छुट्टियां, सैर सपाटा और मौज मस्ती करने के लिए आज के युवाओं की सबसे पसंदीदा स्थान है हिमाचल प्रदेश , साथ ही पार्वती वैली भी जो कि निसंदेह एक मनोरंजन का केंद्र माना जा सकता है ।
बुद्धिजीवी भारत का मानना है कि पार्वती घाटी अपने मनोरंजन के लिए जितना प्रसिद्ध है उतना ही अपने चरस की खेती के लिए भी और इसके उलट भगवान का यहां आना और फ़िर वापस चले जाने जैसे मिथकों से भी ये पार्वती घाटी भरे पड़े है । आज हम इन सारी बातों पर प्रकाश डालने की कोशिश करेंगे जो इस वैली में चर्चा का विषय बना हुआ है ।
आखिर क्यों इसे पार्वती वैली कहा गया
पौराणिक कथाओं के अनुसार शिव भगवान एक नागा साधु कि तरह 3000 वर्षों तक इस रहस्यमई पार्वती घाटी में तपस्या किए थे ।, ऋतुएं बदलते रहे और वो अपनी तपस्या में लीन रहे अचानक एक दिन उन्हें एक छाया नज़र आई जो काफी सुंदर और आकर्षित थी , विचार विमर्श और वार्तालाभ के बाद उन्होंने उस छवि का नाम पार्वती रख दिया , और इस तरह इसे पार्वती वैली कहा जाने लगा ।
मणिकर्ण की कहानी
शिव और पार्वती के इस पार्वती वैली में रहने के क्रम में एक दिन अचानक पार्वती जी के मणि (कीमती पत्थर) नदी में गिर जाती है , जिससे पार्वती जी काफी दुखी होती है , तभी शिव जी अपने सेवकों से उस मणि को वापस लाने की आज्ञा देते है , काफी मशक्कत करने के बाद भी जब सेवकों को वो मणि नहीं मिल पाता तो , शिव भगवान क्रोधित हो जाते है और सृष्टि का विनाश करने के लिए अपनी तीसरी आंख खोलते है , जिससे ब्रह्माण्ड त्राहि माम त्राहिमाम करने लगा , शिव जी के गुस्से को शांत करने के लिए शेष नाग देवता से गुहार लगाई गई , शेषनाग ने फुफकार मारी जिससे उबलते हुए जल स्तर का प्रवाह बढ़ गया और पूरे क्षेत्र में फैल गया इस घटना के परिणामस्वरूप पार्वती देवी की कीमती पत्थर के जैसे ही बहुत सारे पत्थरो का जन्म हुआ और ऐसे उत्पत्ति हुई मणिकर्ण की ।
गुरुनानक देव की मणिकर्ण की यात्रा की कहानी ।
पौराणिक कथाओं के बारे सिख गुरु कहते है कि एक समय सिक्ख धर्म के संस्थापक गुरुनानक देव तीसरे उदासी के दौरान मणिकर्ण की यात्रा अपने एक शिष्य भाई मर्दाना के साथ गए थे , वहां पहुंचते ही मर्दाना को अचानक तेज भूख की अनुभूति हुई तो गुरुनानक देव जी उसे लंगर से थोड़े आंटा लाने को कहा जिससे रोटी बनाई जा सके , मर्दाना के आटा लाने के बाद रोटियां बनाने का कार्यक्रम शुरू हुआ तभी ज्ञात हुआ कि उनके पास रोटियों को पकाने के लिए आग की व्यवस्था नहीं है । तभी गुरु नानक देव ने मर्दाना को एक पत्थर उठाने को कहा ऐसा करते ही एक गर्म पानी का झरना निकल आया,
निराश मर्दाना रोटियों को उसी झरने में डाल दिया , तदोपरांत सारी रोटियां डूब जाती , जब जब वो रोटी पानी में डालते रोटी डूब जाती थी , तभी गुरु नानक द्वारा निर्देश देने पर मर्दाना ने भगवान से प्रार्थना की और बोला अगर उसकी रोटियां वापस पानी पर तैर आई तो वो एक रोटी भगवान को दान दे देगा. जब मर्दाना ने प्रार्थना की तो सभी रोटियां पकी हुई पानी पर तैरने लगी. गुरु नानक ने कहा कि यदि कोई भी व्यक्ति परमेश्वर के नाम पर दान करता है तो वो उसे वापस किसी ना किसी रूप में दान को पा ही लेता है ।
खीर गंगा के पीछे की कहानी
कई वर्षों पहले शिव और पार्वती के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिक यहां घोर तपस्या करने आए थे ,कई वयोवृद्ध साधुए ये बताते है कि जब कार्तिक यहां तपस्या कर रहे होते थे तब पार्वती जी और शिव जी अक्सर यहां उनसे मिलने आया करते है और साथ में अपने साथ खीर भी लाया करते थे यही कारण है कि इस पार्वती नदी की जल ग्रे रंग की है ।
मलना के पीछे के अनकही सच्चाई
लोकप्रिय धारणा के अनुसार जब सिकंदर महान भारत आए थे और उनके साथ यहां उनके ग्रीक सैनिक भी आए थे , मलना के निवासी इन्हीं ग्रीक सैनिकों के वशंज माने जाते है , जो अपने भगवान जमूल ऋषि पर विश्वास करते है , पुराणों के अनुसार जमुल ऋषि ने ही इस धरती पर समाज की नीव डाली और उनके ही नियमो को आज लोग अनुसरण कर रहे है ।