पहाड़ों के सुंदर नज़ारे, चारों तरफ़ फैले चाय के बाग़ान और हिमालयन रेलवे, ऐसे ही कुछ शानदार अनुभवों के लिए दार्जिलिंग जाना जाता है। दार्जिलिंग पश्चिम बंगाल का बेहद फ़ेमस हिल स्टेशन है। भारत से ही नहीं दुनिया भर से लोग इस हिल स्टेशन में घूमने के लिए आते हैं। मैं भी दार्जिलिंग में कुछ दिन रहा और इस खूबसूरत जगह को एक्सप्लोर किया। दार्जिलिंग एक छोटा-सा हिल स्टेशन है जिसे आप पैदल-पैदल नाप सकते हैं।
दार्जिलिंग समुद्र तल से 2,045 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। कोलकाता से ट्रेन पकड़कर मैं न्यू जलपाईगुड़ी पहुँच गया। न्यू जलपाइगुड़ी से दार्जिलिंग लगभग 70 किमी. की दूरी पर है। यहाँ से दार्जिलिंग के लिए कई सारी शेयर टैक्सी चलती हैं। ऐसी ही एक शेयर टैक्सी पर मैं सवार हो गया। कुछ देर बाद शेयर टैक्सी भर गई और न्यू जलपाइगुड़ी से दार्जिलिंग के लिए चल पड़ी। लगभग आधे घंटे के बाद पहाड़ शुरू हो गए। धुँध की वजह से घाटी का कोई नजारा नहीं दिखाई दे रहा था। शाम के समय मैं दार्जिलिंग पहुँचा। वहीं टहलते-टहलते एक होटल में ठहरने की जगह मिल गई।
दिन 1:
दार्जिलिंग
अगले दिन तैयार होने के बाद दार्जिलिंग को एक्सप्लोर करने के लिए निकल पड़ा। चौक बाज़ार से होते हुए चौरस्ता मॉल रोड पहुँच गया। सुबह-सुबह मॉल रोड पर ज़्यादा भीड़ नहीं थी। मॉल रोड पर ही एक दुकान पर मोमो खाए। मैंने इतने अच्छे मोमो पहले कभी नहीं खाए थे, एकदम मज़ा ही आ गया। मोमो खाने के बाद वापस नीचे की तरफ़ चल पड़ा। चलते हुए पहुँच गया दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे स्टेशन है।
दार्जिलिंग अपनी हेरिटेज टॉय ट्रेन के लिए जाना जाता है। दार्जिलिंग और न्यू जलपाईगुड़ी के बीच टॉय ट्रेन चलती है, जिसकी कुल लंबाई लगभग 78 किमी. है। दार्जिलिंग से दो प्रकार की ट्रेनें चलती हैं, स्टीम ट्रेन और डीज़ल इंजन ट्रेन। मुझे बस इस ट्रेन का अनुभव लेना था तो मैंने ऐसी टॉय ट्रेन का टिकट लिया जो दार्जिलिंग से घूम होते हुए वापस दार्जिलिंग आती है। थोड़ी देर में हमारी टॉय ट्रेन रेलवे स्टेशन से चल पड़ी। मैंने वीडियो में ही ऐसा देखा था कि शहर के बीच से टॉय ट्रेन चल रही है और बग़ल पर बनी सड़क पर गाड़ियाँ दौड़ रही हैं। अब मैं ख़ुद वैसी ही एक टॉय ट्रेन में बैठा था।
दार्जिलिंग ट्रेन
दार्जिलिंग से घूम की दूरी लगभग 10 किमी. है। दार्जिलिंग रेलवे स्टेशन से निकलकर ट्रेन धीरे-धीरे शहर के बीच में दौड़ने लगी। इस रास्ते में कई सुंदर-सुंदर नज़ारे देखने को मिले। रास्ते में एक जगह पड़ती है, बतासिया लूप। यहाँ पर ट्रेन 10 मिनट के लिए रूकी। बतासिया लूप पर एक छोटा-सा पार्क और शहीदी स्मारक बना हुआ है। यहाँ से पहाड़ों का बेहद सुंदर नजारा देखने को मिलता है। लगभग 10 मिनट इस जगह पर रूकने के बाद ट्रेन फिर से आगे की यात्रा के लिए बढ़ चली। टॉय ट्रेन काफ़ी धीमी चलती है तो इसे अपनी यात्रा पूरी करने में समय लगता है।
