पुराने जगहों की तलाश करते-करते दिल्ली के महरौली में महरौली बाजार के बिल्कुल बीचोबीच मिला ये जहाज महल। जहाज महल दिल्ली की उन महत्वपूर्ण जगहों में से एक है जिसकी ऐतिहासिक महत्वता तो बहुत है, मगर वर्तमान में ये जनता व सरकार की उपेक्षा की वजह से कहीं खो-सी गयी है।
छत्तरपुर मेट्रो स्टेशन से एक रास्ता महरौली बाजार के बीच जाता है उसमें ही लगभग डेढ़ किलोमीटर चलने के बाद आपको ये महल दिखेगा जोकि अभी तो बेहद जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है परन्तु अपने समय में कुछ बेहद खूबसूरत रहा होगा। माना जाता है कि इसका निर्माण 1400-1500 ईस्वी के बीच में हुआ था और इसे एक सराय के रूप में ही विकसित किया गया था जहाँ देश-विदेश से आये राहगीर व पर्यटक अपना डेरा जमाया करते थे। इसके बगल में ही आपको शमसी तालाब (अंतिम तस्वीर) दिख जाएगा, जोकि फिलहाल सूख जाने की वजह से तालाब भी नहीं रह नहीं गया। वह स्थान पानी की जगह जलकुकुम्भी से भरा पड़ा है है। हालाँकि जहाज महल का नाम जहाज महल पड़ने के पीछे का रिश्ता शमसी तालाब से ही जुड़ा है। कहा जाता है कि जब सूरज की उस महल पर पड़ती थी, तब बगल के शमसी तालाब में उसकी जहाज जैसी आकृति उभरती थी, और वही देखकर इसका ये नाम पड़ गया। इस जगह हर साल फूलों का एक मेला लगता है, जहाँ शहर भर से फूल बेचने वाले यहाँ जमा होते हैं। ये मेला भी सदियों से चला आ रहा, बस बीच में 1942 के समय अंग्रेजों ने इसे बंद करा दिया था परन्तु फिर जब पंडित जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने मेले को फिर शुरू करवाने में अहम योगदान दिया।
दिल्ली की बाकी इमारतों के लिहाज से ये जगह काफ़ी छोटी है, लेकिन अगर पुराने खंडहरों में भी कुछ कहानी तलाश लेने के शौकीन हैं, तो आप यहाँ जा सकते थे। ये जगह एक नजर में देखकर ऐसी प्रतीत होती है मानो इसका कोई ख्याल रखा ही नहीं जाता। लोग अनजान हैं इससे तो कोई जाता भी नहीं वहाँ। जब हम गए वहाँ तो आसपास रहने वाले लोगों ने हमें ऐसे देखा मानो कह रहे हों कि ऐसा भी क्या खास है इस खंडहर में जो तुम चले आये। नीचे ग्राउंड फ्लोर में एक मरियल कुत्ते को छोड़कर कुछ नहीं था तो हम ऊपर छत की तरह गए। छत पर जाने के लिए जो सीढ़ियाँ थी, वे बेहद टूटी-फूटी और संकरी थी। अगर आप यहाँ कभी जाएँ तो सीढ़ी पर ध्यान से चढ़ें। सीढ़ी से उतरने में ज्यादा परेशानी होती है, मगर ऊपर के दृश्य से आप शायद प्रभावित जरूर हों। ऊपर इमारत के छाते बने हैं, जोकि दिखने में सुंदर लगते हैं (तस्वीर में है)। मुझे आश्चर्य इस बात पर हुआ कि बाजार के बीच होकर भी इसकी छत इतनी शांत कैसे है। अगर कभी महरौली जाएँ और इच्छा करे इसे देखने की तो एक नजर मार आईये। बेहद कम समय लगेगा इसकी परिक्रमा करने में। बाजार के बीचोंबीच, नए-नए इमारतों के बीच ये पुराना-सा जहाज महल घर का बुजुर्ग लगता है। इसका ख्याल रखा जा सकता है...
कैसे जाएँ:- छत्तरपुर मेट्रो स्टेशन पर कैब या ई-रिक्शा करके। यदि दोस्तों के साथ हैं तो ये 1 किलोमीटर की दूरी पैदल भी तय कर सकते हैं।
प्रवेश शुल्क:- फ्री
समय:- 24×7