
'चोर मीनार' स्थित है दिल्ली के हौज खास में जोकि वर्तमान में अपनी कैफ़े व रेस्टोरेंट्स के लिए शहर भर में प्रसिद्ध है। परंतु जब हम इतिहास की ओर बढ़ते हैं तो पता चलता है कि इसकी ऐतिहासिक महत्ता तो आज से भी कहीं अधिक है। मुख्य तौर पर अलाउद्दीन ख़िलजी के कारण प्रसिद्ध ये क्षेत्र कई इमारतों, मकबरों, व अन्य धरोहरों से भरा-पूरा है। उन्हीं में से एक है 'चोर मीनार', जोकि शहर के बीचोंबीच होकर भी, लोगों की नजरों से अंजाना है। तो एक नजर आज इसपर।
'चोर मीनार' नाम सुनकर ही लोगों की उत्सुकता बढ़-सी जाती है कि आखिर ये है क्या चीज। इसके बारे में ज्यादा जानकारी कहीं नहीं मिलती, परन्तु यदि पुरातात्विक विभाग की मानें तो इसका निर्माण बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी में अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में हुआ था। अगर तस्वीरों में भी आप ध्यान से देखेंगे, तो पायेंगे कि यहाँ कई छेद बने हुए हैं। गिनती में ऐसे 225 छेद बने हैं इस इमारत में जोकि लोगों की उत्सुकता को इस ओर और अधिक बढ़ा देते हैं कि आखिर इन छेदों के निर्माण के पीछे क्या कहानी है?
एक मान्यता के अनुसार 'चोर मीनार' मुख्यतः मंगोलों को सजा देने के लिए थी। यहाँ मंगोल सैनिकों पर अन्य अपराधियों का सर कलम कर उन्हें भालों में टाँगकर इन छेदों से बाहर की तरफ प्रदर्शित किया जाता था। कहा जाता है कि 8-10 हजार अपराधियों के सरों को कलम कर यहाँ लटकाया जा चुका था। एक अन्य मान्यता ये भी है कि खिलजी शासन में चोरों व अपराधियों को इस मीनार के अंदर ले जाकर उन्हें तड़पा-तड़पाकर मारने के लिए इन छेदों के बाहर से भाला मारा जाता था। हालाँकि पुरातात्विक विभाग ने इस दूसरे मान्यता की कुछ खास पुष्टि नहीं की है, इसलिए पहली वाली मान्यता को लोग 'चोर मीनार' के निर्माण का प्रमुख कारण मानते हैं।
अगर आप भी नई जगहों को तलाशने व इतिहास प्रेमी हैं, और कभी हौज खास इलाके की ओर आते हैं, तो एक चक्कर इस 'चोर मीनार' का भी लगा सकते हैं। एक झलक में इस जगह से परिचित हो जायेंगे, और ज्यादा वक्त भी नहीं लगेगा...
कैसे जाएँ?- हौज खास मेट्रो स्टेशन से बस 500 मीटर दूर। पैदल जा सकते हैं।
एंट्री फीस:- निःशुल्क
समय:- 24x7