हिमाचल के इस छोटे से गांव में करना चाहते हैं दलाई लामा रिटायर.

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Photo of हिमाचल के इस छोटे से गांव में करना चाहते हैं दलाई लामा रिटायर. 1/1 by Kabira Speaking

2015 के सितम्बर महीने में मई पहली बार स्पीति घाटी गयी. उस समय मैंने मनाली से अपना सफर शुरू किया और चंद्रताल में पहली रात बितायी. नीली झील से कुछ दूर टेंट में वो पहली रात से ही अंदाज़ा हो गया था की आगे का सफर कितना रोमांचक होने वाला है. अगले दिन मैं और मेरी सहेली काज़ा गए और काज़ा के आस पास के दुर्गम क्षेत्रों में टैक्सी के माध्यम से दिन भर घूमे. वो मौसम था सेब की फसल पकने का. काज़ा में आपको सेब नहीं मिलेंगे पर वहां से कुछ दूर ही ताबो में सेबों के बहुत बड़े बगीचे हैं. पेड़ों में लटके हुए हज़ारों लाल सेबों का क्या आकर्षण होता है मैंने पहली बार ताबो में जाना.

हालाँकि मैं यहाँ एक रात भी रुक नहीं पायी थी पर ये जगह मेरे दिमाग में बैठ गयी. कुछ महीनों बाद घर पर बैठे मैं इंटरनेट में कुछ पढ़ रही थी तभी मैंने एक लेख में पढ़ा के बौद्ध गुरु दलाई लामा हिमाचल के छोटे से गांव ताबो में रिटायर करना चाहते हैं. मेरे सामने तबो के वोही सेब के बगीचे आ गए. वो साफ़ हवा, नीला आसमान और बंजर पर्वत श्रृंखलाएं, उस लेख में दिए गए चित्रों ने मुझे अपनी तबो की फोटोग्राफ याद दिला दी.

अंततः पिछले साल फिर से ताबो जाने का मौका मिला. इस बार ताबो में कुछ दिन बिताने के लिए मैं तैयार थी. आखिर जिस जगह को शान्ति के प्रतीक माने जाने वाले दलाई लामा ने अपने रिटायरमेंट के लिए चुना है उस जगह में कुछ तो बात होगी. यही सोच कर मैंने शिमला से सफर शुरू किया. एक रात शिमला में बितायी, फिर दो रात कल्पा , फिर नको और तब जाकर हम पहुंचे ताबो. और इसको मेरी किस्मत ही मानिये की यह मौसम भी सेबों का था.

तो आज जानिए क्या है खास स्पीति घाटी के छोटे से गांव ताबो के बारे में और क्यों दलाई लामा ने इस छोटी सी जगह को अपना घर चुना है?

प्राचीन काल में साहित्यकार और अनुवादक यहाँ ठहरते थे

अगर आपने ताबो के बारे में पहले पढ़ा है तो आपको यह तो पता ही होगा की यहाँ एक ३००० साल पुराना बौद्ध मठ है. यह ऐतिहासिक मठ भारत के सबसे पहले कुछ बौद्ध मठों में गिना जाता है. शायद यह भी एक कारण है की दलाई लामा अपने कुछ शान्ति के पल यहाँ बिताना चाहते हों. पर मेरे यहाँ के सफर में मुझे पता चला की 996BC में ग्यूज राज्य के राजा येशे ओ ने इस मठ की इस्थापना यह सोच कर की थी की भारत और तिब्बत के बीच आने जाने वाले व्यापारी यहाँ पर रुक सकें. आने वाले सालों में ताबो में बहुत सारे साहित्यकार और अनुवादक पहुंचे जिन्होंने हिन्दू और बौद्ध धर्म ग्रंथों का यहाँ पर बैठ कर अनुवाद और अध्ययन किया. इस कारण आज भी यह छोटा सा गांव इतिहास में अहमियत रखता है.

स्पीति के सफर में पहला सेबों का बगीचा है ताबो

मनाली से जब आप अपना सफर शुरू करेंगे तो कैसे धीरे-धीरे हरियाली गुम होती है ये देख कर पहले चौकना वाजिब है. मनाली से काज़ा पहुंचते पहुंचते पहाड़ बंजर होते जाते हैं. पर काज़ा से आगे बढ़ जब आप ताबो पहुंचेंगे तो सेब के बगीचे आपको आपका स्वागत करते मिलेंगे. इन घाटियों में जहाँ कम वर्षा के कारण ज़मीन अक्सर बंजर ही रहती है वहीँ स्थानीय लोगों के परिश्रम के कारण यहाँ पिछले कुछ दशकों में सेब की खीती फल फूल रही है. यहाँ अगस्त और सितम्बर के महीने में अगर आप आएं तो ये पेड़ आपको सेबों से लदे नज़र आएंगे. हिमालय के इस रेगिस्तान में हरे भरे सेब के बगीचों का वो नज़ारा आप कभी भूल नहीं पाएंगे. शायद यह भी एक कारण है इस छोटे से गांव के आकर्षण का.

