क्या हमारा मन नहीं करता कि रोज़ केवड़े और गुलाब जल से नहाएँ ? पैर पड़ें तो मखमली गलीचे पर ? शाही खानसामा 56 भोग बना कर परोसे ? छत पर हीरे-मोतियों से जड़े चमचमाते झूमर लटकें हों ? क्या ऐसा सिर्फ राज परिवारों को नसीब होता था ?
जवाब है हाँ। अगर आप मिडल क्लास हैं तो ऐसी ऐशो-आराम की चीज़ों को या तो फिल्मों में देख सकते हैं या फिर शाही महलों में।
शाही महलों से याद आया, भारत में ही एक ऐसा महल भी है जो लन्दन के बकिंघम पैलेस से चार गुना ज़्यादा बड़ा है और बकिंघम पैलेस जितना ही महफूज़ भी है ?
ये महल राजस्थान में नहीं, बल्कि गुजरात के वड़ोदरा जिले में हैं।
लक्ष्मी विलास पैलेस
वड़ोदरा के लक्ष्मी विलास पैलेस में आपका स्वागत है
ये पैलेस सन 1890 में महाराजा सत्याजिराओ गायकवाड़ त्रितीय ने बनवाया था और ये आज भी गुजरात के भूतपूर्व शासकों, गायकवाड़ों का रिहायशी महल है। भारतीय और यूरोपियन वास्तुकला के मिलन से तराशे हुए इस महल के साथ लगकर एक गोल्फ कोर्स है, एक 600 साल पुरानी बावली है, एक चिड़ियाघर और एक म्यूज़ियम भी है। आज जिसे म्यूज़ियम कहा जाता है, उसे महल के बच्चों के पढ़ने के लिए स्कूल के रूप में काम में लिया जाता था। गायकवाड़ महाराज ने बच्चों को स्कूल लाने-ले जाने के लिए एक छोटी से मिनी ट्रेन भी चलवा रखी थी। इस महल के पहले तल पर आज भी गायकवाड़ परिवार रहता है।
इस महल में शीशे का काम किया हुआ है, जो दुनिया के किसी भी महल से कहीं ज़्यादा है। आकार में लंदन के बकिंघम पैलेस से चार गुना ज़्यादा बड़ा है।
ये दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे महंगे महलों में से एक है, जहाँ आज भी शाही परिवार के लोग रहते हैं।
सुनकर मज़ा आया ? और सुनो,
महल की वास्तुकला
इस महल की वास्तुकला इतनी शानदार है कि इसके सामने कई विज्ञापन और फ़िल्में शूट की हुई हैं।
महल की वास्तुकला में विक्टोरियन गोथिक शैली के झलक मिल जाती है, तो कई हिस्से मुग़लई मीनारों की शक्ल के हैं। रानी के महल पर गुम्बद गुजरात के जैन मंदिरों के गुम्बदों के आकार के हैं। महल में घूमते हुए आपको स्कॉटिश लैम्प, इटालियन मार्बल, माणक जैसे लाल कांच, करीने से तराशे हुए बाग़, दीवारों पर वीनस की पच्चीकारी का जड़ाऊ काम और पुरानी लिफ्ट जैसी दुर्लभ चीज़ें देखने को मिल जाएँगी।
एंट्री
महल की एंट्री राजमहल रोड या पैलेस रोड से है। जो भी गार्ड ड्यूटी पर होगा वो आपकी गाड़ी का नंबर लिखकर आपको पार्किंग एरिया का रास्ता बता देगा। पार्किंग फ्री है। फिर महल के गेट पर आपको टिकट खरीदनी होगी, जो भारतीयों के लिए ₹225 की और विदेशी सैलानियों के लिए ₹400 की है। कइयों के ये दाम ज़्यादा लगते हैं, मगर टिकट के दाम में ही एक ऑडियो गाइड और एक पोस्टकार्ड मिलता है। ऑडियो गाइड की वजह से इस महल में सैलानियों के झुण्ड नहीं दिखते, ना ही गाइडों की ऊँची-ऊँची आवाज़ें सुननी पड़ती हैं। आप जितनी चाहे फोटोग्राफी भी कर सकते हैं, मगर पैलेस के बाहर तक ही। मैनें चुपके से महल के अंदर की फोटोज भी खींच ली।
महल में गार्ड्स की कड़ी मुस्तैदी रहती है, तो अगर किसी ने आपको अंदर फोटो खींचते पकड़ लिया तो पकड़ कर फोटो डिलीट करवाए बिना नहीं छोड़ेगा।
एंट्री गेट से टिकट लेकर अंदर जाने पर आपको पैलेस ऑफिस से ऑडियो गाइड मिल जाSगा। वैसे तो आपको ऑडियो गाइड को लगातार चलाते रहने को कहा जायेगा और एक घंटे में लौटाने की पाबंदी लगाई जाएगी, मगर मैं तो दो घंटे तक आराम से ऑडियो गाइड के साथ घूमता रहा।
आइए पैलेस में घूमें :
1. रॉयल गार्डन : आप इस बागों में आराम से घूम-फिर सकते हो और जितनी चाहे उतनी तस्वीरें खींच सकते हो।
