BY NEHA
पर्यटन ग्राम हर्षिल, जिसे एक अंग्रेज ने संवारा। हर्षिल न सिर्फ सेबों के लिए जाना जाता है, बल्कि अपनी बेपनाह खूबसूरती के लिए भी पर्यटकों के बीच खासा प्रसिद्ध है। वह अंग्रेज था फ्रेडरिक ई. विल्सन, जो 1857 की क्रांति के बाद ब्रिटिश आर्मी छोड़कर भागीरथी घाटी में आया और यहीं का होकर रह गया। विल्सन ने एक सुदूर पहाड़ी क्षेत्र के लोगों को सेब की बागवानी सिखाई, जिसकी वजह से हर्षिल आज अपने सेबों के लिए प्रसिद्ध है। इसके अलावा भी बहुत कुछ है हर्षिल में, देवदार के आसमान छूते पेड़, बर्फ से ढके पहाड़, कल-कल बहती भागीरथी और उस पर बने पुल मन मोह लेते हैं। मैत्री और कैलाश शिखर के अलावा हर्षिल के दाईं ओर श्रीकंठ पर्वत गर्व से सीना ताने खड़ा है, जिसके पीछे केदारनाथ स्थित है। हर्षिल से होकर तिब्बत और भारत के बीच का एक रास्ता भी गुज़रता है, जो व्यापार के लिए कभी इस्तेमाल किया जाता रहा होगा। यहाँ के लोग सेब की बागवानी करते हैं और पर्यटन भी उनकी आय का एक जरिया है। सर्दियों में यहाँ के लोग नीचे उत्तरकाशी की ओर दूसरे स्थानों पर चले जाते हैं और अप्रैल-मई शुरू होते ही लोग लौट आते हैं। हर्षिल तिब्बत सीमा से लगा है और यहां भोटिया लोगों की भी खासी संख्या है।
ऐसे शुरू हुआ सफर
ट्रिप का चौथा दिन था और तारीख थी 20 अप्रैल 2018। गोमुख से लौटकर हम गंगोत्री पहुँच चुके थे। बारिश लगातार जारी थी और हम थककर चूर। हमारे ग्रुप में कुल 12 लोग थे, जिनमें से सिर्फ चार लोग ही गोमुख गए थे, बाकी लोग गंगोत्री में ही थे। सुबह होते ही छह लोग कार से हर्षिल निकल चुके थे। बाकी छह बाइक से जाने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन बारिश थी कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। हमारा उस दिन नेलांग वैली जाने का प्लान था, जो खराब मौसम के कारण कैंसिल हो चुका था। अब हर्षिल जाने का ही विकल्प था। हमने रेनकोट डाला और निकल पड़े हर्षिल की ओर… बारिश के बीच सर्द हवाएँ कंपकंपी छुड़ाने लगी थीं। भैरो घाटी से आगे बारिश और भी तेज हो गई। देवदार के घने जंगलों के बीच से होते हुए हम हर्षिल पहुँचे। वहाँ गर्म चाय पीकर आखिरकार जान में जान आई।
हर्षिलः बेहिसाब खूबसूरती
गंगोत्री हाईवे से गुजरते हुए एक बोर्ड नजर आता है, पर्यटन ग्राम हर्षिल में आपका स्वागत है। बस मुड़ जाइए उस रास्ते पर और प्रकृति के साथ चलते रहिए। प्रवेश करते ही सबसे पहले कैंट क्षेत्र आता है। यहाँ महार रेजीमेंट के जवान बारहों महीने तैनात रहते हैं। हर्षिल में रुकने के लिए तमाम होटल और हट्स के भी आप्शन उपलब्ध हैं। भागीरथी नदी पर बने पुलों से गुजरते हुए आसपास के नजारे आंखों में बस से जाते हैं। हर्षिल सेब के बगीचों से घिरा हुआ है। यहाँ खाद्य एवं प्रसंस्करण की एक यूनिट भी है।
हर्षिल का पुराना पोस्ट आफिस
हर्षिल जाएँ तो वहाँ का पुराना पोस्ट आफिस देखना ना भूलें। आपने अगर राम तेरी गंगा मैली फिल्म देखी है तो आपको मंदाकिनी पर फिल्माए गए दृश्य भी याद होंगे, जिन्होंने उन दिनों खासी सनसनी मचाई थी। फिल्म की शूटिंग हर्षिल में ही हुई थी। फिल्म के एक सीन में मंदाकिनी राजीव कपूर को अपने गँव से खत भेजती हैं। वह पोस्ट आफिस हर्षिल में आज भी मौजूद है, पुराना लकड़ी का बना पोस्ट आफिस, जिसके बाहर लाल रंग का लेटर बाक्स लगा हुआ है। हालांकि हम जब वहाँ पहुँचे तो पोस्ट आफिस बंद था। फिर हमने एक कागज पर अपने नाम लिखकर उसका लिफाफा बनाया और लेटर बाक्स में डाल दिया। हालांकि वह खत अब तक नहीं पहुँचा है।
हर्षिल और पहाड़ी विल्सन
