मेधावी दावड़ा 16 वर्ष की थी जब उनकी विशाल हिमालय के साथ पहली बार मुलाक़ात हुई। वह एक हाई अल्टीट्यूड ट्रेक पर थी और उन्हें इससे पहली नज़र में प्यार हो गया। इसके बाद उनके साहस पर कोई रोक नहीं थी। टीसीएस, इंफोसिस और आईबीएम जैसे बड़े नामों के साथ एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में एक चुनौतीपूर्ण नौकरी के साथ, उन्होंने एकल बैकपैकिंग और हाई अल्टीट्यूड ट्रेकिंग भी की। उन्होंने एक चीज़ विकसित की जिसको वे 'एक्वाडिक्शन' का नाम देती हैं , इसके लिए उन्होंने एक स्कूबा डाइवर के तौर पर ट्रेनिंग लेकर एडवांस एडवेंचर सर्टिफिकेट लिया और लक्षद्वीप, हवेलॉक द्वीप, गिली ट्रावांगन, वियतनाम और कंबोडिया में पानी के नीचे जीवों को देखा।
ट्रेकिंग ने उन्हें सबसे ज़्यादा खुशी दी और वह बर्फ से ढके पहाड़ देखने और उनके इलाकों को घूमने के बहाने की तलाश करने लगीं। मेधावी रूपकुंड ट्रेक, चादर ट्रेक, कश्मीर ग्रेट लेक्स ट्रेक, मारखा घाटी, स्टोक कांगरी, ऑडन कर्नल, कालिंदी खाल, गरुड़ पीक और एवरेस्ट बेस कैंप ट्रेक्स के लिए एक एकल यात्रा करने गईं। प्रकृति के साथ इस तरह करीब के होने के कारण उसे जीवन का एक नया नज़रिया मिला। वह आधुनिक भौतिकवाद और चमकदार चीजों को हासिल करने की इच्छा से दूर होती चली गई।
2015 में, अंडमान द्वीपसमूहों की एक बेबाक यात्रा के बाद, उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और वियतनाम, लाओस और कंबोडिया के लिए पाँच हफ्ते की बैकपैकिंग और स्कूबा डाइविंग एडवेंचर पर चली गयीं। वापस आने के बाद उन्होंने अपनी संपत्ति का ज्यादातर हिस्सा दान कर दिया और हिमालय में रहने के लिए चली गईं । बीर उनका पहला पड़ाव था और वो वहाँ तीन महीने तक रुक गईं। उसके बाद, वे कुछ महीनों के लिए स्पीति और किन्नौर में बैकपैकिंग पर गईं और तीर्थन घाटी में 6 महीने ने ठहरीं।
यह बिंदास यात्री सभी यात्रियों के लिए एक प्रेरणा है जो जीवन के चक्र में फँस गए हैं और जिनके पास दुनिया की यात्रा और अनुभव करने के लिए पर्याप्त समय नहीं है। मेधावी के इस सफर को कई मैगज़ीन और अखबारों ने कवर किया और वो कई जगह पर मोटिवेशनल स्पीकर के तौर पर भी अपनी कहानी और अनुभवों से लोगों के प्रेरित करती हैं। वह 2017 में जाने माने स्पीच प्लैटफॉर्म टेडएक्स में एक स्पीकर थीं, जहाँ उन्होंने "सोलो ट्रैवलिंग- फॉलो यॉर ड्रीम्स" नाम की एक वार्ता दी थी।
सभी तस्वीरें मेधावी के सोशल मीडिया एकाउंट्स से ली गई हैं।
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