अगर आप इतिहास में रूचि रखते हैं तो आप भारत में जहाँ भी जाएँ आपको इतिहास के ऐसे अजीब किस्से कहानियाँ मिलेंगी जो की आपको सोचने पर मजबूर कर देंगी। हर पर्वत, हर पहाड़ और हर नदी के साथ जुडी हैं कहानियाँ। और अगर देव भूमि उत्तराखंड में घूमने की बात करें तो यहाँ पर तो हैरान करने वाली दिलचस्प कथाओं का कोई अंत ही नहीं है।
पहाड़ों की गोद में बसी ऐसी ही एक मज़ेदार और रोचक कहानी है स्वर्ग की सीढ़ियों की! इस कहानी के बारे में आपने अक्सर समाचार चैनलों में डाक्यूमेंट्री दिखी होगी। मुझे कभी इस जगह को लेकर खास दिलचस्पी नहीं हुई, लेकिन मेरा ये खयाल तब बदल गया जब मैंने गढ़वाल में वैली ऑफ फ्लावर के सफर के दौरान अपनी यात्रा को एक नया मोड़ देकर बद्रीनाथ जाने की सोची। मैंने इन पौराणिक कथाओं से जुड़ी जगहों को करीब से देखा और जाना। इससे जुड़ी दिलचस्प कहानियों को माना गाँव के लोगों से सुना, ये ही वो गाँव है जहाँ से स्वर्गारिहिनी और सतोपंथ झील ट्रेक की शुरुआत होती है।
क्या है कहानी स्वर्ग की सीढ़ियों की?
महाभारत के 18 अध्यायों में 17वे अध्याय, महाप्राथनिका पर्व, में लिखा है कि कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद पाँचों पांडव भाइयों ने अपनी पत्नी द्रौपदी में साथ सन्यास ले लिया और महल और राज्य को छोड़, तपस्या के लिए निकल पड़े। तपस्या का ये सफर उन्हें हिमालय के पहाड़ों के बीच ले आया। स्वर्ग की और अपने इस आखिरी सफर पर बढ़ते हुऐ हर किसी को एक-एक कर अपने कर्मों का फल मिलने लगा। सबसे पहले द्रौपदी की मृत्यु हुई। उनका दोष था बाकियों के मुकाबले अर्जुन से उनका ज्यादा प्रेम। सहदेव इस यात्रा को पूरा न कर सके और मारे गए क्योंकि उनको अपने ज्ञान पर बहुत घमंड था। इसके बाद नकुल और अर्जुन की मृत्यु हुई जिसका कारण भी उनका अभिमान था। फिर भीम की बारी आयी और उनका दोष था उनका लालच।
ये लम्बी यात्रा पांडवों को हिमालय की गोद तक ले कर तो गयी पर युधिष्ठिर को छोड़ एक-एक कर सबकी मृत्यु हो गयी। यह माना जाता है की एक कुत्ते के भेस में छुपे धर्म के साथ युधिष्ठिर ने स्वर्ग की सीढ़ियां यहीं चढ़ी थी। महाभारत के इस अंश में यह भी बताया जाता है कि बिना मानवीय शरीर छोड़े यही स्वर्गरोहिणी का रास्ता है जहाँ से आप स्वर्ग जा सकते हैं।
सतोपंथ झील और स्वर्गारोहिणी ग्लेशियर तक का सफर
जून और अगस्त के महीने में अगर आप बद्रीनाथ आएँगे तो आपको ऐसे कई साधू संत मिलेंगे जो बद्रीनाथ से सतोपंथ और स्वर्गरोहिणी का सफर तय करते हैं। माना जाता है कि सतोपंथ झील का यह सफर असली मायने में सत्य के पथ की यात्रा है। स्वर्गरोहिणी तक की यात्रा के बारे में माना जाता है कि ये साक्षात स्वर्ग के मार्ग पर चलने के बराबर है। यहाँ आने वाले सभी हिन्दू तीर्थयात्री यह मानते हैं कि मानवीय शरीर के साथ अगर आप पूरी धरती में कहीं से भी स्वर्ग जा सकते हैं तो वो स्वर्गरोहिणी ग्लेशियर का मार्ग है।
