'अयोध्या', ये नाम सुनते ही मेरा दिल- ओ- दिमाग दो भागों में बट जाता है। पहला ख्याल आता है बचपन से सुनती आ रही रामायण की कहानी में बसी नगरी का, वो जगह जहाँ विष्णु के अवतार, भगवान राम का जन्म हुआ था, जहाँ उन्होंने अपने राम राज्य से एक अलग मिसाल कायम की थी। जहाँ राम मंदिर का शिलान्यास एक ओर जनमानस में हर्षोल्लास भर रहा है वहीँ पलक झपका कर जब मैं दोबारा सोचती हूँ तो अखबार और न्यूज़ चैनल में चल रही हेडलाइन और विवाद सामने आ जाता है। शायद आपके साथ भी ऐसा ही होता होगा!
लेकिन क्या अयोध्या बस इसी विवाद के बीच सिमट कर रह गई है? क्या रामजन्मूमि और बाबरी मस्जिद के अलावा इस जगह में और कुछ नहीं बचा? अगर राजनीति और विवाद से ऊपर उठकर इस शहर को घुमक्कड़ की तरह देखें, तो मेरे नज़रिए में तो ये जगह कई दिलचस्प नगीने अपनी गोद में छिपाए बैठी है, ज़रूरत है तो बस एक नज़र देखने की।
अगर आप भी मेरी तरह बस इस जगह का नाम सुनकर इस शहर में छुपे राज़ और शिल्पकारी के अजूबे देखने के लिए उत्सुक हो जाते हैं, तो मैं आपका काम आसान कर देती हूँ और बताती हूँ कि क्यों अयोध्या की ओर होनी चाहिए आपकी अगली यात्रा।
अध्यात्म और धर्म की धरोहर: अयोध्या
अब अयोध्या की बात करें और रामायण का ज़िक्र न हो, ऐसा तो मुमकिन नहीं है। त्रेतायुग में रची गई रामायण औरल उसके पात्रों से जुड़ी कई जगह इस शहर में मिलती है। यानी आप खुद पौराणिक गाथाओं को जीवित होता देख सकते हैं।
रामायण के मुख्य पात्र, राम और सीता के विवाह में एक तोहफे में दिया गया ये खूबसूरत कनक भवन किसी महल से कम नहीं है। कनक का मतलब है सोना, और आप पीले रंग में रंगे इस भवन को सामने से देखेंगे तो बिल्कुल यही लगेगा कि जैसे ये सोने का बना हो। इस भवन के अंदर चांदी के बने मंडप के बीच भी सोने के मुकुट और आभुषण पहने राम और सीता की मूर्ति रखी गई है। बुंदेलखंडी और राजास्थानी शिल्पकारी का ये कॉम्बिनेशन इस भवन की चौखटों और किनारों पर साफ देखा जा सकता है।
माना जाता है श्री राम का कोई काम हनुमान के बिना पूरा नहीं होता, वैसे ही माना जाता है अगर कोई अयोध्या आता है तो हनुमानमढ़ी के दर्शन किए बिना उसकी यात्रा अधूरी है। एक टीले पर बने इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको 70 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। केसरी रंग में रंगे, ऊंचे सत्भों से घिरे मंदिर के कक्ष में आपको माता अंजनी और बाल हनुमान की प्रतिमा देखने को मिलती है।
अगर धर्म और शिल्पकला का संगम देखने के लिए अयोध्या आ रहे हैं तो दशरख भवन देखना बिल्कुल न भूलें। सुंदर कलाकारी से सजी रंगीन दिवारें अपने आप में सरल भी हैं और राजसी भी। माना जाता है कि महाराज दशरथ अपने परिवार के साथ यहीं रहते थे। दशरथ महल हनुमान गढ़ी से सिर्फ 500 मीटर की दूरी पर ही बसा हुआ है।
नागेश्वरनथ मंदिर अयोध्या
अगर आपको दशरथ महल की शिल्पकला पसंद आती है तो नागेश्वरनाथ मंदिर भी ज़रूर जाएँ। कुछ उसी तरह की रंगीन शिल्पकारी आपको यहाँ भी दिखेगी। पौराणिक कथाओं की मानें तो भगवान राम के पुत्र कुश ने इस मंदिर को एक नाग कन्या और भगवान शिव को समर्पित कर बनवाया था।