कहते हैं कि विल्सन जब हर्षिल पहुँचे तो उनके पास कुछ नहीं था, लेकिन कुछ ही दिनों में वह लकड़ी के एक मशहूर व्यापारी बन गए। उनसे जुड़े किस्से हर्षिल से लेकर पड़ोसी गाँव मुखबा तक सुने-सुनाए जाते हैं। विल्सन ने भागीरथी घाटी के लोगों को न केवल सेब की बागवानी सिखाई, बल्कि आलू और बीन्स पहाड़ों में लेकर आने का श्रेय भी पहाड़ी विल्सन को जाता है। यहाँ तक कि उन्होंने लोगों के लिए कई पुल भी बनवाए। इसके अलावा पड़ोसी गाँव मुखबा में उन्होंने एक मंदिर भी बनवाया, जो आज भी मौजूद है। यहाँ तक कि वहाँ के लोग आज भी बड़े अदब के साथ उनका नाम लेते हैं। भैरोघाटी में जाड़गंगा नदी पर बनाया गया 350 फीट का झूला पुल इनमें सबसे खास था। कहते हैं, पुल बन जाने के बाद भी लोग उससे होकर गुजरते नहीं थे। इस पर विल्सन ने अपने अरबी घोड़े को लेकर पुल पार किया ताकि लोगों को भरोसा हो जाए कि पुल मजबूत है। स्थानीय लोगों का मानना है कि चांदनी रात में विल्सन आज भी अपने घोड़े पर इसी पुल से होकर गुजरते हैं।
पहाड़ के साथ पहाड़ियों से विल्सन का लगाव
विल्सन को सिर्फ पहाड़ों से ही प्रेम नहीं था, बल्कि उनकी दोनों बीवीयाँ भी स्थानीय पहाड़ी महिला ही थीं। सबसे पहले उन्होंने रायमत्ता नामक एक महिला से शादी की, लेकिन उन्हें कोई औलाद नहीं हुई। जिसके बाद वो काफी उदास रहने लगे। फिर उनकी नजर पड़ोसी गाँव मुखबा की गुलाबी पर पड़ी, जिसकी खूबसूरती से वह इतने प्रभावित हुए कि विवाह का प्रस्ताव दे दिया। उनसे विल्सन को तीन बेटे हुए। बाद में हालात बदले और वह मसूरी आ गए और यहीं 1883 में उनकी मौत हो गई। मसूरी स्थित कैमल बैक रोड के कब्रिस्तान में गुलाबी के साथ वह कब्र में लेटे हुए हैं।
विल्सन हाउस
मैंने जब भी सुनी, अंग्रेजों के शोषण और अत्याचार की कहानियाँ ही सामने आईं। पहली बार एक ऐसा अंग्रेज मिला था जिसने न केवल लोगों की जिंदगियाँ बदल दीं, बल्कि लोगों के दिलों में बरसों बाद भी उनके लिए इज्जत नज़र आई। लोग बड़े अदब से विल्सन साहब कहकर उन्हें बुलाते हैं। हर्षिल स्थित विल्सन हाउस, अब वन विश्राम गृह है। कहते हैं 1850 के आसपास विल्सन गुलाबी और अपने बच्चों के साथ यहीं रहते थे। उस दौर में यहाँ लकड़ी का एक खूबसूरत घर हुआ करता था। हालांकि मौजूदा वन विश्राम गृह भी लकड़ी का ही बना हुआ है और बहुत खूबसूरत है। लेकिन, पुराने घर में एक बार आग लग गई और उसे बचाया नहीं जा सका। बाद में यहाँ एक नया विश्राम गृह बना। हालांकि गेट पर आज भी विल्सन हाउस का ही बोर्ड लगा है।
सेब का सीजन
हम हर्षिल में दो दिन रुके और फिर से यहाँ आना चाहते हैं, सेब के सीजन में। जब सेब की लाली से पूरी हर्षिल घाटी लाल नजर आए। अप्रैल में सेब की फ्लावरिंग होती है और सितंबर तक सेब तैयार हो जाते हैं और उनकी तुड़ाई शुरू हो जाती है। तो आइए हर्षिल और यकीन मानिए आप निराश नहीं होंगे।
कहाँ घूमें
* मुखबा- लोक कथाओं में गंगा का मायका माना जाने वाला मुखबा, हर्षिल से महज चार किमी की दूरी पर स्थित है और सड़क से जुड़ा है। यहाँ माँ गंगा का मंदिर और लकड़ी के बने खूबसूरत घर आकर्षण के केंद्र हैं।
* बगोरी- नेलांग और जादुंग के विस्थापितों के गाँव बगोरी में सेब के बगीचे हैं। गाँव के अंतिम छोर पर जाड़गंगा और भागीरथी का संगम है, जहाँ घाटी और पहाड़ के बेहद खूबसूरत दृश्य नजर आते हैं।
* धराली- गंगोत्री हाईवे पर स्थित धराली में कभी मंदिर समूह था, हालांकि शिवजी का प्राचीन मंदिर कल्प केदार अब भी यहाँ मौजूद है।
* गंगनानी- यह हर्षिल से 26 किमी पहले है और अपने गर्म पानी के झरने के लिए जाना जाता है।
कैसे पहुँचें –ऋषिकेश से ऋषिकेश-गंगोत्री से हाईवे होकर हर्षिल की दूरी करीब 260 किमी है। जबकि, देहरादून से मसूरी होते हुए हर्षिल की दूरी कम होकर 210 किमी के आसपास रह जाती है।
कहाँ रुकें – हर्षिल में जीएमवीएन का रेस्ट हाउस, वन विभाग और पीडब्ल्यूडी का गेस्ट हाउस है, जहाँ आप रुक सकते हैं। इसके अलावा अच्छे रिजॉर्ट से लेकर सस्ते होटल्स और हट्स-कैंप में रुकने की व्यवस्था भी यहाँ उपलब्ध है।