दिल्ली यात्रा...।
कहते हैं कि पैसा जब ज्यादा होता है तब उस मकान में सुखाया जाता है । मतलब घर मकान खर्च के ऐसे स्रोत हैं जहां औकात भर सब कुछ खप सकता है धन, कालाधन सब कुछ । चाहें तो आप सोने की किवाङ लगवा टलें । मकान के अलावा पुराने जमाने के मकबरे भी ऐसे सोख्ते हो सकते हैं यह भी भारत में दिख जायेगा । रियल एस्टेट कारोबार नाम का कोई चीज तब अस्तित्व में नहीं होता था । शाही इमारतो, मकबरों की दुनिया स्टेट से जुड़ी होती थीं । तब काली कमाई की आज की अवधारणा भी नहीं होती थी । भ्रष्टाचार तभी था और आज भी है लेकिन शाही खजाने में शाही और प्रजा खर्च को लेकर स्पष्ट विभाजक लकीर तब नहीं होती थी । आज जनता हिसाब मांगती है शाही खर्च का और सरकार हिसाब मांग रही रियल एस्टेट में निजी खर्च का ।
इमारतों में ताजमहल चरम शाही खर्च का प्रतीक है लेकिन उसकी डिजाइनिंग का पुरखा हुमायूं का मकबरा भी कमजोर नहीं है । जीते जी कमजोर दिखने वाला हुमायूं अपने मरने के बाद मजबूती का अहसास अपने मकाबरे में करा जाता है । एक कमजोर या अस्थिर शासक की कमजोरी को दुनिया से ढंक कर उसकी मजबूती का डंका पीटने कोशिश गाढे प्रेम के गारे के बिना नहीं बन सकती थी । हुमायूं की विधवा ने अपने मरहूम खाविंद की याद में याद में जो कुछ गढा वह अद्भुत है । यहां भी प्रेम का रंग गाढा है । एक पुरुष शाहजहां का अपनी पत्नियों में से किसी एक अजुर्मंद बानो के प्रति समर्पण का मूर्त ताजमहल है तो हुमायूं का मकबरा अपने एक केवल एक पति के प्रति असंदिग्ध आस्था का प्रतीक दिखाई देता है । शाहजहां की कई पत्नियों में से एक के लिए बनी इमारत की तुलना में हमीदा का केवल एक पति ..! एक स्त्री हमीदा बानो के प्रेम की मूर्त अभिव्यक्ति साधारण चीज तो नहीं ही है । इस प्रेम को सरकार होने के मौके अकबर ने मुहैया कराये । उसने 'दाम' की व्यवस्था कर अपने वालिद की इज्ततबख्शी करने में कोई कंजूसी नहीं की । ठेकेदार अगमू चौधरी की विधवा आज के कैशलेस दौर में अब अपने प्रेम को कैसे प्रकट करें और महगू चौधरी अपने पिता की इज्जतबख्शी का रास्ता कैसे निकाले !
