जब आप हिमाचल ट्रिप के बारे मे सोचते है तो आपको क्या याद आता है ? बड़े बड़े पेड़, गगनचुंबी पहाड़, बर्फ, खतरनाक रास्ते, बहुत तेज़ गति से बहता हुआ पानी, वादियाँ और प्रकृती की असीम सुंदरता । पर मुझे हिमाचल किसी और वजह से याद रहेगा, जो की मैं आप सभी के साथ साझा करने वाला हूँ ।
पर उससे पहले मैं अपने बारे मे बता देना चाहता हूँ ताकि आप लोगो मुझे और मेरे काम के बारे मे जान सके । मेरा नाम सारांश है और कोटा शहर में, जहाँ मे रहता हूँ वहाँ लोग प्यार से मुझे परिंदा कहते है और इसका मुख्य कारण है ट्रैवल व आर्ट फील्ड मे काम करने वाली संस्था “परिंदों का सफर” । परिंदों का सफर मे हम लोग कई काम करते है जैसे ट्रिप्स, फोटोग्राफी, फूड फेस्टिवल, एक्सिबिशन, पेंटिंग, हेरिटेज वॉक, बाइक राइड्स, और कई अलग अलग गतिविधियाँ जिससे शहर को कुछ नया मिल सके ।
हम लोग 19-24 जून को कसोल व खीरगंगा ट्रेक की ट्रिप करवा रहे है और मुझे वहाँ जाकर सारी व्यवस्थाएँ करके आनी थी तो मैंने अपने बहुत पुराने दोस्त और मेरे टीम मेम्बर पीयूष को कहा कि चल वादियों मे चलते है और वह तैयार भी हो गया ।
तो हम दोनों निकल पड़े कसोल और खीरगंगा ट्रेक की प्री-विसिट पर, मैंने कई लोगो से सुना था की जब आप खीरगंगा ट्रेक को शुरू करते है तो हिमाचली डॉग्स आपके साथ काफी दूर तक चलते है और ट्रेक के दौरान आपके साथ-साथ रहते है । मैंने जब यह सुना था तो मेरे मन मे भी यही चीज़ थी की अपने साथ भी ऐसा ही कोई एक डॉग चल चलेगा तो मजा आ जाएगा ।
और हुआ भी ऐसा है जब हम लोगो ने अपना ट्रेक शुरु किया तो हम लोगो के साथ 6 – 7 डॉग्स चलना शुरू हुए पर पता नहीं क्यों मेरी नज़र एक के ऊपर जाकर अटक सी गयी, और वह था कमांडो, यह नाम इसको मैंने दिया था । कमांडो के बारे मे बात करे तो यह सभी मे सबसे ज्यादा सुंदर, फनी , और समझदार कुत्ता था । जैसे जैसे हम सभी ट्रेक पर आगे बढ़ने लगे, सभी कुत्तों ने हमारा साथ छोड़ दिया था पर सिर्फ कमांडो ही था जो की हमारे आगे पीछे चल रहा था । उसके साथ चलने भर से इतनी सकारात्मक ऊर्जा मिल रही थी की हमारे कदम ही नहीं थक रहे थे । थोड़ी देर बाद हमे एहसास हुआ की वह हमारी सारी बाते समझ रहा है और उस पर प्रतिकृया भी दे रहा है, जैसे जल्दी चलने को कहना , खुद के पास बुलाना और उसको साथ बैठना, थकने पर उसको रुकने के लिए कहना और भी बहुत सी चिज़ें थी जो की वह समझ रहा था । उसके गले मे एक पट्टा बंधा हुआ था और उसी से हमने यह अंदाजा लगाया की शायद इसे इसके मालिक ने छोड़ दिया है ।
कमांडो ने पूरे 28 कि.मी. का ट्रेक हमारे साथ पूरा किया , बीच मे मात्र 2 कि.मी. ही वो गायब हुआ और सुबह जब हमने उसे देखा तो हम सभी लोग खुशी से एक साथ चिल्ला रहे थे और उसे भी हमें देख के शायद खुशी हुई जो कि उसके चेहरे से झलक रही थी । पूरे ट्रेक मे मैंने सबसे ज्यादा इसी की फोटोस ली, यहाँ तक कि उसके साथ भी कई सारी फोटोस ली । यहाँ तक की पीयूष को तो डॉग्स से फोबिया था पर उसे कमांडो से इतना प्यार हो गया था कि वो बिना डरे उसी के साथ घूम रहा था और फोटोस ले रहा था ।
हम ट्रेक भी साथ ही उतरे और हमे लगा था कि जहाँ से वो हमारे साथ चला था वह हमे वही छोड़ देगा या वही रुक जाएगा पर हमारा सोचना गलत था । इसके बाद कुछ ऐसा हुआ कि हम सभी इमोश्नल हो गए वह हमारे साथ हमारी बस में ही चड़ गया और बहुत मुश्किल से उसे नीचे उतारा, वह बस के चारो तरफ घूमकर बस मे चढ़ने के रास्ते देखता रहा और जब बस चली तो कम से कम वह 2 कि.मी. तक हमारी बस के पीछे भागा, हम लोग भी उसे देखते रहे जब तक वह हमारी आँखो से ओझल नहीं हो गया । मैंने पूरा मन बना लिया था कि मैं बस रुकवा कर उसे अपने साथ कोटा ले जा रहा हूँ पर साथ के लोगो ने और बस में बैठे हुए लोकल लोगो ने कहाँ कि राजस्थान मे तो यह मर ही जाएगा भाई, यह यहीं अच्छा है , मैंने भी भी फिर भारी मन से विदा ली । मैं 19 जून को फिर से खीरगंगा ट्रेक पर जा रहा हूँ , पता नहीं वो मुझे मिलेगा या नहीं, उम्मीद तो यही है कि मिल जाए ताकि मे अपने साथियों को सबसे प्यारे व मासूम प्राणी से मिलवा सकूँ ।