देखो ज़िन्दगी में काम तो करना ही पड़ेगा, कुछ लोग अपनी मेहनत से बिज़नेस खड़ा करते हैं और इसीलिए अपनी मर्ज़ी के मालिक होते हैं। मैं खुद दूसरी केटेगरी में आती हूँ। मैं नौकरी पेशा औरत हूँ और अपने काम से खुश भी हूँ। अगर आप शिकायत करते हैं कि आप काम कि वजह से ज़्यादा बाहर नहीं जा पाते तो माफ़ कीजियेगा मैं आपको ही दोषी करार दूँगी। एक ज़िद्द और जज़्बा होना चाहिए, सब कुछ मुमकिन है। जैसा कि आप लोग जानते हैं मेरा काम मुझे काफी जगह ले जाता है। मैं आपको कोयम्बटूर, इंदौर के बारे में तो पहले ही बता चुकी हूँ। इस बार मेरा काम मुझे ले कर गया राजस्थान कि जाने माने शहर जोधपुर कि गलियों में। गयी तो मैं वहां रिसर्च के लिए थी, पर मेरे जैसे ट्रेवल के दीवानों आप ज़्यादा देर रोक नहीं सकते। जैसे ही काम ख़तम हुआ और हम निकल पड़े अपना झोला लेकर सड़कें नापने। तो आइये बताती हूँ मैं इस नीले शहर में हुए अपने अनुभव के बारे में।
मैं मुंबई से जोधपुर सुबह 6 बजे की फ्लाइट से किसी तरह अपनी नींद को कुर्बान करके पहुंची। २ घंटे बाद उतरते ही हम लोग काम पर निकल गए। वैसे जल्दी शुरू करने का फायदा यह हुआ कि 1 बजे तक मैं अपना उस दिन का काम निपटा चुकी थी। अब वक़्त था घूमने का। अपनी ऑफिस कि कॉलीग को भी मैंने साथ जाने के लिए पटा लिया। फिर बस हमने अपने कैब वाले भैया को सीधा हमें महरानगढ किले ले जाने को कहा।
महरानगढ फोर्ट
महरानगढ किला जोधपुर से 5 किलोमीटर कि दुरी पर है। इसे राओ जोधा ने 1459 में बनवाया था। यह बना है लाल बलुआ पत्थर से और किले में चार ऐसे विशाल कमरे हैं जो राजा महाराजों के रहन सहन के बारे में बिन बोले भी बहुत कुछ कह जाते हैं। यहाँ का म्यूजियम भारत के नामी म्यूजियम की लिस्ट में गिना जाता है। तलवार से भाले तक, राजाओं की पोषाक से लेकर बर्तनों तक, आपको राजा के महल में मिलने वाली साड़ी चीज़ों के यहाँ दर्शन हो जायेंगे। किला सुबह 0830 से शाम 1700 तक पर्यटकों के लिए खुला रहता है। किले से काफी करीब जिस जगह पर हम गए वो थी, जसवंत ठाड़ा।
जसवंत ठाड़ा
सफेद संगेमरमर से बना यह करिश्मा मंदिर की तरह बनाया गया है। आर्किटेक्चर की तो दाद देनी पड़ेगी। एक छोटे से तालाब और गार्डन की वजह से यह जगह और भी खूबसूरत लगती है। नक्काशी और मूर्तियों से भरा यह वाड़ा अपनी एक अलग पहचान बनता है। दो औरतें साथ में घूम रही थी, तो जितना भी अपने आप क रोकना चाहे पर शॉपिंग करने से हम खुद को रोक नहीं पाए। इसके लिए हम गए घंटाघर बाज़ार।
घंटाघर बाज़ार
नयी सड़क पर स्थित घंटाघर बाज़ार यहाँ की सबसे फेमस मार्किट है। अगर आपको स्थानीय चीज़ों का शौक है तो यहाँ आना आपके लिए काफी फायदेमंद होगा। मसाले, राजस्थानी पोशाक, गहने और हस्तशिल्प (हेंडीक्राफ्ट)आइटम आपको इस मार्किट में आराम से अच्छे दामों पर मिल जायेंगे। यहां की बंधनी की कारीगरी काफी चर्चित है, ज़रूर देख़ने और खरीदने की कोशिश करियेगा। इस सब के बात हम थक के चकनाचूर हो चुके थे और हमें सोने के आलावा कोई और अच्छा विकल्प नहीं दिख रहा था। पर कहते हैं न हर रात की सुबह होती है, बस फिर सुबह तैयार होकर हम संडे के दिन बन ठन कर निकल गए काम पर जल्दी। क्योंकि हमें जल्दी से काम ख़तम करके थोड़ा और घूमना था। हमारा अगला टारगेट था उमैद भवन पैलेस।
उमैद भवन पैलेस
महाराजा उमैद सिंह द्वारा बनाया गया हुआ महल कम से कम 10 लाख स्क्वैर फ़ीट संगेमरमर और स्पेशल तरीके के बलुआ पत्थर से बना है। इस बलुआ पत्थर को चित्तर भी कहते हैं और इसी की वजह से इस महल को काफी लोग चित्तर महल के नाम से भी जानते हैं। महल तीन भागों में बँटा हुआ है जिसमें पहला भाग एक होटल की तरह बना हुआ है। दूसरा भाग एक म्यूजियम है और तीसरा भाग यहाँ के राजसी के लिए रखा गया है। करीबन तीन घंटों में आप यहाँ का पूरा दौरा कर लोगे। एक काफी खूबसूरत एंटीक चीज़ों की मार्किट भी आती है यहाँ के रास्ते पर, ज़रूर जाना वहाँ भी।
दो काम वाले दिनों में भी हम दो औरतों ने काफी कुछ देख लिया इस नीले शहर में। यहां के नीले घर, नीले गगन के तले बहुत ही प्यारे लगते हैं और शहर की पहचान और जान हैं। आपको काफी जगह से यह नीला नज़ारा देखने को मिल जाएगा। कैमरे में ज़रूर उतारने की कोशिश करना, पर यकीन मानिये वो नज़ारा पहले आपके दिल में छाप जायेगा। यहाँ घूमने के लिए कपड़ा बाजार, सोजाति गेट, सरदार बाज़ार, मोची बाज़ार के साथ साथ काफी सारे कूल कैफ़े भी है जो समय की कमी की वजह से देख नहीं पायी। आप लोग जब जोधपुर जाएँ तो यह सब भी कवर कर लेना और अपने अनुभव के बारे में त्रिपोटो पर लिखना मत भूलियेगा।