हुमायूं के वालिद बाबर का कर्मक्षेत्र आगरा रहा । बेटा अकबर ने भी आगरा से शासन किया जबकि खुद हुमायूं का मकबरा दिल्ली में बना हुआ है । दिल्ली में खूंटा गाङना एक संदेश देता था कि मुगल अब हिंदुस्तान में रहेंगे । दिल्ली से दूर रहकर भी दिल्ली का मोह कैसे भंग हो सकता था ! कुतुबमीनार परिसर की विभिन्न इमारतें और उनकी विषय -वस्तु हुमायूं और अकबर दोनों के लिए लुभावनी रही होंगी ही । इस्लाम का ध्वज कुतुबमीनार तो गगन चूम रहा था जो आज भी तारीख दर्ज कराये हुए है । हुमायूं को दिल्ली पसंद थी लेकिन दिल्ली को हुमायूं नहीं । दिल्ली ने अपनी छाती पर अलाई दरवाजा ,इल्तुतमिश का मकबरा, कुवत-उल-इस्लाम मस्जिद सबको बर्दाश्त किया है सिवाय दीनपनाह महल में हुमायूं के रहने को । अकबर समझ चुका था कि दुर्भाग्य को फिर से मुगल गले नहीं लगायेंगे ।
..... राजधानी आगरा से दूर इमारत एक स्त्री की देख- रेख में बनवाना मामूली घटना तो नहीं ही है । शाहजहां की भेंट हमीदा से धरती पर नहीं हो सकी थी लेकिन शाहजहां की प्रेम से उसकी परदादी का प्रेम कतई कमजोर नहीं दिखता । जन्नत में खुर्रम जब हमीदा से मिला होगा तो उसकी पीठ जरूरत होगी हमीदा ने । प्रेम की भाषा पढ़ने के लिए और इसके लिए भी कि इस प्रेम को पकड़ने के लिए जिन प्रतीको, आकारों की जरूरत थी उसने उसे हुमायूं के मकबरे से ही लिया । वो बगीचा का डिजाइन , फव्वारे ,नहरें ... तो ताजमहल को हुमायूं के मकबरे का उन्नत रुप कहा जाता है । अनगढ पत्थरों पर गारे का मसाला थोपकर और बाहरी दीवारों पर लाल बलुआ पत्थर चिपकाकर जो इमारत बनवाने की परंपरा दिल्ली के सुल्तानों ने आरंभ की थी वह हुमायूं तक सफर करती है । फारसी- हिंदुस्तानी स्थापत्य का कुशल सम्मिश्रण वाले मकबरे का मुख्य भाग एक ऊंचे चबूतरे पर स्थित है । चबूतरा में चारों और मेहराबदार डिजाइनिंग की गई है । चबूतरा के तहखाने में कक्ष भी बने हुए हैं जिन तक रोशनी पहुंचाने के लिए जहां -तहां रोशनदान लगे हुए हैं । भीतर के मुख्य कक्ष में हुमायूं सोया हुआ है । इस कक्ष के चारों ओर चार झरोखों से रोशनी भीतर आती है और चारों ओर एक -एक कक्ष बने हुए हैं जहां हुमायूं को संबल प्रदान करने के लिए उसके रिश्तेदार भी डेरा डाले आराम फरमा रहे हैं । इनकी डिजाइनिंग ऐसी की गई है कि कक्ष एक सीध में दिखे । मुख्य कक्ष की छत खूबसूरती से बना है । कहते हैं कि यह हिस्सा सुनहरा था जो मुगलों के गुरबत के दिनों में बदरंग हो गया । आज यह प्लास्टर से ढक दिया गया है ।
ताजमहल चिकना है जो शाहजहांकालीन मुगल सल्तनत की शांति और वैभव की बेलन से वक्त की छाती पर बनायी गयी रोटी है तो हुमायूं का मकबरा स्थिरता के लिए जूझ चुके एक अभागा निर्वासित बादशाह के अदम्य हौसला से वक्त पर मारा गया पत्थर है आसमां में सुराख के लिए । जब 1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने दिल्ली पर कब्जा किया तो भारतीयों कि भविष्य में किसी एक व्यक्ति के नाम पर एक हो जाने की किसी संभावना को खत्म करने की गरज से हुमायूं के मकबरे के तहखानों में छिपे बहादुरशाह जफर के सभी पुत्रों एवं पौत्रों को वहां से निकाल कर हडसन के द्वारा गोली मार दी गई । अद्भुत संयोग है कि इनके मकबरे हुमायूं का मकाबरा में ही बने हुए हैं । यह त्रासदी ही है