मुझे उन जगहों पर जाना बेहद पसंद है जहाँ मैं कुदरत की गोद में सुकून की कुछ साँसें ले सकूँ, नर्म धूप सेक सकूँ, और अपने माँ-बाप के साथ थोड़े दिन बिना किसी चिंता के रह सकूँ | कुछ दिन पहले मेरे पापा ने पूछा कि अब कहाँ घूमने जाने का प्लान बनाएँ | कुछ देर सोचने के बाद हमने नैनीताल और आस-पास के इलाक़ों में घूमने का मन बनाया | वैसे भी हमने नैनीताल के बारे में काफ़ी सुना था | अब आख़िरकार सच में इस जगह को देखने का फ़ैसला कर लिया था |
पापा ने नैनीताल जाने के लिए कैब और ड्राइवर बुक कर लिया था | जुलाई का पहला हफ़्ता ही था | सुबह 6.30 बजे हम नैनीताल की ओर निकल पड़े | रास्ते में एक दिन के लिए रामनगर में रुकने का भी विचार था, क्योंकि यहाँ भी सैलानी रुकना पसंद करते हैं | कुछ देर की ड्राइव के बाद हम रास्ते में एक ढाबे पर रुके और नाश्ता करने के बाद रामनगर की ओर निकल गए | दोपहर 12 बजे हम रामनगर पहुँच चुके थे, जहाँ ट्रैफिक जाम और शहरी भीड़ भाड़-बिल्कुल नहीं थी | इतनी शांति थी कि चिड़ियों के चहचहाने की आवाज़ें सुनाई दे रही थी |
ऐसा लग रहा था मानों धरती पर ही स्वर्ग में पहुँच गए हों | ये मेरी ज़िंदगी का इतना बेहतरीन समय था कि शायद ही इसे भूल पाऊँ |
उत्तराखंड राज्य के नैनीताल जिले का छोटा सा गाँव है रामनगर । महाभारत के समय में इसे उत्तरी पांचाल की राजधानी अहिछत्र के नाम से भी जाना जाता था | अपने सरकारी गेस्ट हाउस में पहुँच कर हमने लंच किया और फिर कुछ देर आराम किया | फिर हम जिम कॉर्बिट नैशनल पार्क की ओर निकल पड़े |
उत्तराखंड में स्थित ये नैशनल पार्क भारत का सबसे पुराना पार्क है और सैलानियों में काफ़ी मशहूर भी है| ठीक 2 बजे एक ख़ास गाड़ी हमारे गेस्ट हाउस हमे लेने पहुँच गयी | जीप ख़ास इसलिए थी क्योंकि ऊपर से खुली थी | मुझे बड़ी खुशी हो रही थी क़ि खुली जीप में बैठ कर नैशनल पार्क घूमने को मिलेगा | मैने जिंदगी में पहले कभी खुली जीप की सवारी नहीं की थी | हमने ड्राइवर से पूछा कि खुली जीप में कोई ख़तरा तो नहीं ? इस पर ड्राइवर ने कहा कि अगर जंगल से कोई जंगली जानवर निकल भी आए तो चुपचाप शांति से जीप में बैठे रहें|
भारत के इस जाने माने नैशनल पार्क में 488 प्रजाति के पेड़ पौधे और 600 से ज़्यादा प्रजातियों के पंछी हैं | यहाँ हाथी, बाघ, चीतल, सांभर हिरण, नीलगाय, घड़ियाल, किंग कोबरा, मंटजैक, जंगली भालू, हेजहोग, कॉमन मस्क श्र्यू, फ्लाइयिंग फॉक्स, इंडियन पैंगोलिन जैसे जानवर पाए जाते हैं | 521 वर्ग कि.मी. के दायरे में फैला ये पार्क लुप्तप्राय जानवर रॉयल बंगाल टाइगर का घर भी है|
हिमालय की तलहटी में बने इस पार्क की खूबसूरती देखते ही बनती है | अमांडा गेट, धनगढ़ी गेट, खारा गेट और दुर्गा देवी गेट नाम से पार्क के चार गेट हैं, जहाँ से लोग अंदर आ सकते हैं | कुछ देर पार्क में घूमकर हम रामनगर की ओर वापिस लौट गये | ये सफ़र काफ़ी मज़ेदार था|
जिम कॉर्बेट पार्क घूमने का सही वक्त
हमने देखा कि पार्क घूमने का सही समय सुबह जल्दी या दोपहर बाद है क्योंकि जानवर घने जंगलों से शाम को निकलते हैं और अगली सुबह धूप तेज़ होने तक बाहर रहते हैं | शाम 7 बजे अपने गेस्ट हाउस में पहुँचने से पहले हमने कई रंग के पंछी और छोटे बड़े जानवर देख चुके थे | सफारी की ये सवारी में कभी नहीं भूल सकता |
