पोर्ट ब्लेयर एयरपोर्ट पर विमान के उतरते ही फोटो खींचने की सख्त मनाही की घोषणा की गयी, फिर भी मेरे जैसे जितने भी यात्री पहली बार यहाँ आ रहे थे, सभी के मन में इस नयी दुनिया को अपने कैमरे में कैद करने की तीव्र इच्छा थी, कुछ ने कोशिश की, फिर भी गार्ड ने तुरंत मना कर दिया। हवाई अड्डे से बाहर निकलने के बाद ही हम कुछ फोटो ले पाए। अंडमान की धरती हमारे लिए नयी थी, फिर भी ऐसा अब बिलकुल नहीं लग रहा था की यह एक टापू है जो चारों ओर समुद्र से घिरा हुआ है। मुख्य सड़क पर आने के बाद गाड़ियां, बसें, मोटर साइकिल आदि बिलकुल वैसे ही दौड़ रही थी, जैसा देश के मुख्य भूमि (Main Land) में होता है। रोड किनारे बने ढाबे बिल्कुल जाने-पहचाने ही थे। स्थानीय लोगों की शक्लें और नयन-नक्श बिलकुल हमारे जैसे ही थे, क्योंकि आज यहाँ रहने वाले अधिकतर मुख्य भूमि से ही पलायन कर यहाँ बसे हैं। बाकि अंडमान के छह प्रकार के मूल निवासी या आदिवासी आज गिने-चुने संख्या में ही हैं और फिलहाल राष्ट्र द्वारा संरक्षीत क्षेत्र में हैं।
सेल्युलर जेल: यादें कालेपानी की !
***अंडमान के अन्य पोस्ट***
आज अंडमान में पहला दिन था, इसलिए आज ही पोर्ट-ब्लेयर से बाहर के टापुओं का भ्रमण नहीं किया जा सकता था, इस कारण पहला दिन मुझे सिर्फ पोर्ट ब्लेयर को ही देना था। एयरपोर्ट से बाहर जो मुख्य सड़क है, उसे लाम्बा लाइन कहा जाता है, यहाँ से अबरदीन बाजार (पोर्ट ब्लेयर का केंद्र) की ओर जाने वाली बसें हर मिनट मिल जाया करती है, इसलिए ऑटो-टैक्सी की कोई खास जरुरत नहीं। मार्च के महीने में भी समुद्री इलाकों में धूप काफी उमस भरी होती है, यही हाल यहाँ भी था, इसलिए पसीने छूट रहे थे। मैंने पोर्ट ब्लेयर में जो होटल बुक किया था, वह अबरदीन बाजार से एक किमी और सरकारी बस स्टैंड से कुछ ही दूर फीनिक्स बे इलाके में था। पोर्ट ब्लेयर की मुख्य जेट्टी जहाँ से हेवलॉक-नील आदि के लिए पानी जहाज प्रस्थान करते हैं, वह भी बस स्टैंड से कुछ ही दूर है। सरकारी फेरियों के टाइम टेबल जानने के लिए मुझे पहले जेट्टी उतरना था, इसलिए बाजार की ओर जाने वाली बस में बैठकर दस-पंद्रह मिनट में जेट्टी उतर गया। पोर्ट ब्लेयर की इस मुख्य और सबसे बड़ी जेट्टी का नाम है फीनिक्स बे जेट्टी। यहीं से लंबी दूरी की सभी फेरियां चाहे सरकारी हो या प्राइवेट, आना जाना करती हैं। पोर्ट ब्लेयर से नील और हेवलॉक के लिए सरकारी और प्राइवेट दोनों तरह के जहाज चलते हैं, जबकि लॉन्ग आइलैंड, रंगत, डिगलीपुर आदि के लिए सिर्फ सरकारी जहाज। पोर्ट ब्लेयर से नील-हेवलॉक का सरकारी फेरियों का किराया कम यानि चार पांच सौ ही होता है, पर उनकी बुकिंग ऑनलाइन नहीं होती, जेट्टी के काउंटर पर जाकर ही अधिकतम चार दिन पहले तक की जा सकती है। स्थानीय लोगों के लिए इन सरकारी फेरियों के टिकट पर सब्सिडी होती है, इस कारण पर्यटकों की तुलना में उनके टिकट का किराया सिर्फ एक-डेढ़ सौ रूपये ही होता है। टिकट के लिए एक पहचान पत्र अनिवार्य होता है। दूसरी ओर निजी जहाजों का न्यूनतम किराया छह सौ रूपये से लेकर ढाई हजार तक हो सकता है, अलग अलग श्रेणीयों के अनुसार। मेक्रूज, ग्रीन ओसन, कोस्टल क्रूज - ये तीन निजी सेवाएं हैं। निजी जहाजों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इनकी बुकिंग आराम से घर बैठे ऑनलाइन की जा सकती है, सरकारी फेरियों की तरह लाइन में घंटों लगने की जरुरत नहीं। सरकारी फेरियों के भरोसे पीक समय में नील-हैवलॉक की टिकटें मिलने में परेशानी हो सकती है, जिस कारण यात्रा