पत्थर के सनम

Tripoto
19th Aug 2019
Day 1

पत्थर के सनम !

उस चालाक लोमड़ी ने शायद भांप लिया था कि उसकी संतानें उस जैसी शातिर नहीं हो पायेंगी । ऐसी स्थिति में भावी पीढ़ी उसके बनाए नए ठिकाने पर आगे भी कब्जा बरकरार रख सकेंगी, इसमें उसे संदेह था । आशंका थी इसलिए उसने अपनी जङभूमि को ही अपने चिरकालीन निंद्रा के लिए चुना । सैनिक की नौकरी में जीवन से रिटायरमेंट के बाद आराम के लिए घर ..।

वह बिहार के सहसराम का था । पिता हसन खां इसी इलाके के जागीरदार थे । यहीं के मिट्टी में लोटे होने के कारण माटी ने भी पुकार लगाई होगी और शायद इसलिए भी फरीद ने अपने मकबरा के लिए सासाराम को चुना । दिल्ली पर सासाराम भारी पङ गया , शेरशाह के जीते जी और मरने के बाद भी । वैसे भी दिल्ली को राजधानी बनाकर कोई हुकूमत दीर्घजीवी नहीं बन पायी है । कह सकते हैं कि दिल्ली शापित है । हुमायूं को ले डूबा । डूब गये पृथ्वी राज चौहान और ... ।

सासाराम, कोलकाता से दिल्ली जाने वाले राष्ट्रीय राजपथ 2 पर स्थित है । इस ग्रांट ट्रंक रोड का निर्माण खुद शेरशाह सूरी ने करवाया था । यहां से होकर ग्रांड कार्ड रेलवे भी गुजरती है । सासाराम भोजपुर का हिस्सा है । नजदीक में ही वाराणसी, चुनार और कैमूर की पहाङियां हैं । मकबरा देखने के लिए सङक और रेलमार्ग दोनों से पहुंचा जा सकता है । मुंडेश्वरी मंदिर से अम्बा लौटते वक्त दोपहर के भोजन की योजना गोल कर हम इंजीनियर उमेश के खर्च पर स्कार्पियों गाङी से सासाराम पहुंचे थे । शाम हो चली थी इसलिए वक्त कम था । अयोध्या सिंह हरिऔध की पंक्तियां '' दिवस का अवसान समीप था, गगन था कुछ लोहित हो चला ...' सामने चरितार्थ हो रही थी । नतीजन कम समय में ही फरीद से मुलाकात का दवाब था । फटाफट प्रवेश की टिकटें ली गईं । पेट पूजा के लिए झाल-मूरी को सबने चबा लिया और घुस गये परिसर में । भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने हाल ही के वर्षों में मकबरा के चारों ओर ईंट की चहारदीवारी बना दी है जो 1990 के दशक में नहीं हुआ करता था । मतलब जलाशय को पर्दा में कर दिया गया है । आश्चर्य यह है कि जब यह बेपर्दा हुआ करता था तब बहुत-से नर-मादा अपने को भी यहां बेपर्दा कर लिया करते थे और इसकी कुख्याति चारों ओर हो गई थी । शेरशाह को अपने आराम में यह खलल बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने शयन परिसर में राहगीरों को महज नैतिक आराम करने की सुविधा दिये का आवेदन पुरातत्व विभाग को दिया । आवेदन बहुत देर से मंजूर हुआ । भारत में सरकार के काम करने की गति से शेरशाह खासा नाराज होगा इसे न मानने की कोई वजह नहीं दिखता । वह शासक रह चुका था और अपनी प्रशासनिक चुस्ती के लिए मशहूर था । प्रवेश द्वार पार कर हम जैसे ही परिसर में दाखिल हुए सामने लौह-ढांचे की भांति मकबरा खङा था । प्रवेश द्वार की जगह ऊचांई पर बनी है जहां से नीचे सीढियों से उतर कर पत्थर के बने उस पुलनुमा गलियारा से गुजरना पङता है जो तालाब के बीच खङे मकबरे को प्रवेश द्वार से जोङता है । गलियारा जहां खत्म होता है वहां से फिर सीढियां ऊपर जाने के लिए शुरु हो जाती हैं । मतलब मकबरा का फर्श और प्रवेश द्वार का फर्श दोनों ऊंचाई पर बने हुए हैं ।

