राजिम। राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहा जाता है। अगर आपको नदियाँ, सुंदर नज़ारे और मंदिर इन तीनों के दर्शन करना हो तो राजिम ज़रूर आइए। बारिश के मौसम में तो इसकी खूबसूरती और अधिक बढ़ जाती है। महानदी, पैरी नदी तथा सोंढुर नदी का संगम होने के कारण इसे छत्तीसगढ़ का त्रिवेणी संगम कहा जाता है। प्रतिवर्ष यहाँ पर माघ पूर्णिमा से लेकर महाशिवरात्रि तक एक विशाल मेला लगता है। छत्तीसगढ़ के लोगों के लिए यह स्थान आस्था का बड़ा केंद्र है। रमन सिंह की सरकार में इसे कुंभ मेले का भी नाम दिया गया था। हालांकि कांग्रेस सरकार के आने के बाद कुंभ नाम हटा दिया गया।
संगम के मध्य में कुलेश्वर महादेव का विशाल मंदिर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि वनवास काल में श्री राम ने इस स्थान पर अपने कुलदेवता महादेव जी की पूजा की थी। इस स्थान का प्राचीन नाम कमलक्षेत्र भी है। मान्यता के अनुसार सृष्टि के आरम्भ में भगवान विष्णु के नाभि से निकला कमल यहीं पर स्थित था और ब्रह्मा जी ने यहीं से सृष्टि की रचना की थी इसीलिए इसका नाम कमलक्षेत्र पड़ा।
वैसे तो राजिम में कई प्रमुख मंदिर और आकर्षण के केंद्र हैं। लेकिन आज हम बात करेंगे यहाँ के प्रसिद्ध राजीव लोचन मंदिर के बारे में। राजीवलोचन का मन्दिर चतुर्थाकार में बनाया गया है। यह भगवान काले पत्थर की बनी विष्णु की चतुर्भुजी मूर्ति है जिसके हाथों में शंक, चक्र, गदा और पदम है। ऐसी मान्यता है कि गज और ग्राह की लड़ाई के बाद भगवान ने यहाँ के राजा रत्नाकर को दर्शन दिए, जिसके बाद उन्होंने इस मंदिर का निर्माण कराया। इसलिए इस क्षेत्र को हरिहर क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। हरि मतलब राजीव लोचन जी और उनके पास ही एक और मंदिर है जिसे हर यानी राजराजेश्वर कहा जाता है। अभी जो मंदिर है यह करीब सातवीं सदी का है। प्राप्त शिलालेख के अनुसार इसका निर्माण नलवंशी नरेश विलासतुंग ने कराया था।
भगवान राजीवलोचन मंदिर प्रांगण मे ही राजिम तेलीन का भी मंदिर है। माना जाता है कि राजिम तेलीन भगवान की असीम भक्त थी। बताया जाता है कि इस क्षेत्र का पुराना नाम पद्मावती पुरी भी है, बाद में राजिम तेलीन के नाम पर राजिम नाम से जाना जाने लगा। मंदिर के उत्तर दिशा में स्थि द्वार से बाहर निकलने के बाद आप साक्षी गोपाल का दर्शन कर सकते हैं। साथ ही मंदिर के चारों ओर नृसिंह अवतार, बद्री अवतार, वामनावतार, वराह अवतार यानी चार अवतारों का दर्शन कर सकते हैं।
मंदिर में निर्मित मूर्तियाँ और दीवारों पर उकेरी गई कलाकृतियाँ शानदार है। ये कलाकृतियाँ अत्यंत ही मनोरम और मनमोहक है। मंदिर देखने में सफेद दिखता है लेकिन वास्तव में यह सफेद नहीं है। मंदिर का अधिकांशतः हिस्सा पत्थर और ऊपर का हिस्सा ईट से बना है। चूने की पुताई की वजह से मंदिर सफेद दिखता है।
भगवान के तीन दिव्य रुपों के होते हैं दर्शन – राजीव लोचन मंदिर में भगवान के तीन रुपों के दर्शन होते हैं। सुबह में भगवान के बाल्य रुप, दोपहर में युवा अवस्था और रात में वृद्धावस्था के दर्शन होते हैं।
आरती और भोग – भगवान को दाल चावल और सब्जी का भोग लगता है। सुबह में आरती और भोग के बाद मंदिर 12 बजे बंद कर दिया जाता है। कहा जाता है कि भगवान तब शयन करते हैं। इसके लिए उनका बिस्तर भी लगाया जाता है। जिसके बाद पुनः 2.30 में मंदिर खुलता है और आरती, भोग लगता है। इसके बाद शाम में दो आरती होती है। आरती के बाद भगवान को भोग लगाया जाता है और फिर उनके शयन के लिए बिस्तर लगाया जाता है। शनिवार के दिन भगवान की विशेष पूजा की जाती है, उनका विशेष श्रृंगार भी किया जाता है। राजीव लोचन भगवान को तिल के तेल से लेपा जाता है, फिर श्रृंगार किया जाता है।
रहस्य – लोगों और वहाँ के पुजारियों को मानना है कि भगवान यहाँ साक्षात प्रकट होते हैं। उनके होने का अनुभव लोगों ने किया है। कहा जाता है कि कई बार ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान ने भोग को ग्रहण किया है। कई बार दाल चावल पर हाथ के निशान मिले हैं। साथ ही कई बार यह भी देखा गया है कि भगवान के बिस्तर पर तेल, तकिये आदि बिखरे पड़े रहते हैं। कई चैनलों ने इसकी पड़ताल भी की और अधिकतर पड़ताल में यह रहस्य सही पाया गया है।
कैसे पहुँचें: राजीव लोचन मंदिर रायपुर से करीब 45-50 कि.मी. दूर है। जाने के लिए आप अपनी स्वयं के वाहन से भी जा सकते हैं। अगर आप बस से जाना चाहें तो पचपेढ़ी से आपको बस मिल जाएगी। राजिम बस स्टैंड से थोड़ी दूर पर मंदिर स्थित है। आप वहाँ से पैदल या रिक्शा लेकर जा सकते हैं।