ट्रेकिंग के दीवाने हो और अब तक इन 5 ऑफबीट ट्रेक के बारे में जानते तक नहीं

Tripoto
Photo of ट्रेकिंग के दीवाने हो और अब तक इन 5 ऑफबीट ट्रेक के बारे में जानते तक नहीं by Deeksha

जब भी पहाड़ों को देखती हूँ तो सिर झुक जाता है। सोचती हूँ मेरे अंदर कितनी हलचल है और ये पहाड़ इतने बड़े होने के बावजूद कितने शांत खड़े हैं? पहाड़ एकदम चुप और अपनी पूरी खूबसूरती लिए खड़े रहते हैं। ऊँचे-ऊँचे विशाल पहाड़, उन पर लगे चीड़ और देवदार के पेड़, हल्की ठंडी हवा और उनके बीच हंसते खिलखिलाते हम। अगर ये सब सोच कर आपके मन में भी खलबली मच गई तो फिर आप पक्का ट्रेकिंग के दीवाने होंगे।

Photo of ट्रेकिंग के दीवाने हो और अब तक इन 5 ऑफबीट ट्रेक के बारे में जानते तक नहीं 1/1 by Deeksha

ट्रेकिंग करना कितना खूबसूरत एहसास होता है। किसी अजनबी गाँव में रात बिताना सुनने में जितना रोमांचक लगता है उससे कहीं ज्यादा मज़ेदार होता है। असंख्य तारों से भरा आसमान। जिसे पहली बार देखते विश्वास नहीं होता कि इतने सारे तारे इस कदर करीब हो सकते हैं। इतने पास कि मानो एक छलांग की ज़रूरत है और एक तारा मुट्ठी में होगा। झिलमिलाती रात के बाद सुबह कब हो जाती है पता भी नहीं चलता और फिर अगले दिन की सुनहरी सुबह। सामने दिखते पहाड़ और एक जादुई एहसास। अगर आप इस एहसास को समझ पा रहे हैं फिर यकीनन आपने कई ट्रेक किए होंगे। लेकिन क्या आप इन 5 ऑफबीट और रोमांच से भरे ट्रेकों के बारे में जानते हैं?

1. हरमुख घाटी ट्रेक

हरमुख चोटी का ये खूबसूरत ट्रेक कश्मीर के गांदरबल जिले में है। गंगाबाल लेक की खूबसूरती से सजा ये ट्रेक कश्मीर घाटी के सबसे ऊँचाई पर ले जाने वाले ट्रेकों में से एक है। इस पहाड़ की ऊँचाई लगभग 5142 मीटर है और ये इस इलाके की सबसे अच्छी ट्रेकिंग वाली जगहों में से एक है। इस पहाड़ की ख़ास बात भी है। देखने में लगता है कि ये पहाड़ गंगाबाल झील से ही निकल रहा है जो इस पहाड़ को और भी खूबसूरत बना देता है। झील के बीच से झांकते हुए पहाड़ का ये शानदार नज़ारा आपका मन मोह लेगा।

रोमांचक ट्रेक होने के साथ इस पहाड़ की कुछ मान्यताएं भी हैं। इसे हिन्दू धर्म में पवित्र स्थान के रूप में भी देखा जाता है। हरमुख का मतलब है शिव जी का मुख। इसके अलावा कश्मीरी कथाओं में भी इस चोटी का बहुत महत्व है। माना जाता है एक सन्यासी शिव जी के मुख का दर्शन करना चाहता था जिसके लिए उसने 12 सालों तक इस पहाड़ को चढ़ने की कोशिश की। ये चढ़ाई बाकी सभी ट्रेकिंग वाले रास्तों से एकदम अलग है और ऊपर पहुँचने पर यहाँ से दिखने वाला नज़ारा भी।

चोटी से नीचे बसी कश्मीर घाटी का दिखने वाला नज़ारा इतना सुन्दर होता है कि लगेगा मानो आप किसी अलग ही दुनिया में हैं। ट्रेक में घने जंगल, दूर तक फैले घास के मैदान और प्राकृतिक सौंदर्य का भरपूर खज़ाना है। रास्ते में आपको झील भी मिलेंगी। ट्रेक की शुरुआत बांडीपुर ज़िले से होती है। इस 18 किमी. लंबे ट्रेक में फूलों से भरे मैदान के साथ-साथ शाही हिमालय भी देखने को मिलते हैं।