ताबो के मठ जैसी कलाकृतियां आपने कहीं नहीं देखी होंगी

ताबो के मठ में 996 BC में बनी कलाकृतियां न सिर्फ तिबत के बौद्ध धर्म का प्रचार करती हैं बल्कि इन चित्रों में भारतीय प्रेरणा भी बहुत हैं. दीवारों में बने भव्य चित्र हिन्दू धर्म से भी प्रभावित हैं. यहाँ पर सेंट्रल एशिया की संस्कृति की भी झलक मिलेगी. दीवारों में ईसाई नन्स के चित्र देख कर मैं भी अचम्भे में पड़ गयी थी. धर्म और संस्कृति का संगम के लिए जानी जाती है ये छोटी सी जगह. इस ऐतिहासिक मठ के मुख्य कक्ष में एक वज्रधातु मंडल बना हुआ है. यह भव्य चित्र भारतीय संस्कृति के प्रभाव में बने बुद्ध धर्म के तंत्र मंत्र पंथ का प्रतीक है. बौद्ध धर्म का यह पंथ इन इलाकों से तिब्बत, भूटान और पूर्वी एशिया मैं फैला.

क्या आपने तबो की ऐतिहासिक गुफाएं देखी हैं?

अपने भ्रमण के दौरान अगर आपको ताबो में ऐसी जगह की तलाश है जगह से दूर दूर तक नीला आसमान और सुहाने दृश्य दिखें तो ताबो शहर में ही स्तिथ हैं यहाँ की प्रसिद्ध गुफाएं. यहाँ से आपको पूरे शहर का कोना कोना दिख सकता है, सूर्यास्त के समय यहाँ पर कुछ समय बिताना सभी को पसंद आता है. हांलाकि ये गुफाएं अब वीरान हैं पर चट्टानों में बनी इन गुफाओं में बहुत सारे बौद्ध संतों और बुद्धिजीवियों ने ध्यान किया है. ये गुफाएं उतना ही महत्त्व रखती हैं जितना यहाँ का मठ. इस छोटे से शहर के एक तरफ स्पीति नदी बहती है. नदी के किनारे हैं सेब के बगीचे और स्पीति के लोगों के शानदार सफ़ेद घर. और यह सब आपको नज़र आता है टीलों के ऊपर स्तिथ इन गुफाओं से.

स्पीति तहसील और लाहौल स्पीति जिले में बसा ये छोटा सा गांव जहाँ करीब 135 परिवार रहते हैं कैसे बौद्ध धर्म में इतना महत्त्व रखता है अब आप जान गए होंगे. भारत का लगभग सबसे पुराना बौद्ध मठ है यहाँ पर. यहाँ दिन के शांत माहौल में बस सेब के पेड़ों को छु कर जाती हवाओ की आवाज़ आती हैं. शायद यही शान्ति की तलाश में दलाई लामा यहाँ आना चाहते हों. वे पिछले कुछ वर्षों में यहाँ कई बार आये भी हैं. इसी कारण यहाँ पर एक हेलिपैड भी है जहाँ से रात को हमारे जैसे रोमांच के भूखे पर्यटक तारे देखने जाते हैं. ऐसा मनमोहक दृश्य आपको पूरी स्पीति घाटी में और कहीं नहीं मिलेगा .

ताबो में होटल और होमस्टे के विकल्प.

इस होमस्टे को चलने वाले डोक्पा लोंदेन एक मिलनसार व्यक्ति हैं और अगर आप चाहें वे आपके साथ ताबो की सैर पर भी आ सकते हैं. इस गेस्टहॉउस में रहने का यह फायदा है की यहाँ आपके होस्ट बढ़िया गाइड भी हैं. होमस्टे में कमरे साफ़ हैं और सामने ताबो के पहाड़ों के नज़ारे साफ़ साफ़ दिखते हैं. आप यहाँ आएं तो फरमाइश में आपको स्पीति की प्रसिद्ध थाली भी मिल सकती है. इसके लिए आपको अपने होस्ट को पहले से बताना पड़ेगा.

मिलेनियम मोनेस्टिक गेस्ट हॉउस

ये एक अलग किस्म का होमस्टे हैं जिसको ताबो की प्रसिद्ध मठ के लामा चलते हैं. यहाँ रहने की सुविधा साफ़ और सस्ती है. पुराने स्पीति के घरों जैसी बनावट वाला ये गेस्टहाउसे १००० साल पूरानी मोनेस्ट्री के एक दम पास है. यहाँ खाना कभी कभी मिल जाता है पर इसके बारे में आप आने से पहले पूछ सकते हैं. अस पास बहुत सारे रेस्टोरेंट भी हैं जहाँ आप खा सकते हैं.

क्यूंकि आप इस गेस्टहॉउस को इंटरनेट में नहीं ढूढ़ सकते, इस नंबर पर कॉल करें. 9418576963

तबो में खाने के विकल्प.

सोनम गेस्ट हाउस नाम के इस होटल व रेस्टोरेंट में रहने और खाने के आपको विकल्प मिल जायेंगे. यहाँ का रेस्टोरेंट पर्यटकों के बीच प्रसिद्ध है ताज़े और लज़ीज़ खाने के लिए. यहाँ आपको स्पीति की थाली भी मिलेगी. यह आप किसी दिन डिनर पर खा सकते हैं. आप अगर कॉन्टिनेंटल खाना चाहते हैं तो कुछ फेरबदल के साथ आपको वह भी मिल सकता है. यहाँ जाएँ तो यहाँ मिलने वाले चीज़ और आलू के मोमोस ज़रूर खाएं.

अगर आप कभी तबो गायें हैं तो अपने सफरनामे हमसे साझा करें. नीचे कमैंट्स में बताएं की आपका सफर कैसा रहा. Tripoto हिंदी में लिखने के लिए यहाँ क्लिक करें.

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