कुछ देर बाद ट्रेन घूम रेलवे स्टेशन पर पहुँच गई। मेरी ट्रेन को कुछ देर यहीं रूकना था और फिर से वापस दार्जिलिंग के लिए निकलना था। बाक़ी आमतौर पर ट्रेन न्यू जलपाईगुड़ी तक जाती है। दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे यात्रा के दौरान घूम रेलवे स्टेशन सबसे ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ दार्जलिंग हिमालयन रेलवे का एक संग्रहालय भी है। जिसमें कई सारी जानकारी दी गई है और ट्रेन के कई सामान रखे गए हैं। म्यूज़ियम को देखन के बाद मैंने रेलवे स्टेशन पर मोमो खाए। कुछ देर में ट्रेन दार्जिलिंग के लिए निकलने लगी तो मैं उसमें सवार होकर दार्जिलिंग आ गया।
रिफ्यूजी सेंटर
इसके बाद मुझे तिब्बती रिफ्यूजी सेंटर जाना था। ये जगह दार्जिलिंग से लगभग 10 किमी. दूर स्थित है। दार्जिलिंग से हर जगह के लिए शेयर टैक्सी चलती है। मुझे भी अपने गंतव्य तक जाने के लिए टैक्सी मिल गई। लगभग 20 रुपए किराए में अपनी जगह पर पहुँच गया। कुछ पहाड़ी रास्ता तय करने के बाद मैं तिब्बती रिफ्यूजी सेल्फ़ हेल्प सेंटर पहुँच गया। जब 1959 में दलाई लामा अपने अनुयायियों के साथ भारत आए थे तो उनमें कुछ लोग यहाँ पर बस गए थे। तिब्बती रिफ्यूजी की मदद के लिए इस सेंटर को खोला गया था।
तिब्बती रिफ्यूजी सेंटर में कुछ फ़ोटो संग्रहालय हैं, जिसकी मदद से आप इस जगह और तिब्बती लोगों के बारे में अच्छे से जान पाएँगे। कई सारे मुख्य घटनाक्रमों के चित्र यहाँ पर लगे हुए हैं। इसके अलावा यहाँ एक हथकरघा कारख़ाना है जिसमें स्थानीय लोग हाथ से कपड़े, दरी और भी कई सारे सामान बनाते हैं। यहाँ पर एक दुकान है, जहां से काफ़ी कुछ ख़रीद सकते हैं। इस जगह को देखने के बाद मैं वापस दार्जिलिंग लौट आया।
घूम मोनेस्ट्री
दार्जिलिंग से घूम के रास्ते में कई सारी मोनेस्ट्री हैं, उन्हीं में एक मोनेस्ट्री है घूम मठ। घूम मठ को सामतेन चोलिंग बौद्ध मोनेस्ट्री के नाम से जाना जाता है। दार्जिलिंग से ये मोनेस्ट्री लगभग 6 किमी. की दूरी पर है। मैं शेयर टैक्सी से इस मोनेस्ट्री तक पहुँच गया। घूम मठ का परिसर बहुत बड़ा नहीं है। इस मोनेस्ट्री में एक प्रार्थना हॉल है जिसमें भगवान बौद्ध की एक विशाल मूर्ति रखी हुई है। मठ के परिसर में दो छोटे लामा फुटबॉल खेल रहे थे। घूम मोनेस्ट्री के पास में एक और मठ है, ड्रुक संगाग चोलिंग मोनेस्ट्री। एक बार फिर से शेयर टैक्सी लेकर ड्रुक संगाग चोलिंग मोनेस्ट्री पहुँच गया।