आपको बागों में लोग गोल्फ खेलते दिख जाएँगे।
2. शाही सीढ़ियाँ : गेट से अंदर घुसकर आप ऑडियो गाइड चालु कर सकते हैं, और गाइड की आवाज़ आपको पुराने वक़्त में ले जाएगी। आप अपने आप को महाराजा जैसा समझने लगेंगे। दीवारों पर राजकुमार-राजकुमारियों की पेंटिंग्स लगी हैं और सीढ़ियों पर बेशकीमती मोरों की मूर्तियाँ विराजमान हैं।
3. हथियार हॉल : यहाँ आपको तलवार-भाले, ढाल और युद्ध के कई हथियार देखने को मिलेंगे। हथियार देखकर और इनकी जानकारी पाकर आपको महसूस होगा कि युद्ध में कितनी मार-काट मचती थी। मज़बूत दिल वाले ज़रूर देखें।
4. कोरोनेशन हॉल : ये वो जगह है, जहाँ नए राजकुमार का राजतिलक किया जाता था, इसलिए इस हॉल में घुसने से पहले जूते उतारना ज़रूरी हैं। इस पवित्र वातावरण वाले हॉल में महान चित्रकार राजा रवि वर्मा की पेंटिंग लगी हुई है। ये वही मशहूर चित्रकार हैं जिन्होनें माँ सरस्वती की तस्वीर बनायी थी।
5. हाथी हॉल : फिर गलियारे को पार करते ही आप हाथी हॉल में घुसते हैं, जिसमें हाथी के दांत जैसा रंग किया हुआ है, दीवारों पर महीन नक्काशी और झूमर इतने भीमकाय कि देखकर साँसें ही थम जाएँ।
6. इटालियन आँगन : हॉल के आगे खुले बरामदे में इटैलियन फव्वारे लगे हैं। मेरा मन किया कि एक सिक्का फ़ेंक कर मन्नत माँग लूँ। क्या पता ये महल मेरा हो जाए !
7. दरबार हॉल : इसके बाद आखिर में दरबार हॉल है, जहाँ शाही परिवार के त्योहार और उत्सव मनाए जाते हैं। इस हॉल की ख़ास बात ये है कि इतने बड़े हॉल में एक भी पिलर नहीं है।
वीनस की नक्काशीदार कला वाला आंगन इटली के 12 कारीगरों ने 18 महीनों में बनाया था।
लन्दन की एक कंपनी ने इस महल में कांच की कारीगरी का काम किया है। ये एक इकलौता ऐसा महल है जहाँ आपको कांच पर हिंदी देवी-देवताओं की कलाकृतियां देखने को मिलेंगी।
राजकुमारियों का गुड़ियाघर भी देखा जहाँ लकड़ी की गुड़ियाएँ रखी जाती थी।
8. नवलखी बावली : महल के उत्तर में नवलखी बावली है जिसे बनाने में राजा को 9 लाख सोने की अशर्फियों का खर्चा आया था। इसी से इसका नाम भी निकला है। बावली की खुदाई का काम गुर्जर साम्राज्य के वक़्त हुआ था और 15वीं शताब्दी में मुज़फ्फर शाह के राज के दौरान इसका जीर्णोद्धार करवाया गया।
9 लाख सोने की अशर्फियाँ, पानी भरने वाली बावली की खातिर।
ऐसी बावलियाँ गर्मी के मौसम के लिए पानी जमा करने के लिए बनवाई जाती थी। ऐसे जोहड़ ज़्यादातर राजस्थान और गुजरात में ही देखे जाते हैं।
कैसे पहुँचें
वड़ोदरा पहुँचने के लिए आपको भारत के किसी भी बड़े शहर से ट्रेन, बस या फ्लाइट मिल जाएगी। दिल्ली से मुंबई जाने वाली लगभग हर ट्रेन वड़ोदरा से होकर गुज़रती है। वैसे वड़ोदरा अपने आप में कोई बड़ा शहर नहीं है। शहर में दूर-से-दूर इलाका क्यों न हो, आप ओला, उबर , जुगनू से 20 मिनट में पहुँच सकते हैं। महल के गुम्बद आपको शहर में हर जगह से दिख जाएँगे।
जाने के लिए सबसे सही जगह
इस राजसी महल में घूमने के लिए आप वड़ोदरा जाने की टिकट बुक करवा ही लो। जाने के लिए सबसे सही समय नवरात्रि का रहेगा। दुर्गा माता को समर्पित इस त्यौहार के दौरान ये शहर रौशनी में जैसे नहा लेता है।
अगर आपको ये आर्टिकल पढ़कर अच्छा लगा, तो कमेंट्स में अपने विचार ज़रूर लिखिए और अगर अपने सफरनामें लिखने हैं तो यहाँ क्लिक करें।
ट्रिपोटो अब हिंदी में | ट्रैवल से जुड़ी कहानियाँ और समाचार पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें |
यह आर्टिकल अनुवादित है। ओरिजिनल आर्टिकल पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।