का मजा किरकिरा हो सकता है, इसलिए प्राइवेट फेरियां ही इस मामले में बेहतर हैं। मैक्रूज और कोस्टल क्रूज की बुकिंग एक ही वेबसाइट www.makruzz.com से होती है, ग्रीन ओसन की वेबसाइट है http://greenoceancruise.com/ . वैसे आप किसी थर्ड पार्टी एजेंट वेबसाइट से भी टिकट करा सकते हैं जैसे की https://trip.experienceandamans.com/ . मैंने पोर्ट ब्लेयर से नील और नील से हेवलॉक की बुकिंग पहले ही करा ली थी। अब हेवलॉक से वापस पोर्ट ब्लेयर आऊं या आगे रंगत की ओर निकल जाऊं, यह तय नही था, इस कारण हेवलॉक से आगे की टिकट नहीं कराई थी। सरकारी फेरी से हेवलॉक से सीधे रंगत जाने पर एक दिन का समय बच सकता था, और वापस पोर्ट ब्लेयर नही आना पड़ता। लेकिन जेट्टी आने पर पता चला की रंगत की फेरी रोजाना नही चलती, इस कारण अब वापस पोर्ट ब्लेयर ही आना पड़ेगा। दो प्राइवेट फेरियों के टिकट मेरे पास तो थे ही, सरकारी फेरियों का अनुभव लेने के लिए मैंने सोचा की हेवलॉक से पोर्ट ब्लेयर की टिकट इसी में करा लूँ, पर उसमें भी एक लोचा आ गया। सरकारी फेरियों की टिकटें किसी खास दिन को ही जारी की जाती है, और मिलने की कोई गारंटी भी नहीं है, पता चला की 12 मार्च के वापसी का टिकट सिर्फ 10 मार्च को ही जारी किया जायेगा। अब यात्रा में ऐसे ही वक़्त बहुत कीमती होता है, इस कारण इन झंझटों से मुक्ति पाने का एक ही रस्ता था- प्राइवेट फेरी में ही फिर से बुकिंग। मोबाइल इंटरनेट की अनुपलब्धता के कारण उसी दिन शाम मैंने एक ट्रेवल एजेंट से हैवलॉक से पोर्ट ब्लेयर की वापसी टिकट माक्रुज़ में कराई जिसकी कीमत थी एक हजार रूपये। जेट्टी पर ये सब समझ में आने के बाद मैं सीधे होटल की ओर बढ़ चला। नक़्शे में देखा था कि होटल जेट्टी से सिर्फ सात सौ मीटर पर है, लेकिन इससे अधिक दूरी पर था। कड़ी धूप में पैदल चलना काफी पकाऊ काम था। यद्दपि अंडमान एक टापू है, पर यहाँ की धरती अन्य समुद्र तटों की भांति सपाट नहीं। बहुत सारे रास्ते किसी हिल स्टेशन की भांति टेढ़े मेढ़े घुमावदार है, इस कारण आपको समुद्र और पहाड़- दोनों का आनंद मिल सकता है। होटल प्रवेश के बाद थोड़ा आराम मिला। कल रात भी ठीक से सो नही पाया था, थकान तो थी ही, लेकिन इस यात्रा में सभी स्थलों को देखने के लिए मेरे दिन तय किये हुए थे, इस कारण दिन में सोकर मैं वक़्त बर्बाद नही कर सकता था। मोबाइल पर नेट ऑन किये हुए काफी वक़्त हो गए थे, सोचा की जरा मेसेज चेक कर लेता हूँ। लेकिन पता चला की यहां तो जियो का नेटवर्क है ही नहीं। फिर एयरटेल के 2G नेटवर्क पर एक दिन का नेट पैक चालू कर टेस्ट किया, पर वो भी नहीं चल पाया। अंडमान में इंटरनेट और मोबाइल सेवा की स्थिति बहुत खराब है। 3G के नाम पर सिर्फ बीएसएनएल की सेवा है पर नाम मात्र की। एयरटेल और वोडाफोन सिर्फ 2G सेवा देते है, पर वो भी बदतर ही है। मेरे पास एक बीएसएनएल का भी सिम था, पर शायद अंडमान में रोमिंग में किसी भी नेटवर्क का नेट काम नही करता। इंटेरनेट से संपर्क टूटने के कारण बड़ी निराशा हुई, कारण की आज के जमाने में काफी हद तक यात्रायें हम इसी के भरोसे जो करते हैं। इन्टरनेट की अनुपलब्धता के अलावा मोबाइल पर बातचीत भी मुश्किल से हो रही थी, एयरटेल के सिम से भी कहीं फोन लगाना हो तो दस-बीस बार डायल करना पड़ता। यहाँ आकर पहली बार बीएसएनएल की सेवा एयरटेल से अच्छी लगी, आगे भी सिर्फ इसी का सहारा था। पता चला की सिर्फ बीएसएनएल की ब्रॉडबैंड सेवा के भरोसे ही पूरे अंडमान का इंटरनेट टिका हुआ है। दिन के दस बजे तेज धूप