तीन साल पहले जब विष्णुदास चापके ने पूरी धरती का एक चक्कर लगाने की अपनी यात्रा शुरू की, उनको शायद ही पता था कि उनकी यह उपलब्धि उन्हें विष्णु डा गामा का शीर्षक दिला देगी।
कप्तान दिलीप डोण्डे, जिन्होंने 2010 में कुछ ऐसा ही अनोखा काम कर दिखाया था, उनके साथ एक इंटरव्यू के बाद उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में एक कमी महसूस की। ज़्यादा कुछ सोचे बिना, वो निकल पड़े अपनी दुनिया घूमने की यात्रा पर, जिसको पूरा करने के लिए 35 देश के दर्शन और 3 साल लगे।
कुछ ही महीने हुए हैं विष्णुदास को अपनी यात्रा पूरी करे हुए जो जहाँ से शुरू हुई, वहीं आकर खत्म भी हुई और जगह थी ठाणे स्टेशन। इनकी दिल दहला देने वाली कहानियाँ आपको लम्बे समय तक याद भी रहेंगी और घूमने के लिए प्रेरणा भी देंगी।
इनका अभियान सुनने में तो बहुत मज़ेदार लगता है पर उतना खतरनाक भी था। एक ऐसा समय भी था जब अर्जेंटीना- चिली बॉर्डर पर एक चोर ने इनको चाक़ू मारने की कोशिश करी थी पर वो किसी तरह वहाँ से बच निकले।
विष्णुदास की ईमानदारी भी उनके लिए भारी पड़ गई जब उन्होंने अमेरीका के अधिकारियों को सच बता दिया कि उनके पास ना तो नौकरी है, ना ज़्यादा पैसे, ना ही उनकी शादी हुई है और उन्होंने अपना मुंबई में बना घर भी बेच दिया है। इसी बात पर उनका वीज़ा रिजेक्ट हो गया और उनका सफर 90 दिन लंबा हो गया। ऐसे अनुभव आपका मनोबल तोड़ सकते हैं पर दुनिया में खूबसूरत लोगों की कमी नहीं है जो आपको किसी न किसी प्रकार में मदद करते हैं।
कोलंबिया में अपने नए पासपोर्ट का इंतज़ार करते हुए, उन्होंने एक स्थानीय अध्यापक एमेलिया का हाथ बंटाया। दो महीने बाद एमेलिया विष्णु को अपने बेटे की तरह देखने लगी और उन्ही की वजह से विष्णु को भी थोड़ी बहुत स्पैनिश समझ आने लगी।
चापके ने एक अच्छा उदहारण सिद्ध किया है। वो जहाँ भी जाते हैं वहाँ पेड़ पौधे लगाने की कोशिश करते हैं, 15 देशों में वो ऐसा कर भी चुके हैं।
अगर आप भी ऐसी किसी यात्रा पर जाना चाहते हैं तो बिलकुल अपने इरादों के पक्के रहिए। इन्हीं पक्के इरादों की वजह से लोग आपकी कहानी से आकर्षित होंगे और आपको रोटी, कपड़ा, छत की सुविधाएँ दे पाएँगे। यह विष्णुदास चापके की रणनीति और विश्वास ही था जिसकी वजह वो इतनी बढ़ी उपलब्धि हासिल कर पाएँ जिसकी कहानियाँ वो और हम सदियों तक सुनाते रहेंगे।
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