मां बेटी की यादगार कोंकण यात्रा

Tripoto
12th Jul 2016
Day 1

मुझसे अगर पूछा जाए कि मेरी सबसे यादगार यात्रा कौन सी है, तो मेरा जवाब होगा मां के साथ मुरुदेश्वर, जोग फॉल्स और गोकर्ण की 2016 के मॉनसून वाली यात्रा।
हम लखनऊ से पुणे मेरे कुछ काम से आए थे। मैंने पहले से ही यह यात्रा प्लान कर रखी थी, तो ट्रेन का रिज़र्वेशन पहले से ही था। हम सुबह 5:30 बजे मुरुदेश्वर स्टेशन पर उतरे। और निकाल पड़े स्टेशन के बाहर मिल रहे ऑटो से मुरुदेश्वर मंदिर की ओर। हम करीब 6:30 बजे पहुंचे और मंदिर के सामने नवीन बीच रिजॉर्ट में चेक इन किया। तैयार होकर मंदिर के दर्शन किए। भगवान शिव की इतनी सुन्दर, विशाल एवं अद्भुत प्रतिमा देखकर बहुत अच्छा लगा। सोचा तो था कि गोपुरम की लिफ्ट से गोपुरम के ऊपर जाकर नज़ारा देखें पर बड़ी लम्बी लाइन लगी थी और हमें शाम तक गोकर्ण पहुंचना था।
हमने रिजॉर्ट जाकर नाश्ता किया और सामान लेकर जोग फॉल्स होते हुए गोकर्ण तक की कैब कर ली।
जोग फॉल्स काके 5 झरनों का दृश्य अत्यंत मनोरम था। हल्की हल्की बारिश भी हो रही थी। पहाड़ियों पर उड़ते हुए बादल काफी करीब आ रहे थे। हम  मां बेटी ने खूब मस्ती की। गरम गरम भुट्टे खाए और खूब सारी तस्वीरें खींची। पार्किंग के पास एक मैगी स्टॉल पर गरमा गरम मैगी खाई और आगे गोकर्ण तक का सफर शुरू किया।
शाम करीब 7 बजे हम गोकर्ण पहुंचे। अपने होटल जाने से पहले हमने मंदिर दर्शन करने की सोची। दर्शन के लिए काफी भीड़ थी। हालांकि दर्शन में कोई तकलीफ़ नई हुई। मंदिर परिसर में गाय को फल खिलाकर गोकर्णनाथ के दर्शन पूर्ण किए।
और फिर हम पहुंचे गोकर्ण के प्रसिद्ध नमस्ते कैफे। हमारी बुकिंग बस 1 रात की थी। अगले दिन हमें वापस पुणे जाना था। हल्की फुल्की बारिश और हर तरफ हरियाली ही हरियाली। हम रूम में चेक इन करके ॐ बीच पहुंच गए जिसका एक रस्ता कैफे से निकलता है।
हल्की बारिश में चांद बादलों के पीछे से लुक्का चुप्पी खेलता हुआ अपनी चांदनी से रेत को चमका रहा था। अब गोकर्ण में आएं हैं, तो गाय तो सर्वोपरि हैं। बीच पर रात को खाने के बाद गाय भी ॐ बीच पर सोने आ गईं। प्रकृति, समुद्र, पशु, बरसात और लज़ीज़ खाना सब एक ही जगह पर। फिर हम दिन भर के थके सोने चले गए।
सुबह बहुत मनोरम थी। समुद्र की लहरों की आवाज़ से हम उठे और बालकनी से सीधे समुद्र देखते हुए चाय का लुत्फ उठाया। तैयार होकर रेस्टोरेंट में गए और लज़ीज़ नाश्ता किया। और समुद्र जैसे हमें तब से बुला रहा हो। नाश्ता खत्म होते ही हम ॐ बीच पर पहुंच गए। मां को समुद्र से सीपियां बटोरना हमेशा से पसंद है। वह अपने शौक में जैसे बिल्कुल बच्ची बन गई हों। बहुत भिन्न प्रकार की सीपियां एकत्र करके मझे दिखा रही थीं। मैंने भी कुछ अलग दिखने वाली सीपियां ढूंढ निकाली। और हम उन्हें घर लाने के लिए बैग में रखते गए।
अब बस दोपहर में हमारी ट्रेन की यात्रा के लिए तैयार होकर हम गोकर्ण स्टेशन पहुंच गए।
बड़ी उत्सुकता से इंतजार था दूधसागर फॉल्स का। मैं पहले दूधासागर ट्रेक पर जा चुकी थी। मां तब से इन फॉल्स को देखने को उत्सुक थीं। गोवा तो वो घूमी हुई थीं पर इधर आना नहीं हुआ। शाम 5:30 बजे के आस पास हर कोई ट्रेन की खिड़कियों और दरवाज़े के पास पहुंच गया। मॉनसून में दूधसागर का उफ़ान देखते ही बनता है।
मां को वह विहंगम दृश्य बहुत मनमोहक लगा। खूब सारी तस्वीरें लीं। और अगली सुबह हम पुणे पहुंच गए।शाम की लखनऊ की फ्लाइट लेकर हमारी मॉनसून कि यह कोंकण यात्रा समाप्त हुई।

Photo of मां बेटी की यादगार कोंकण यात्रा by Mrinal Singh

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