#देव_सूर्यमंदिर
पत्थर निशान छोङ गये ...
एक जगह है देव, बिहार के औरंगाबाद में । नाम से ही आस्था का बोध । बिहार ख्यात सूर्य मंदिर । पत्थरों पर कला की उस्तादी। आज भी यह इलाका बहुत ज्यादा सघन नहीं है। तब हजार साल पहले इस निर्जन इलाके में एक भव्य मंदिर का निर्माण की योजना बनाना और उसे मूर्त रूप देना अपने में एक विचित्र रहस्य है। रहस्य यह भी कि भगवान विश्वकर्मा ने आखिर यहीं क्यों एक रात में मंदिर बनवाये। कुछ और कथाएं...। मंदिर की दीवार पर लगे एक शिलापट्ट से इसका निर्माण काल की जो तस्वीर उभरती है वह मिथकीय है। लोक मान्यता के अनुसार राजा इला के पुत्र ऐल ने इसे बनवाया था। एक स्थानीय तालाब में नहाकर निकलने पर राजा अपने कुष्ठ रोग ठीक होने के उपलक्ष्य में मंदिर का निर्माण करवाया। ऐतिहासिकता के निर्वहन में एक खतरा की असुविधा होता है। ऐतिहासिक साक्ष्य हमें वस्तुनिष्ठता की ओर ढकेलती हैं। मिथक को चुनने के अपने फायदे हैं। तथ्यों को तोङकर प्रस्तुत करना सहज हो जाता है । आस्था को अधिक से अधिक गहरा करने में पुरानापन अचूक नुस्खा होता है। वैसे इतिहास लेखन की भी अपनी सीमायें होती हैं लेकिन मिथक साक्ष्य की जगह किंदवतियों को अपनी नीवं की ईंट बनाते हैं।
देव मंदिर की संरचना से स्पष्ट है कि नागर शैली की इस मंदिर का निर्माण आज से हजार बारह सौ वर्ष पूर्व हुआ होगा। इसकी शैली लिंगराज मंदिर और खजुराहो की मंदिरों से मिलती जुलती है। भारत में मंदिर निर्माण का उपलब्ध पुरातात्विक साक्ष्य गुप्तकाल से मिलना शुरू होता है जबकि साहित्यिक साक्ष्य मंदिर निर्माण को मौर्य काल तक पहुंचा देता है। उधर लोहे तकनीक की विश्वव्यापी खोज को अधिक से अधिक तीन हजार साल पीछे ढकेला जा सकता है। ऐसे में जिस मंदिर में लोहे का उपयोग हुआ हो उसकी प्राचीनता तीन से पांच हजार साल पहले नहीं खींचा जा सकता । देव की प्राचीनता चाहे जो भी हो यह मंदिर मगध क्षेत्र का गौरव है । मंदिर एक चहारदीवारी के भीतर है। आस पास की खुदाई में प्राप्त खंडित मूर्तियों को चहारदीवारी में चिन दिया गया है। अपनी सुरक्षा के लिए भगवान को जो पहरा चाहिए चहारदीवारी उसे अंजाम दे रहा है। मंदिर में प्रयुक्त पत्थर बलुआ लगते हैं। सूर्य से जुङी मान्यता के अनुसार मंदिर की हूबहू आकृति के डिजायन खास संख्या में मंदिर के द्वार और विमान में बनाये गये हैं। द्वार से जुङी संरचना को सफेद रंग से पुताई कर दिया गया है जो मंदिर के पत्थरों के रंग से विलग है। मूल संरचना में इसे एक बङे चबूतरे पर बनाया गया था जो आस पास की भूमि से लगभग छह फीट ऊंचा रहा होगा। यह स्थिति यूरोपीय चित्रकार विलियम डेनियल के देव आकर मंदिर की चित्रकारी करने (लगभग 1790 ई०) तक मोटे तौर पर बनी दिखती है। उसके चित्र में जो देव मंदिर दिखता है उसको देखने के बाद आज आ चुके परिवर्तन को आसानी से पकङा जा सकता है। देव किला का एक कोना डेनियल की पेंटिंग में देखा जा सकता है। अब आस- पास की भूमि और चबूतरा की भूमि एक मिलान हो गई है। भगवान को लोगों ने पैक कर दिया है। धकियाना आज भी जारी है। नतीजा है मंदिर परिसर के चारों ओर से बनते मकानों का दखल और खोमचे वालों की पेट पालती दुकानें।
मंदिर परिसर में एक नयी संरचना भक्तों की सुविधा और चढावा के निमित बनायी गयी हैं। यहाँ विवाह मंडप बने हुए हैं जहाँ सूर्य देवता को साक्षी मानकर पुरोहित विवाह सम्पन्न कराता है। वही सूर्य देवता जिनका एक सिरा महाभारत की बिन ब्याही मां कुन्ती से जुङता है । आज की कई 'कुंतियों' के प्रति मामूली सहानुभूति तक न दिखाने वाला समाज सूर्य को साक्षी मानकर सात जन्म की कसमें भी खा सकता है खुद सूर्य देवता भी इस होशियारी पर मुग्ध हो जाते होंगे। मनुष्य जिन्दाबाद ...जिन्दाबाघ !!