सबसे सही समय: मई से जुलाई, सितंबर-नवंबर।

2. बुरहान घाटी ट्रेक

हर ट्रेक में कुछ हिस्से ऐसे होते हैं जो बेहद खूबसूरत होते हैं लेकिन कुछ उतने ख़ास नहीं होते। बुरहान घाटी ट्रेक वो जगह है जहाँ आपको चारों तरफ खूबसूरती ही दिखाई देगी। यकीन मानिए इस ट्रेक का एक भी हिस्सा ऐसा नहीं है जहाँ आप निराश होंगें। ऐसा लगता है जैसे हर ट्रेक के सबसे खूबसूरत हिस्सों को मिलाकर इस ट्रेक को बनाया गया है। ट्रेक की शुरुआत जांगलिक गाँव से होती है। ये वही गाँव है जिसका कुछ हिस्सा हर की दून ट्रेक में भी पड़ता है। गांव के बाद घने जंगलों को पार करना होता है लेकिन इस मेहनत के बाद दिखाई देने वाला नज़ारा इतना शानदार होता है कि आपको ये मेहनत सफल लगने लगेगी।

दूर तक फैले इस घास के मैदान का नाम है, दयारा। ये वही जगह है जहाँ की प्राकृतिक सुंदरता देखकर अक्सर लोग खो जाते हैं। देवदार के पेड़ों के बीच बसा ये मैदान चारों तरफ से पहाड़ों से घिरा हुआ है। देखने में लगता है ये पहाड़ ही इसके रखवाले हैं। यहाँ से आगे बढ़ने पर एक जगह आती है जिसका नाम है, लिथम। दयारा से आगे बढ़ने पर अगर आप सोच रहे हैं कि घास के मैदान और जंगलों से आपको छुट्टी मिल गई है तो आप गलत हैं। लीथम और दूंडा वो जगहें हैं जहाँ पर सुंदरता और कठिन चढ़ाई का बढ़िया तालमेल देखने को मिलता है। एक तरफ लिथम की खूबसूरती है तो दूसरी तरफ दूंडा की मुश्किल चढ़ाई। इस 37 किमी. लम्बी ट्रेक को पूरा करने में लगभग 5 दिनों का समय लगता है। दिलचस्प नज़ारों से भरा ये ट्रेक आपकी बकेट लिस्ट में ज़रूर होना चाहिए।

सबसे सही समय: मई से जुलाई।

3. लमखगा पास ट्रेक

17000 फीट से भी ज़्यादा ऊँचाई वाला ये ट्रेक गढ़वाल की पहाड़ियों के बीच है। हिमाचल के सांगला को उत्तराखंड के हर्षिल से जोड़ने वाला ये पास आपको इन दोनों राज्यों के कुछ अनछुए हिस्सों में ले जाएगा। 1933 में मार्को पल्लिस नाम के व्यक्ति ने पहली बार इस पास को ट्रेक करके पार किया था। जिसके बाद इस ट्रेक को करने के लिए दुनिया भर से लोगों का आना लगा रहता है। हिमाचल और उत्तराखंड के सबसे मुश्किल ट्रेकों में शुमार इस ट्रेक को करने के लिए आपको दुर्गम रास्तों पर चलना होगा। इसके साथ आपके पास ऊँचाई पर ट्रेक करने का अनुभव भी होना ज़रूरी है।

किन्नौर से गंगोत्री जाने का क्लासिक रास्ता बन चुके इस पास के नज़ारे इतने खूबसूरत हैं कि आप विश्वास नहीं करेंगे। जलंधरी घाटी में फूलों के बिस्तर पर चलना इतना शानदार होता है कि आपका मन खुश हो जाएगा। बसंत या पतझड़ के मौसम में करने के लिए ये बेस्ट ट्रेक है। ट्रेक की शुरुआत चितकुल से होती है। चितकुल, जो कि भारत का आखिरी गाँव है और बसपा घाटी का सबसे खूबसूरत गांव भी है।

यहाँ से चलकर घास के मैदान, घने जंगल, बहते झरने और आलीशान वॉटरफॉल को पार करते हुए आप इस पास के नज़दीक पहुँचते हैं। जहाँ से फिर गंगोत्री और हर्षिल जाते हैं। रास्ते में आपको कई तरह के पहाड़ी जानवर जैसे स्नो फॉक्स भी देखने को मिलते हैं। अगर आपको दूसरी तरफ की दुनिया देखनी है तो ये ट्रेक आपके लिए है। हिमाचल में ट्रेकिंग करना हमेशा ही सुखद होता है और इस ट्रेक को करने के बाद ये विश्वास और भी पक्का हो जाएगा।