इस हत्याकांड के साथ निर्वासन का प्रतीक हुमायूं के नाम के साथ अंतिम रूप मुगलों के निर्वासन की कहानी जुड़ गई । वक्त -वक्त की बात है । तब कुछेक लोग निर्वासन झेलने को अभिशप्त हो जाते थे और आज लगभग सारे इंसान ही निर्वासन झेल रहे हैं । आत्म निर्वसन...! यही मध्यकालीन और आधुनिक होने का फर्क भी है । दिल्ली में यदि आप आज किसी के मेहमान बन कर उसके साथ दस--बीस दिन सफलतापूर्वक गुजार लें तो यकीन मानिए मेजबान आपका सच्चा शुभेच्छु है, सच्चा मित्र है ।
हुमायूं का मकबरा की मेजबानी आज तक दिल्ली कर रही है तो दिल्ली को दिलदार मारने का भ्रम हो सकता है लेकिन दरअसल यह इंसान की ताकत का मिथक तोड़ने वाला है । जिनकी कभी बादशाहत थी, हुकुम पर जान न्यौछावर होता था, प्रजा में मान था ,डर था आज उनकी ओर लोग मुड़कर देखते भी नहीं । नाम और काम तो शायद ही बहुतों को पता हो !! एक खालिस विरानापन...। गुलबदन बेगम की परिश्रम से लिखी गई हुमायूंनामा भी आज का काम नहीं आ रहा है । मतलब प्रेस भी एक सीमा के आगे मदद नहीं कर सकता । आज जिनकी दिल्ली में हुकूमत है उसके लिए यह एक आईना है कि देखो इंसानों की बस्ती में तुम्हारी यादें कितनी पैबस्त रहेंगी और किस किस रूप में रहेंगी साहब ! हुमायूं हुमायूं हमायूं ...का नारा लग रहा है आज भी क्या !! चमङे के सिक्के चलाने का किस्सा तो हुमायूं के साथ भी जुड़ा हुआ है । नये प्रकार का सिक्का.... अर्थव्यवस्था.... हिंदुस्तान और आम इंसान !! शाही प्रयोग का सिलसिला लगातार आज तक जारी है । कतार में लगकर पैसा निकालने वाला इंसान कतार में ही लगकर भविष्य में आपकी यत्न से गढी प्रतिमा का दर्शन करेगा न , इसकी उम्मीद वास्तव में रखनी चाहिए क्या ? ऊंचाई पर बैठे इंसान की चमक फैक्टरी में बने बिजली के बल्ब के समान होती है जो जबतक जलता है तबतक उसके चारों ओर प्रकाश बिखरने का भ्रम पैदा होता है और बल्ब के बूझते अंधेरा....। फ्यूज बल्ब को कौन पूछता है !
किसी छोटे कस्बे या गांव से दिल्ली जाने पर पता चलता है कि आप जिसके यहां ठहरने गए हैं उसकी दिनचर्या में ठहराव तो है ही नहीं । सभी हिंदुस्तान में होते हुए भी हुमायूं बन गए हैं । मशीन पर आदमी काम कर रहा है कि आदमी पर मशीन दिल्ली में आप गच्चा खा सकते हैं । बादशाह सलामत रहें इसकी फिक्र आज की दिल्ली पुलिस करती है और गुजरे बादशाहों की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण । बादशाहों की यही पुरातत्व विभाग वाली जगह शायद इंसानों के लिए शांति हेतु बच गये हैं और तमाशबीनों के लिए इंडिया गेट । कैमरा क्लिक...!
कैसे पहुंचे :- दिल्ली देश के हर हिस्से से जुङी हुई है । रेल, सङक तथा वायुमार्ग किसी से पहुंच सकते हैं । दिल्ली में एक स्थान से दूसरे स्थान जाने के लिए तीव्र तथा आरामदायक मेट्रो ट्रेन की सुविधा उपलब्ध है । डीटीडीसी की बस सेवा और आटोटैक्सी तथा पर्यटन निगम की बसों का भी उपयोग कर सकते हैं ।
कहां ठहरें :- हर पर्यटन स्थल के नजदीक एवं पहाङगंज, पुरानी दिल्ली में बजट में होटल मिल जाते हैं ।
क्या देखें :- लोटस टेंपल, इंडियागेट, कुतुबमीनार, लालकिला , चांदनी चौक, नेशनल म्यूजियम, अक्षरधाम मंदिर, राजघाट, हुमायूं का मकबरा, कनाट पैलेस मार्केट, तुगलक शासकों की इमारतें इत्यादि ।
© अमित लोकप्रिय