थी, और सेल्युलर जेल तीन किमी की दूरी पर, पैदल चलने का अब बिल्कुल भी मन नहीं था। एक ऑटो वाले को कहा की सेल्युलर जेल चलोगे? उसने चालीस रूपये मांगे, मैंने तीस दिया। पोर्ट ब्लेयर की सड़कों पर ट्रैफिक बहुत है और गाड़ियां भी बहुत तेज दौड़ती हैं। बाजार वाला इलाका तो किसी बड़े शहर जैसा ही लगता है। थोड़ी देर में सेल्युलर जेल आया। मार्च का महीना पर्यटकों के आने का आखिरी महीना होता है, फिर भी टिकट काउंटर पर काफी संख्या में लोग देखे जा सकते थे। अंदर जाने की टिकट यहाँ तीस रूपये की है।सेल्युलर जेल- यानि कालेपानी की यादें! जैसा की आप सभी यह जानते ही हैं की यह जेल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हमारे बहादुर क्रांतिकारियों के संघर्ष की निशानी अपने आप में समेटे हुए है, यही वजह है की अंग्रेजों द्वारा बनाये जाने के बावजूद आज तक एक स्मारक के रूप में इसे सहेज कर रखा गया है। सेल्युलर शब्द का मतलब यह है की यह जेल छोटे-छोटे भागों (Cells) में बंटा हुआ था और हर कैदी के लिए अलग एकांत कोठरी की व्यवस्था थी। पहले यह जेल सात इमारतों से बना था, बीच वाला केंद्र था, पर बाद में कुछ को ढहा दिया गया, अभी सिर्फ दो ही इमारतें व केंद्र बचा हुआ है। छत पर चढ़ कर समुद साफ़-साफ़ दिखाई देता है। दुर्भाग्य इस बात की है की अंग्रेजों के अत्याचार के कारण इतने सुन्दर से जगह को भी कालेपानी का नाम दे दिया गया ! भारत के मुख्य भूमि से सैकड़ों क्रांतिकारियों को यहाँ लाकर छोड़ दिया जाता था, कठोर यातनाएं दी जाती थीं, और कठोर श्रम भी करवाया जाता था, भागने का कोई रास्ता भी नहीं था, क्योंकि चारो ओर एक हजार मील तक सिर्फ समुद्र ही समुद्र था। बटुकेश्वर दत्त, यतीन्द्रनाथ कक्कड़ एवं विनायक दामोदर सावरकर काफी प्रसिद्द क्रांतिकारी रहे हैं। सावरकर के नाम पर ही पोर्ट ब्लेयर एयरपोर्ट का नाम भी पड़ा है। अंदर बहुत सारे क्रांतिकारियों के मॉडल बने हुए हैं, फांसी घर भी है, जेल के बरामदों में जाकर आप एक-एक कमरे को नजदीक से देख सकते हैं। सभी कैदियों के नाम भी एक बोर्ड पर लिखे गए हैं। शाम के वक़्त यहाँ एक घंटे का लाइट एंड म्यूजिक शो होता है, जिसमें आप विस्तार से जेल और अंग्रेजी हुकूमत के क्रूर शासन के बारे जान सकते हैं। लाइट शो की टिकट पचास रूपये की होती है। शाम के छह बजे सोमवार छोड़ रोजाना एक शो हिंदी और शाम के सात बजे हफ्ते में तीन शो हिंदी व तीन शो अंग्रेजी में होते हैं। दिन में एक बार सेल्युलर जेल देखने के बाद शाम को भी लाइट शो देखने जरूर आना चाहिए, और मुझे भी इसी दिन दुबारा आना था। लगभग दो घंटे का वक़्त मैंने सेल्युलर जेल को दिया, फिर बाहर आ गया। बाहर एक छोटा सा पार्क है जहाँ सावरकर समेत कुछ क्रांतिकारियों की प्रतिमाएं बनी हैं। रोड के उस पार सीढ़ियों से नीचे उतर राजीव गाँधी वाटर स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स है, जहाँ से रॉस, नार्थ बे, और वाईपर द्वीप जाने के लिए नावें मिलती है। यहाँ एक सुनामी स्मारक भी है। रॉस द्वीप पर जाने का समय खत्म हो चुका था, और शाम छह बजे लाइट शो देखने में अभी काफी वक़्त था। पोर्ट ब्लेयर में अभी काफी कुछ देखना बचा था जिसमें एक है चाथम आरा मिल जो की एशिया की सबसे पुरानी आरा मिल है। चाथम के लिए दिनभर बसें चक्कर काटती रहती है, इसलिए पहुँचने में कोई दिक्कत न हुई। चलते हैं चाथम आरा मिल अब अगले पोस्ट में।तब तक सेल्युलर जेल मेरे मोबाइल के कैमरे से-
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