नैनीताल पहुँचते ही नर्म धूप और ठंडी हवा मेरे चेहरे पर पड़ने लगी | कैब का ड्राइवर बड़ी कुशलता से चलाते हुए वादियों की सैर करवाता हुआ हमें कब नैनीताल ले आया पता ही नहीं चला|
नैनीताल हिमालय की कुमाउ रेंज में 1938 मीटर की ऊँचाई पर बसा हुआ है | बर्फ से लदी वादियाँ और झीलों से घिरा ये सुंदर-सा शहर काफ़ी सुकून देता है | तभी इसे 'लेक पॅरडाइस' कहा जाता है |अगर आपको शहरी भीड़ और शोर से कुछ समय के लिए दूर होना है तो नैनीताल सही जगह है|
नैनी का मतलब आँख होता है और ताल का मतलब झील | तभी नैनीताल को भारत में झीलों का शहर भी कहते हैं | नैनीताल की खूबसूरती और नैनी झील के चलते पूरे देश से प्रेमी जोड़े, नवविवाहित जोड़े, पारिवारिक लोग, कलाकार और दोस्त समूह के साथ यहाँ छुट्टियाँ मनाने आते हैं | होटल की ओर जाते हुए हम नैनी देवी के मंदिर, इको केव पार्क, कुमाऊँ विकास सदन मार्ग में रुकते हुए गए | रास्ते में हमने नैनी लेक देखी जिसमें कई सैलानी बोटिंग कर रहे थे | बहुत खूबसूरत लेक थी |
नैनी शब्द देवी नैना के नाम से लिया गया है | नैनीताल भारत की 64 शक्तिपीठों में से एक है | कहते हैं कि जब शिव, देवी पार्वती का शव ले जा रहे थे तब शव से आँखें निकलकर नैनीताल में गिर गई थी | नैनी झील के उत्तरी ओर नैना देवी का मंदिर बना हुआ है | सन 1880 में हुए एक भूस्खलन में ये मंदिर बर्बाद हो गया था, मगर मंदिर की महानता के मद्देनज़र इसे दोबारा बनवाया गया | मंदिर में नैना देवी के रूप में दो आँखें बनी हैं, साथ ही माँ काली और गणेश की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं |
शहर के बीचों बीच आँख के आकार में ये झील बनी हुई है जो इतनी लोकप्रिय है कि इसके नाम पर नैनीताल का नामकरण हुआ है | इस झील के आस पास सुखताल, नारायण नगर, चरखे, सरिताताल, खुरपाताल, मंगोली और घाटघर नाम के पहाड़ हैं | नैनी झील के भी दो भाग हैं : दक्षिणी भाग को तल्लिताल और उत्तरी भाग को मल्लिताल कहा जाता है | 3.5 कि.मी. के दायरे में फैली झील से सूर्यास्त का नज़ारा बड़ा सुहावना दिखता है | रात को आस-पास के घरों में जलने वाली रोशनी से झील जगमगा उठती है | लगता है जैसे झील की सतह के नीचे एक और शहर बसा है | झील पर पेडल बोटिंग, योटिंग आदि होता है |
नैनीताल से 23 कि.मी. दूर स्थित इस जगह के नाम का मतलब है सात झीलें | चीड़ के जंगलों के बीच सात झीलें पास-पास बनी हैं | सत्ताल में हमने सबसे पहले नल-दमयंती झील देखी | अगली थी पन्ना या गरुड़े झील | आख़िर में हमने तीन झीलों का समूह - राम, लक्षमण और सीता झील देखी | सुहाने मौसम और खूबसूरत नज़ारों के बीच मैंने पापा-मम्मी के साथ कई तस्वीरें खींची | कुछ देर बाद हम यहाँ से रवाना हो गए |
ये झील नैनीताल से 26 कि.मी. दूर 1220 मीटर की ऊँचाई पर बनी है | इस झील के 9 छोर हैं इसलिए इसे नौकूचिया ताल कहते हैं | झील में खिलते कमल, पीछे बर्फ़ीले पहाड़ और आस-पास के जंगल झील को बेहद लुभावना बना देते हैं | ग्रेटर नैनीताल इलाक़े में ये सबसे गहरी झील भी है| कहते हैं अगर कोई एक साथ इस झील के 9 किनारों को देख लेगा तो वो बादलों की सैर करने लगेगा |
हनुमान गढ़ी