पवित्र नदी सरयू के किनारे बना ये घाट हिंदुओं के लिए काफी अहम है। माना जाता है श्रीराम ने यहीं पर जल समाधि लेकर धरती से पलायन किया था। सिर्फ इतना ही नहीं, पौराणिक कथओं की मानें तो यही रास्ता बैकुण्ठधाम लेकर जाता है। इसी मान्यता के चलते हज़ारों लोग सरयू नदी में डुबकी लगाकर अपने पाप धोने यहाँ आते हैं। डुबकी लगाने के अलावा यहाँ पर शाम को डूबते सूरज का नज़ारा भी बेहद खूबसूरत लगता है।
अयोध्या और अवध की दोस्ती
अयोध्या एक ऐसी जगह है जहाँ आपको हिंदू पौराणिक कथाओं से जुड़े कई पहलू साक्षात नज़र आते हैं, लेकिन सिर्फ इतना ही नहीं, इस ज़मीन पर अवध की छाप छोड़ती कुछ ऐसी इमारते भी हैं जो भारतीय धरोहर को और समृद्ध बनाती हैं। तो अयोध्या आएँ तो इस पहलू को देखे बिना यहाँ से ना जाएँ।
नवाबी प्यार की निशानी
फैज़ाबाद में बनी ये इमारत मुस्लिम वास्तुकला का नायाब नमूना है। जहाँ मुमताज़ की याद में बने ताजमहल को दुनिया प्यार के प्रतीक के रूप में देखती है, बेहू बेगम के मकबरे का इतिहास भी कुछ ऐसा ही है। इसे नवाब शजा-उद दौला ने अपनी पत्नी उन्मातुज जोहरा बानो के मरने के बाद उनकी याद में बनाया था। ये इमारत फैज़ाबाद की कुछ सबसे ऊँची इमारतों में से एक है और यहाँ से आप पूरे शहर का नज़ारा देख सकते हैं। मकबरे को हरे-भरे पेड़ अपनी हरियाली से घेरे रहते हैं, हालांकि इस इमारत का रख-रखाव तो होता है, लेकिन इसकी हालत बहुत खास नहीं है।
गुलाब बाड़ी
जैसा नाम से ही ज़ाहिर है, ये जगह अलग- अलग तरह के गुलाबों से गुलज़ार है। दरअसल गुलाब बाड़ी नवाब शजा-उद दौला का मकबरा है। मुग़ल वास्तुकला का इस नमूना को देखने तो कभी भी जा सकते हैं लेकिन मोहर्रम के वक्त, सजावट के साथ इसकी खूबसूरती कुछ अलग ही होती है।
मोती महल
ये वो जगह है जहाँ बेहू बेगम रहा करती थी। अगर मुग़ल और नवाबी शिल्पकला का संगम देखना हो तो मोती महल आपके लिए सही जगह होगी।
कैसे पहुँचे अयोध्या?
हवाई यात्रा: अयोध्या के लिए आपको सीधी उड़ान तो नहीं मिलेगी, लेकिन आप गोरखपुर या लखनऊ एयरपोर्ट तक पहुँच कर वहाँ से बस या टैक्सी कर सकते हैं। गोरखपुर एयरपोर्ट से अयोध्या की दूरी 140 कि.मी. है जिसे आप करीब 3.30 घंटे में तय कर सकते हैं। लखनऊ एयरपोर्ट से अयोध्या का सफर 150 कि.मी. लंबा है जिसे पूरा करने में आपको 2.30 घंटा लग जाएगा।
रेल यात्रा: रेल के ज़रिए अयोध्या पहुँचना काफी आसान है। आप सीधे अयोध्या रेलवे स्टेशन पर उतर सकते हैं और आपको यहाँ आने के लिए कई ट्रेन मिल जाएँगी। अगर नई दिल्ली से अयोध्या जा रहे हैं तो आपको 667 कि.मी. का सफर तय करना होगा, जो आप 10 घंटे में पूरा कर सकते हैं।
बस यात्रा: अयोध्या उत्तर प्रदेश के सभी मुख्य शहरों के साथ रोड के ज़रिए जुड़ा हुआ है। आपको कहीं से भी यहाँ के लिए लोकल या प्राइवेट बसें मिल जाएँगी
अब आपके पास अयोध्या के बारे में सारी जानकारी है, तो अब आप भी यहाँ जाने की तैयारी कर लीजिए और इस शहर को विवाद के लिए नहीं बल्कि इसकी पौराणिक और ऐतिहासिक अहमियत के लिए याद रखिएगा।