
अगली रोज़ सुबह हम सब जल्दी उठे नहाया-खाया और फिर बाबाधाम की और चल पड़े और मुंगेर जिले मे प्रवेश कर गए अब हम सबके पाँव मे थोड़ा थोड़ा दर्द होना शुरू होगया था, हम मे से एक की तबियत थोड़ी ख़राब होगई तो उसने रुकने को कँहा और हम फिर एक शिविर मे रुक गए। बाहर सूर्यदेव ने अपना प्रकोप दिखाना शरू कर दिया तो हम सबने ये निर्णय लिया कि आज पूरे दिन हम उसी शिविर मे आराम शाम को फिर से अपनी यात्रा की चालू करेंगें और हम सबने पूरा दिन वंही बिताया वंही दिन का खाना खाया और कित्रिम झरने का आनंद लिया।
शाम को हम सबने ने अपनी यात्रा आरम्भ की रास्ते मे छत्तर नाम के स्थान पर मशहूर फलहारी जलेबी का आनंद लिया, यह फलहारी जिलेबी चावल से नही बल्कि आलू और केले से बनाई जाती है और यह सिर्फ उसी जगह पर पाई जाती है। जब हम जलेबी का आनंद उठा रहे थे उसी वक़्त बहुत तेज़ बारिश शुरू होगई बहुत से काँवरिया तो कहीं न कंही छुप गए पर कुछ काँवरिया अभी भी "बाबा नगरिया दूर है पर जाना जरूर है" का गान करते हुवे उसी बारिश मे भींगते हुवे आगे बढ़ते जा रहे थे।
हमने भी अपनी यात्रा जारी रखी और बोल-बम का नारा लगाते हुवे आगे बढ़ते गए, फिर रात एक शिविर मैं गुज़ारी।





हम सात मित्र निकल पड़े काँवर लेकर बाबा बैधनाथ की नगरी देवघर के लिए।
हम सातो बम ( काँवर यात्रा करने वाले को 'बम' बोल कर संबोधित किया जाता है ) कटिहार जंक्शन से टाटा लिंक एक्सप्रेस ट्रेन पर बैठकर निकल पड़े अपनी तीर्थ यात्रा की और हमारा सबसे पहला पड़ाव था नौगछिया स्टेशन। नौगछिया मे हमे और भी काँवरिया बम मिले, और हम सब ने एक टाटा मैजिक गाड़ी बुक कर ली सुल्तानगंज के लिए।
हमारा सफर की असली शुरुआत तो सुल्तानगंज (भागलपुर जिला) से करनी थी, यहीं से काँवरिया बम गंगा नदी मैं स्नान और संकल्प ले कर अपनी पद यात्रा की शरुवात करते है। हमने भी ऐसा ही किया सबसे पहले उत्तरवाहिनी गंगा मे स्नान किया और लोटे मे जल ले कर पण्डा जी के पास पहुचे वँहा पंडा जी ने हमे संकल्प दिलवाया की यह गंगा का जल हम बाबा बैधनाथ और बाबा बासुकीनाथ को अर्पण करेंगे।
मध्यरात्रि होने से पहले ही हम सबने अपनी +100km की पद यात्रा आरम्भ कर दी।
जब हम सुल्तानगंज से निकले तो देखा कि दोनों और कांवरियो के लिए शिविर बने है जँहा काँवरिया की आराम करने की वयवस्था हैं,
हम भी कुछ दूर चलने के बाद एक शिविर मे आराम करने के लिए रुके और वहीँ सो गए।








सुबह उठने के तुरन्त बाद हमने थोड़ा सा जल-पान किया और आगे की यात्रा के लिए निकल पड़े। आगे बदुआ नदी मिली जो कि मुंगेर और बांका जिले को अलग करती थी। नदी को हमने बीच से ही पार कर लिया क्योंकि वो एक रेतेली नदी थी जिसमे बस नाम भर का ही पानी था। बांका जिले का दृश्य मनमोहक था क्योंकि वँहा छोटे पहाड़ और बाँध थे,उसी मे से एक बांध जिसका नाम 'हनुमान बांध' था वो रास्ते मे पड़ा वँहा हम सब रुके और वँहा के दृश्यों का मज़ा लिया उसके बाद आया 'टोना पठार' वँहा भी खूब मज़े किये और मोबाइल पर कुछ तस्वीरे भी क़ैद की और आगे बढ़ चले। इसी तरह ये दिन भी ख़त्म हो चला।।।