सुबह-सुबह बद्रीनाथ धाम में एक भव्य पूजा-अर्चना के बाद यहाँ से सभी साधू संत अपनी यात्रा शुरू करते हैं। बद्रीनाथ से 4km की दूरी पर माना गाँव है। ये गाँव इस रास्ते पर पड़ने वाला आखिरी गाँव है जहाँ आपको इंसानी सभ्यता मिलेगी। ये गाँव भारत-चीन की सीमा का आखरी गाँव भी है। श्रद्धलुओं के लिए रास्ते में रुकने के लिए बहुत-सी जगह हैं जैसे नाग- नागिनी मंदिर, भृगु गुफा और माता मूर्ति मंदिर जो धर्म के देवता की पत्नी को समर्पित है। अलकनंदा के साथ- साथ चलें तो इस रास्ते में आगे आता है आनंदवन। यहाँ के नज़ारेऔर दूर-दूर तक हरे पेड़ और घास के मैदान देख कर आपको एहसास हो जाएगा कि आखिर इस जगह को आनंद-वन क्यों कहा जाता है। यहाँ से थोड़ी ही दूरी पर है वसुंधरा जल प्रपात। हालांकि इस रास्ते में सभी रुकने की जगहों के बारे में किस्से और कहानियां हैं पर वसुंधरा के बारे में एक दिलचस्प कथा काफी मशहूर है। लोग यह मानते हैं की किसी भी दोषी या पापी के सर पर वसुंधरा का पानी नहीं गिरता।
इस यात्रा में आगे आता है लक्ष्मी वन। लक्ष्मी वन जाना जाता है भोज पत्र के घने पेड़ों के जंगल के लिए। प्राचीन काल में इन भोज पत्र के पेड़ों की छाल पर ही कई ग्रन्थ लिखे गए थे। माना जाता है कि पांडवों की यात्रा के दौरान नकुल की मृत्यु लक्ष्मी वन में ही हुई थी। स्वर्गरोहिणी जाने वाले यात्री पहली रात इसी लक्ष्मी वन में रुकते हैं।
लक्ष्मी वन से अगले दिन कुछ ही दूर चलकर यात्री सहस्त्रधारा पहुँचते हैं। ग्रेनाइट के एक टीले से गिरता हुआ ये झरना सचमुच मन छू लेता है। पांडवों के एक और भाई सहदेव की मृत्यु यहाँ हुई थी। इस जगह से आगे बढ़कर आस-पास के नज़ारे और भी सुन्दर हो जाते हैं। अगर आप मैप में देखें तो आप इस वक़्त ठीक केदारनाथ के पीछे वाली पहाड़ी पर होंगे। इस यात्रा में अगली जगह है चक्रतीर्थ गुफाएं। काफी लोग रात यहाँ बिताना भी पसंद करते हैं पर अगर आप चल सकें तो यहाँ से कुछ ही दूरी पर सतोपंथ झील है और रात वहाँ बिताना ज्यादा बेहतर होता है। सतोपंथ झील के बारे में किस्से कहानियां बहुत हैं पर ये वो जगह भी है जहाँ भीम ने अपनी अंतिम सासें ली थी। सैलानी यहाँ आकर रात को साधु संतों की झोपड़ियों में रात बिताते हैं। कुछ लोग अपने लिए गुफाएँ ढूंढ लेते हैं या टेंट बना लेते हैं।
सतोपंथ झील में एक दिन बिताने के बाद आगे बढ़ कर लोग स्वर्गारोहिणी ग्लेशियर के दर्शन करने जाते हैं। ज्यादातर यात्री सतोपंथ से ही वापस चले जाते हैं, पर इस रास्ते पर आगे चंद्र कुंड और सूर्य कुंड के दर्शन करके स्वर्गरोहिणी साफ़-साफ़ दीखता है। इस ग्लेशियर के सीढ़ीनुमा आकार को ही स्वर्ग की सात सीढ़ियां माना जाता है। हालाँकि किसी भी समय पर यहाँ कोहरे और बर्फ के कारण तीन से ज्यादा सीढ़ियां नहीं दिखती हैं।
कैसे कर सकते हैं ये यात्रा?
बद्रीनाथ के आस-पास ऐसे बहुत सारे ट्रेक्स हैं जहाँ लोग आज भी जाते हैं। फूलों की घाटी और हेमकुंड साहिब में तो लोगों का तांता लगा ही रहता है, पर कम ही लोग जानते हैं की बद्रीनाथ से वसुंधरा फॉल्स, सतोपंथ झील और स्वर्गरोहिणी ग्लेशियर तक भी ट्रैकिंग की जा सकती है। इसके लिए बद्रीनाथ पहुंचने पर वहां मौजूद ट्रैकिंग एजेंसी में आप बात कर सकते हैं। कई ट्रैकिंग एजेंसी हैं जो आपको इस यात्रा में ले जा सकती हैं.
कुछ ट्रैकिंग एजेंसी के नंबर यहाँ हैं: 9412524164, 9627006010
अगर आपने कभी भी ये अनोखी यात्रा तय की है तो हमको इसके बारे में बताएँ। अपने सफर की कहानियां Tripoto में अब हिंदी में लिखें.
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