ड्रुक संगाग चोलिंग मोनेस्ट्री दार्जिलिंग के सबसे बड़े मठों में से एक है। ड्रुक संगाग चोलिंग मोनेस्ट्री दार्जिलिंग से लगभग 5 किमी. की दूरी पर स्थित है। इस मठ के परिसर में एक संग्रहालय भी है जिसको मैंने सबसे पहले देखा। संग्रहालय को देखने के बाद मोनेस्ट्री की तरफ़ चल पड़ा। ये मठ इसका निर्माण 1971 में क्याब्जे थुकसे रिम्पोचे के समय में हुआ था। वह अपने समय के एक प्रसिद्ध धार्मिक शिक्षक माने जाते थे। यह मठ करग्यपा संप्रदाय से संबंधित है। मैंने इस मठ से सूर्यास्त का बेहद सुंदर नज़ारा देखा। दार्जिलिंग का सबसे सुंदर नजारा मुझे यहीं देखन को मिला। इस मठ को देखने के बाद वापस दार्जिलिंग लौट आया। रात के समय कुछ देर टहलने के बाद वापस अपने होटल लौट आया।
दिन 2:
अगले दिन सुबह-सुबह तैयार होने के बाद फिर से चौरस्ता मॉल रोड पहुँच गया। यहीं पर एक दुकान पर मैंने पूड़ी-सब्जी का नाश्ता किया। इसके बाद राहुल सांकृत्यायन की मूर्ति देखने के लिए निकल पड़ा। मुझे ये नहीं पता था कि राहुल सांकृत्यायन की मूर्ति कहां पर है? बस ये पता था कि एक चर्च के पास है। लोगों से पूछते हुए काफ़ी देर भटकने के बाद राहुल सांकृत्यायन की मूर्ति देखने को मिली। राहुल सांकृत्यायन ने अपनी ज़िंदगी के आख़िरी दिन दार्जिलिंग में ही बिताए थे। मूर्ति को देखने के बाद वापस दार्जिलिंग में यूँही टहलने लगा।
रोपवे
दार्जलिंग में एक बेहद फ़ेमस रोपवे भी है। ये रोपवे दार्जिलिंग से लगभग 10 किमी. की दूरी पर है। एक टैक्सी लेकर मैं उस जगह पर पहुँच गया। इस रोपवे का नाम है, दार्जिलिंग रंगीत वैली रोपवे। रोपवे की लाइन देखकर मेरा दिमाग़ ख़राब हो गया। पहले तो टिकट के लिए मेरे आगे कम से कम 100 लोग लगे हुए थे। उसके बाद रोपवे के लिए भी इतनी लंबी लाइन लगी हुई थी। टिकट लेने के बाद जब काफ़ी देर खड़ा रहना पड़ा तो लगा कि टिकट ना लिया होता तो इसे छोड़ देता।
दार्जिलिंग रोपवे लगभग 5 किमी. लंबा है। एक केबिन में 6 लोग बैठते हैं। काफ़ी देर बाद मेरा भी नंबर आ गया। थोड़ी देर बाद चाय के बाग़ान दिखने शुरू हो गए। दूर-दूर तक हरियाली, पहाड़ और चाय के बाग़ान ही दिखाई दे रहे थे। इससे सुंदर रोपवे की यात्रा हो ही नहीं सकती है। लगभग 20 मिनट बाद मैं नीचे पहुँच गया। यहाँ पर काफ़ी देर तक चाय के बाग़ान में घूमने के बाद वापस रोपवे की लाइन में लग गया। इस तरफ़ की लाइन छोटी थी तो कुछ देर में मेरा नंबर आ गया। कुछ ही देर में मैं दार्जिलिंग पहुँच गया। दार्जिलिंग में ऐसे ही टहलते हुए रात हो गई। खाना खाने के बाद मैं वापस होटल लौट आया। मैंने दो दिन में दार्जिलिंग की काफ़ी जगहों को एक्सप्लोर किया। इसके बावजूद दार्जिलिंग की कुछ रह गईं हैं, जिनको अगली यात्रा में ज़रूर एक्सप्लोर किया जाएगा।
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