चौथे दिन हम सब ज्यादा रुके नही और बाबाधाम को और तेज़ी से आगे बढ़ते चले। बस कटिहार शिविर मे आराम और पैर की मालिश करवाई।
देवघर के रास्ते मे बहुत सारे निःशुल्क शिविर होते है जँहा आप रुक कर निःशुल्क भोजन तथा मालिश का सेवा प्राप्त कर सकते है




26 के सुबह सुबह ही हम ने चंदनिया नदी पार कर लिया,उस नदी के जल मे पता नही ऐसा क्या था कि सबके पैरों की थकावट अचानक ग़ायब सी होगई और शरीर मे नई ऊर्जा का संचार होने लगा। उसी नई ऊर्जा के साथ हम तेज़ी से आगे बढ़ने ने लगे और लगभग दिन के ढ़ेर बजे (1:30) तक 'झारखण्ड द्वार' पहुँच गए यँहा से देवघर की दूरी मात्र 10km थी। जैसे हम बिहार से झारखण्ड मे प्रवेश लिए वँहा हमे एक टोकन दिया गया,शायद ये काँवरिया की गिनती रखने के लिए था और आगे बढ़ते ही हमारे ऊपर कित्रिम झरने से हल्की हल्की पानी की फुहारें पड़ने लगी, इसी तरह से झारखंड सरकार सारे काँवरिया बम का स्वागत करती है। झारखण्ड का माहौल बिहार से थोड़ा सा अलग था यँहा भक्तो की सुविधाओं के लिए ज्यादा निःशुल्क शिविर थे। हम अलग-अलग शिविर मे उठते बैठते शाम तक बाबा नगरी पहुँच गए।
वँहा हमारे एक जानने वाले पाण्डा ने हमारे रात रुकने का वयवस्था किया। अब अगली सुबह मंदिर जाना था और मंदिर मे घुसने के लिए बहुत लंबी लाइन लगनी पड़ती है, इसलिए हम ने आज रात अच्छे से आराम करने का निर्णय किया।








छठाः और हमारी यात्रा का आख़री दिन। हम सुबह 3:30 मे उठ गए और जल्दी जल्दी नाहा कर तैयार होगये आज बाबा बैधनाथ और बाबा बासुकिनाथ को जल चढ़ाने का दिन था, हम सब को पण्डा जी ने संकल्प करवाया और हम दौड़ पड़े बाबा के मंदिर की और मंदिर की लाइन कम से कम 25km लंबी थी लाइन कभी तेज़ी से बढ़ती तो कभी बहुत धीरे धीरे चलती किसी तरह ऊपर नीचे आगे पीछे होते हुवे हम बाबा के दरबार मे पहुँचे,वँहा हमे सिर्फ 1सेकंड का समय मिला उसी समय मे हमे बाबा के दर्शन और जल अर्पित करना था और हमने किया भी फिर हम मंदिर से बाहर आये और जल लेकर माता पार्वती के मंदिर गए और उन्हें जल अर्पित किया।
उसके बाद मंदिर प्रांगण से कुछ प्रशाद लिया फिर शिवगंगा के दर्शन किये (मान्यता ये है कि शिवगंगा जो कि एक तालाब है उसे रावण ने बनाया था)।
अब हमे बाबा बासुकिनाथ के धाम जाना था जो कि बाबा बैधनाथ धाम से 44km दूर है और वो झारखण्ड के दुमका जिला मैं आता है। हमने एक ऑटो रिज़र्व किया और निकल पड़े बाबा बासुकिनाथ की तरफ़। रास्ते मे घोरमारा से हमने वँहा का मशहूर पेड़ा खरीदा और और बाबा बासुकिनाथ पहुँच कर बाबा को सुल्तानगंज से लाया हुआ गंगा जल अर्पित किया।
बासुकिनाथ मे हमने चुरा और मुकूलदाना प्रशाद के रूप मे खरीदा और शाम को बस पकड़ कर वापस कटिहार आगये।
इसी तरह हमारा ये तीर्थ यात्रा ख़त्म हुआ। महादेव ने चाहा तो फिर इस बाबाधाम आया जाएगा।





