मार्केटिंग की दुनिया में काम करने का यही फायदा है कि आप को बाकी दुनिया को करीब से जानने का मौका मिलता है। और दुनिया को करीब से जानने के लिए सबसे ज़रूरी है उन लोगों से करीब होना जिनको आप जानना चाहते हो। आप मार्केटिंग कर ही नहीं सकते अगर आप अपने कस्टमर को अच्छे से पहचानते नहीं हो। इसी के चलते मार्किट रिसर्च के लिए मैं पहुँची लखनऊ। यहाँ जाने का जैसे ही पता चला तो टुंडे कबाब कि तसवीरें मेरी आँखों के सामने आ गयी और मैं एक्ससाइटमेंट में आधे घंटे के लिए काम को छोड़कर सिर्फ गूगल पर टुंडे कबाब सर्च करने लगी। कई बार आप किसी चीज़ के बारे में इतना सुन लेते हो कि उसको पाना और खाना आपकी ज़िन्दगी का एक छोटा सा लक्ष्य बन जाता है। कुछ ऐसा ही है मेरा रिश्ता टुंडे कबाब के साथ। दोस्तों ने बोल बोल कर इतना चढ़ा दिया था कि मैं तरस रही थी वहाँ जाने के लिए। शायद इसे ही मार्केटिंग कहते है, मैं बस दुआ कर रही थी कि कबाब मेरी उम्मीदों पर खरा उतरे।
जब मैं सुबह कि फ्लाइट से लखनऊ पहुँची तो मुझे अंदाजा नहीं था कि मेरे पास कितना खाली समय होने वाला है। किस्मत से मार्किट रिसर्च शुरू हुई पुराने लखनऊ में बड़ा इमामबाड़ा के पास। करीबन 3 बजे मैं जब काम से फ्री हुई, सीधा इमामबाड़ा की तरफ चल पड़ी। आइये आपको भी ले चलती हूँ अपने साथ लखनऊ के सफर पर:
बड़ा इमामबाड़ा और भूल भुलैया
लखनऊ में टुंडे कबाब से अलग भी एक दुनिया है जो मेरे जैसे बाहरवाले तभी समझ पाते है जब वो यहाँ आते हैं। मैं भी इमामबाड़ा पहुँचने से पहले थोड़ी देर लखनऊ की गलियों में खो सी गयी। एक अलग संस्कृति जो हमारे इतिहास के साथ जुड़ी हुई है, उसको इतने करीब से देखने में अलग ही मज़ा है जो आपको सीधा किसी और ज़माने में ले जाता है । इमामबाड़ा में घुसते ही आपको गाइड का ऑप्शन मिलेगा जिसे आपक ज़रूर ले लेना क्योंकि भूल भुलैया की तरह बनाया गया इमामबाड़ा में आप खो जाओगे। गाइड आपका मनोरंजन भी करते हैं। आपके पास ऑप्शन है सोलो या ग्रुप के साथ गाइड लेने का। मैं ग्रुप में गयी और बहुत मज़ा आया क्योंकि इतने सारे लोगों के अनुभव को आप इतने पास से देख पाते हैं।
आसफी इमामबाड़ा के नाम से भी मशहूर, यह 1784 में नवाब असफ-उड-दौला द्वारा बनवाया गया था। इसके अंदर का हॉल दुनिया के सबसे विशाल गुम्बद में से एक है। और इसके भूल भुलैया में अगर आप खो गए तो फिर आप सीढ़ियों और डेड एन्ड के जाल में ऐसा फंसोगे के निकाले ना निकलोगे।
इमामबाड़ा के अंदर ही एक खूबसूरत स्टेपवेल भी है। उसकी टिकट अलग से लगती है पर आप वहाँ भी ज़रूर जाइएगा क्योंकि आपक अनुभव अधूरा है इस जगह को पूरी तरह देखे बिना।
रूमी दरवाज़ा
असफ-उड-दौला साहब ने इमामबाड़ा के थोड़ी सी दुरी पर एक शाही दरवाज़ा बनवाया था जिसकी ऊँचाई 60 फ़ीट है। सड़क इसके बीच में से गुज़रती है और सेल्फी लेने के लिए आपको दरवाज़े थोड़ा दूर खड़ा होना पड़ेगा क्योंकि इतना विशाल गेट आपकी फोटो में आ नहीं पाएगा। आर्किटेक्चर का लाजवाब उदहारण है यह दरवाज़ा।
हज़रतगंज
जब तक इमामबाड़ा और रूमी दरवाज़ा से निकली शाम हो चुकी थी और सूरज डूब रहा था। गर्म धूप धीरे धीरे सर्द हवा से डर कर कम हुई जा रही थी और यही वक़्त था जब पेट कुछ गरमा गर्म खाने की तलाश में लखनऊ के सबसे फेमस इलाके हज़रतगंज में ले पहुँचा। वहाँ जाकर मैंने खूब सारी चाट खायी। यहाँ की बास्केट चाट काफी फेमस है। और इसके बाद वक़्त आ गया था अपना एक सपना पूरा करने का। हज़रतगंज से सिर्फ तीन किलोमीटर दूर नज़ीराबाद में स्थित है दुनिया की सबसे फेमस टुंडे कबाबी की दूकान (रेस्टोरेंट)।
टुंडे कबाबी
पहुँचते ही मैंने सबसे पहले तो एक इंस्टाग्राम पर स्टोरी डाली, दोस्तों को चिढ़ाने का मैं कोई मौका नहीं छोड़ती। फिर गलौटी कबाब और उलटे तवा के परांठे का एक डबल आर्डर दिया। उसके बाद मैं र लालच में ऐसा डूबी कि नौबत यह आगयी थी मेरा पेट खराब होना शायद पक्का हो गया था। पर कबाब थे ही इतने बेहतरीन, मुँह में घुल रहे थे और मैं भी एक के बाद एक आर्डर करे जा रही थी। आप लोगों को तो मैं यही कहूँगी कि कश्मीर के बाद जन्नत मैं टुंडे कबाबी कि दूकान पर देखी थी।
देखिए वीकेंड पर अगर वर्क ट्रिप आए तो ज़्यादा परेशान नहीं होइए बस Tripoto पर पढ़िए कि उस शहर में सबसे बढ़िया खाने कि जगह कौन-सी है और मंत्रमुग्ध हो जाइये। मुझे विशवास है आप मेरा आर्टिकल पढ़ने के बाद टुंडे कबाब के बारे में सोच तो ज़रूर रहे होंगे।
तो देर किस बात की है, उठाइये अपना बैग और थोड़ी हाजमोला, और खो जाइये लखनऊ के खान पान में। और जब आप वहाँ पहुँच जाएँ तो, मुस्कुराइए आप लखनऊ में हैं।