मंदिर के प्रवेश द्वार के दोनों बगल वाले झरोखे के मूल ढांचे के साथ दो मेहराबनुमा ढांचा सीढियों की शक्ल में और सङक से लगते प्रवेश द्वार के साथ एक बङा मेहराबी द्वार की संरचना जोङ दी गई है जो निहायत घटिया जोङ है। स्थापत्य के साथ क्रूर मजाक जैसे कोई पैंट -शर्ट पहन कर पैंट के ऊपर से नाङा वाला अंडरवियर पहन ले । पैसे के अभाव और जागरूकता के अभाव में कोई बदसूरती कैसे जुङती है उसे आज का सूर्य मंदिर साफ दिखा रहा है। एक गरीब मुल्क की प्राथमिकता में कीमती जनता का भोजन होता है और यह जनता ही तो वोट देती है ,भगवान तो नेताओं के पास आने से रहे !! उनके नाम से यदि जनता गोलबंदी करे तो वोट का लालच भगवान को कोई 'इंदिरा आवास' दिलवा सकता है।
...देव में कभी एक रियासत भी मुकम्मल रहा था। राजा जगन्नाथ इस रियासत के प्रसिद्ध जमींदार रहे। अंग्रेजों ने बिहार बंगाल में कोई राजवाङा को स्वतंत्र नहीं रहने दिया था । पहले के सभी रियासतें ब्रिटिश सत्ता के अधीन जमींदारी की हैसियत में ला दी गईं । देव राजा हो या दरभंगा महाराज इनमें से किसी की दस्तावेजी हैसियत ग्वालियर, बीकानेर, बूंदी की तरह नहीं थी। आज देव राजपरिवार का आवास जिसे स्थानीय लोग देव किला कहते हैं वारिस के अभाव में अपनी मृत्यु की ओर लगातार बढ रहा है। कई दावेदार हैं पर आपसी तालमेल के अभाव और दस्तावेजी संघर्ष में मामला उलझा हुआ है और इस मूछ की लङाई में 'देव किला' पर्यटन की संभावना का द्वार बंद करता जा रहा है। ...कबूतरों की तो बहार है। ये हैं देव राज के असली वारिस जिनके पितामह परपितामह को शायद राजा जगन्नाथ ने दाना चुगाये होंगे।
देव राजा ने मंदिर के समीप बङा तालाब बनवाया था जो छठ पर्व के अवसर पर व्रतियों के अर्घ्य का एक मात्र केन्द्र होता है। छठ के समय भारी भीङ तालाब के इसी पानी में नहाकर अर्घ्य देती है। प्रशासन किसी हादसे को रोकने के लिए मुस्तैद रहता है । हाल ही में देव पोखरा के चारों और सौन्दर्यीकरण करवाया गया है लेकिन आस पास की जमीन पर सूअरों और मानव मल की मौजूदगी प्रशासन की सीमाओं और देव सूर्य मंदिर न्यास समिति की लापरवाही की गवाही है। शायद हमारे संस्कारों में ही कुछ गङबङियां हैं या गरीबी जनित कोई लाचारी। स्वच्छता पर आस्था भारी पङ जाती है। छठ और देव के संबंध नाभिनाल-सा है। गहमा गहमी के बीच मेला का आनंद लेने से लोग नहीं चुकते । मेला की जमीन स्थायी अतिक्रमण का शिकार होते जा रही हैं फिर भी वह सारी व्यवस्थाएं जो आजकल के मेलों की पहचान रही है, देव मेला में दिखती हैं। व्यवसाय के चूल्हों में केवल मेलाबाज दुकानदार ही नहीं जलते वह भी तपते हैं जिन्होनें देव के संकीर्ण गलियों में स्थायी दुकान खोल रखा है। कार्तिक छठ में लोकल की चांदी रहती है । दुकान की कमाई के अलावा मकान के कमरे अस्थायी होटल में तब्दील कर भी कुछ हसोथ लिया जाता है। बाकी दिन तो पास के ढिबरा थाना की कारवाई या थाना पर कारवाई की खबर ही सुनने--गुनने के लिए काफी होती हैं। अब भवानीपुर के कामता सिंह 'काम' -सा कौन कथा लिखने वाला यहाँ बचा है जो 'भूलते भागते क्षण' की रचना कर हमें स्मृतियों को संयोजना सिखाये ! ...स्मृति लोप अच्छा ही है इससे चुनाव में पार्टियों के द्वारा पिछले चुनाव में किये गये वायदे का हिसाब जनता को नहीं मांगना पङता ।
....दिनकर की एक पंक्ति है -"हम मूर्तियों को इसलिए नहीं पूजते कि उसमें देवता बसता है बल्कि इसलिए पूजते हैं क्योंकि उसने तराशे जाने की पीङा सही है।" ऐसी पीङा को मनुष्यों की जमात सहना चाहती है क्या ...! सह ले तो कोई ह्वेनसांग बन जाये और तब कोई गीत रच जाये !!
कैसे पहुंचे :- नजदीकी रेलवे स्टेशन अनुग्रह नारायण रोड, गया और वाराणसी है । देव नेशनल हाइवे 2 से जुङा हुआ है । गया, पटना और वाराणसी हवाईअड्डा पर उतरने के बाद सङक मार्ग से देव आराम से पहुंचा जा सकता है ।
कहां ठहरें :- बिहार के औरंगाबाद शहर में अनेक किफायती होटल हैं ।
By Amit Lokpriya
amitlokpriya@gmail.com
https://lokpriyakpi.com/2018/07/19/देव_सूर्यमंदिर-पत्थर-निश/