सबसे सही समय: मई से सितंबर।

4. कलीचो पास ट्रेक

4990 मीटर की ऊँचाई पर बना ये पास लाहौल और स्पीति घाटी जाने के सबसे मुश्किल रास्तों में से एक है। इस पास का नाम लोकल देवी भद्रकाली के नाम पर रखा गया है। गद्दी चरवाहे भी इस रास्ते का खूब इस्तेमाल करते हैं। ट्रेक की ख़ास बात है इस ट्रेक हिमाचल राज्य की दो अलग तस्वीरें निकल कर आती हैं। एक हर भरा पेड़ पौधों से भरा हिमाचल और दूसरा लाहौल की बंजर ज़मीन वाला हिमाचल। यकीन नहीं होता हसीन वादियों वाले हिमाचल का एक हिस्सा ऐसा भी है। जहाँ पर रहने के लिए लोगों को रोज़ मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

इस ट्रेक की चढ़ाई कठिन है इसलिए अगर आपके पास ट्रेकिंग का एक्सपीरियंस नहीं है तो इस ट्रेक पर जाने से बचना चाहिए। ये ट्रेक इतनी कठिन है कि कभी-कभी यहाँ के लोकल लोगों को भी इसको पार करने में दिक्कतें आती हैं। ट्रेक की शुरुआत भरमौर ज़िले से होती है। जहाँ पर आपको ट्रेक करने के लिए एक परमिट लेना होता है। बिना इस परमिट को लिए आप ट्रेक पर नहीं जा सकते हैं। पीर-पंजाल पर्वतमाला में बसा मुश्किलों भरा ये ट्रेक ट्रेकिंग प्रेमियों के लिए परफेक्ट है लेकिन अगर आप इस ट्रेक पर जाना चाहते हैं तो बुकिंग पहले से ही कर लेनी चाहिए। इस ट्रेक को करने के लिए एक सीजन में केवल तीन टोलियों को ही अनुमति दी जाती है इसलिए कोई भी काम आखरी समय के लिए मत ही छोड़ें।

सबसे सही समय: जुलाई से सितंबर।

5. चाम्सेर कांगड़ी ट्रेक

ये ट्रेक बिल्कुल एक सपने जैसा है। चकाचौंध नज़ारों से भरा ये ट्रेक आपके अंदर बैठे ट्रैवलर के लिए बिल्कुल सही है। इस ट्रेक का एहसास इतना ख़ास है जिसे आपको बिल्कुल मिस नहीं करना चाहिए। दूर तक बिछी बर्फ़ की चादर, ग्लेशियर से आती ठंडी हवा और हल्की धूप। इस कहानी में वो सब कुछ है जिसको बार-बार पढ़ने का मन करता है। लद्दाख में बसी ये ट्रेक आपको एक बार में 21765 फीट की ऊँचाई तक ले जाती है। ट्रेक की शुरुआत मर्खा घाटी से होती है जहाँ से ट्रेक करके चंगथांग आना होता है। ट्सोमोरिरी झील के आकर्षक नज़ारों वाली ये जगह दुनिया की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है।

ट्रेक के रास्ते में आपको कई गाँव भी पार करने होते हैं जिससे आपको लद्दाख की परंपराओं और कल्चर को भी देखने का मौका मिलता है। गाँवों के बाद आते हैं खुले मैदान। यहाँ आपको कोंगमारू ला मैदान में ट्रेक करना होता है। इसके बाद आता है वो पड़ाव जिसके लिए ये ट्रेक की कहानी लिखी गई है। चाम्सेर और लंगशर रूपशु इलाके की दो पहाड़ियों के नाम हैं। लंगशर के मुकाबले चाम्सेर पहाड़ की ऊँचाई थोड़ी ज़्यादा है। ये ट्रेक इसलिए भी ख़ास है क्योंकि इस ट्रेक पर आपको चंगपा बंजारों से मिलने का भी मौका मिलता है और अगर किस्मत अच्छी रही तो आप इनके साथ बैठकर इनकी जीवनशैली के बारे में बहुत कुछ जान सकते हैं।

सबसे सही समय: जुलाई से अक्टूबर।

क्या आप इनमें से किसी ट्रेक पर गए हैं? अपना सफरनामा लिखने के लिए यहाँ क्लिक करें।

रोज़ाना वॉट्सएप पर यात्रा की प्रेरणा के लिए 9319591229 पर HI लिखकर भेजें या यहां क्लिक करें।

Further Reads