जब हम तीन दोस्त कालिंजर के लिए निकले तो वहाँ का समृध्द इतिहास जानने के बाद हमारा उत्साह चरम पर था। कालिंजर मुख्य रूप से शेरशाह सूरी के यहाँ हमला करने से इतिहास के पन्नों में प्रसिध्द है। पहले हम इलाहाबाद से ट्रेन पकड़ के कालिंजर के नजदीकी स्टेशन अतर्रा रात के करीब 2 बजे पहुँचे। फिर हमने होटल में कमरा लेने की बजाय वहीं सुबह होने का इंतजार किया।
अगले दिन सुबह 7 बजे ही हम अतर्रा से बस पकड़कर निकले। बस खूबसूरत हरे भरे पहाड़ों से गुजरती हुई हमें कालिंजर ले चली। जल्द ही हम उस जगह पर उतरे जहाँ से किले की घुमावदार खड़ी चढ़ाई शुरू होती है। यहीं से हरे भरे पेड़ों के उस पार किले की दीवारें और बुर्ज दिखाई देना शुरू हो जाते हैं। लगभग 1 किमी की चढ़ाई के बाद हम किले के मुख्य द्वार पर पहुँचे जहाँ हमने 10-10 रूपये में तीन टिकिट लिए और आगे निकल गये। किले में कुछ पुरानी इमारतें और महलों से होते हुए हम उस जगह पर पहुँचे जहाँ इस किले का मुख्य आकर्षण है, नीलकंठ महादेव मंदिर।
यह मंदिर गुप्त काल का माना जाता है और यहाँ की खास बात ये है कि यहाँ का मुख्य पुजारी एक मुसलमान है। यहीं भगवान शिव की 10 फीट से भी ऊँची एक प्रतिमा है जो पत्थर को तराश के बनाई गई है।
यही वो सफर था जिसके बाद मेरा सफरों का सफर शुरू हो गया था।
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