....तो एक बङा-सा तालाब है जिसके बीचोबीच पत्थर के लगभग नौ मीटर ऊंचे लगभग 300 वर्गमीटर के एक वर्गाकार चबूतरे पर मकबरा विराजमान है । चबूतरे के चारों दिशाओं में किनारों से 15 फीट की दूरी तक चबूतरे को खाली रखा गया है । इसके बाद दीवार ऊपर तक चली जाती है जिसके ऊपर बना छत ही मकबरे वाली इमारत का फर्श है । मकबरा की इमारत के चारों ओर कुछ खुली जगह छोङ दिया गया है जिस पर चलते हुए इमारत की परिक्रमा की जा सकती है । मकबरा की इमारत के फर्श पर चारों कोनों पर अष्टभुजीय गुम्बद बने हुए हैैं । इमारत ईंट के ऊपर लाल बलुुुआ पत्थर चिपका कर बना है और वीथिका में खुलने वाले दरवाजों से होकर रोशनी और हवा भीतर कक्ष तक पहुंचती है । इमारत के भीतर शेरशाह और उसके परिजन दफनाये गये हैं और प्रत्येक कब्र को चादरपोशी की गई है । कक्ष की छत में विशालकाय गुम्बद बना हुआ है । मुख्य गुम्बद की ऊंचाई चबूतरा से लगभग 37.5 मीटर है । कक्ष में कोई विशेष सजावट नहीं है । पश्चिमी दीवार के मेहराब के ऊपर के आले पर इमारत के निर्माण सलीम शाह के द्वारा पूरा होना लिखा हुआ है । गुम्बद जिन दीवारों पर भार दिये हुए है उसकी मोटाई अच्छी है । बाहर से देखने पर मुख्य गुम्बद के साथ लगी छोटी छतरियां और फर्श के कोने पर बने छोटे गुम्बद भी दिखाई पङते हैं और लगता है कि छोटे लोगों के बीच से एक बङा शख्स आसमां की ओर बढ रहा है । मुलायम होकर कहें तो वास्तुुुकार मोहम्मद आलीवाल खान की डिजायन पर 1545 ईस्वी में निर्मित अफगान शैली का यह पत्थर का सनम सबको लुभा रहा है ! मकबरा वाले इमारत के चारों ओर की वीथिका में कोई विशेष नक्काशी नहीं की गई है । स्तंभों पर मेहराब बने हुए हैं । कहीं -कहीं अरबी भाषा में कुछ लिखा गया है । आज से कुछ साल पहले मकबरा के छत पर जाया जा सकता था जिसका नाजायज फायदा कुछ शोहदे उठाते थे । फलत: अब छत को आम नागरिकों के लिए बंद कर दिया गया है ।

परिसर के भीतर प्रवेश -द्वार की बायीं ओर आगे बढने पर एकमंजिला लम्बा खुला बरामदा बना हुआ है जो संभवत: पहेरदारों और सेवकों के आराम के लिए बनाया गया है । परिसर के तीन हिस्सों पर यहां से निगरानी रखी जा सकती है । परिसर में आज केवङा फूल के पौधे भी लगा दिये गये हैं जो इस्लामिक परंपरा के मेल में दिखते हैं ।

मकबरा दर्शन से स्पष्ट हो गया कि शेरशाह को पता था कि इतिहास के पन्नों से जगह कैसे छीनी जाती हैं । बाबर ने अपने पुत्र हुमायूं को शेर खां से चौकन्ना रहने की ताकीद की थी । वह उसकी क्षमता को पहचान गया था । नशेङी हुमायूं इस चेतावनी का महत्व नहीं समझ सका । फरीद ने बाबर को सही साबित किया । शेर को एक ही वार में मारकर फरीद ने शेरशाह का रुतबा हासिल किया , यह पढ कर हम बङे हुए लेकिन जब बङे हुए तो यह भी पढा कि उसने अपनी ताकत बढाने के लिए शासक वर्ग की धनी महिलाओं से नजदीकियां बढाई, उन्हें प्रेम जाल में फांस कर काफी धन भी ऐंठे । हमें ऐसा मौका नसीब नहीं हुआ , नहीं हो सकता । .... क्यों ? ... न तो हममें शेर वाली शेरशाही वीरता है और न ही लोमङी जैसी शेरशाही चतुराई । ... शाम के छ: बजने वाले थे । सूर्य तालाब में पानी को छूते हुए क्षितिज में धंसता जा रहा था । मेरे सहित राजू, सुमंत, जयराम, उमेश, मदन , सुनील सबने विदाई फोटोग्राफी ली । बाहर निकलते ही ड्राइवर पंडित दिनेश की खोज शुरु हुई । " ....आ गेलअ त चलअ पंडी जी....!"

© अमित लोकप्रिय

amitlokpriya@gmail.com

Photo of पत्थर के सनम by Amit Lokpriya
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