तल्लिताल के दक्षिण में स्थित ये मंदिर हनुमान जी का काफ़ी लोकप्रिय मंदिर है | 1951 मीटर की ऊँचाई पर बना ये मंदिर नैनीताल बस स्टैंड से 3.5 कि.मी. दूर है | मंदिर में वानर राज हनुमान की मूर्ति रखी है जिसमें वो सीना चीरकर राम सीता का नाम दिखा रहे हैं | धार्मिक मान्यता के अलावा ये मंदिर ऊँचाई पर इतनी सही जगह बना हुआ है कि यहाँ से सूर्योदय और सूर्यास्त का नज़ारा बहुत सुंदर दिखता है | यहाँ बनी हनुमान मूर्ति से ऊँची मूर्ति मैने कहीं नहीं देखी | कुछ देर बाद हम एक और झील की ओर निकल गये और तभी फिर से तेज़ बरसात होने लगी | चेहरे पर पड़ती पानी की बूँदें ऐसी लग रही थी मानों साक्षात हनुमान स्वयं हमें आशीर्वाद दे रहे हों |
नैनीताल से 22 कि.मी. दूर स्थित ये झील यहाँ की सबसे बड़ी झील है | महाभारत में पांडवों के दूसरे भाई भीम के नाम पर इसका नामकरण हुआ है जो अपने बल के कारण जाना जाता था | झील के एक छोर पर 40 फीट ऊँचे बाँध पर 17वीं शताब्दी में बना भीमेश्वर मंदिर स्थित है |
2292 मीटर ऊँची इस जगह को डोरोथी सीट भी कहते हैं जहाँ से हिमालय की चोटियों के दर्शन किए जा सकते हैं | टिफिन टॉप और लैंड्स एन्ड दोनों पास-पास में ही स्थित हैं | टिफिन टॉप पर पत्थर पर नक्काशी करके बैठने की जगह बनायी हुई है जिसका नामकरण एक इंग्लिश पेंटर डोरोथी केलेट की याद में किया हुआ है |
ये सड़क नैनीताल को मल्लीताल और तल्लीताल से जोड़ती है | इसीलिए इस सड़क पर भीड़ भी ज़्यादा रहती है | मई-जून के व्यस्त महीनों में तो इस सड़क पर यातायात के आने-जाने की अनुमति भी नहीं होती क्योंकि इस सड़क पर टूरिस्ट खरीदारी करना बेहद पसंद करते हैं | यहाँ आपको होटल, रेस्त्रां, शॉपिंग सेंटर, खेल-खिलौनों की दुकानें, आभूषणों की दुकानें, बैंक, ट्रैवल एजेंसियाँ और दूसरी कई तरह की दुकानें दिख जाएँगी | यहाँ से हम पूरे शहर का नज़ारा देख सकते थे | पहाड़ों से टकराते बादल, झील का साफ़ पानी, और ठंडी ठंडी हवा माहौल को और भी रूहानी बना रही थी |
समुद्रतल से 1829 मीटर की ऊँचाई पर उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में रानीखेत है | रानीखेत में साल भर लोग शहरी भागमभाग से दूर कुछ समय शांति से बिताने आते हैं | कहते हैं कि कुमाऊँ की रानी पद्मिनी को ये जगह बहुत पसंद थी इसलिए राजा सुधरदेव ने रानी के लिए यहाँ एक महल बना दिया, और इस तरह इस जगह को रानीखेत कहने लगे | आज रानीखेत में कुमाऊ रेजिमेंट और नागा रेजिमेंट का मुख्यालय है जिसकी देखरेख भारतीय सेना द्वारा की जाती है | रानीखेत के पहाड़, देवदार के जंगल, घाटियाँ, आसमान में सुबह शाम रंगों के नज़ारे देख कर यहाँ से जाने का मन ही नहीं करता है | ये जगह अपने आप में इतनी नायाब है कि साल में हर मौसम यहाँ सैलानी घूमते दिख जाते हैं |
ये रानीखेत का जाना मान मंदिर है और अगर आप रानीखेत आए हैं तो यहाँ ज़रूर जाएँ | इस विशाल मंदिर में ख़ास किस्म की घंटियाँ बँधी हुई हैं | यहाँ का पुजारी बताता है कि लोग दूर-दूर से यहाँ आकर लाल कपड़े में बँधी घंटी बाँध जाते हैं | इससे उनकी माँगी हुई मन्नत पूरी होती है | हमने घंटी तो नहीं बाँधी मगर मन्नत ज़रूर माँग ली, और फिर हम बाग-बगीछों की ओर निकल गये
नैनीताल से 63 कि.मी. और दिल्ली से 380 कि.मी. की दूरी पर अल्मोड़ा शहर बसा है | शहर के बीचों बीच नंदा देवी का मंदिर है और इस वजह से इस शहर को "मंदिरों का शहर" भी कहते हैं |अल्मोड़ा में आड़ू, खुबानी, सेब, आलूबुखारे जैसे कई फलों के बाग हैं।अल्मोड़ा के बाज़ार जैसे लाला बाज़ार, मल्ली बाज़ार करखाना बाज़ार और थाना बाज़ार बेहद मशहूर हैं, जहाँ स्थानीय हस्तशीप्कारी के नायाब नमूने बेचे जाते हैं | अल्मोड़ा में हिरण पार्क काफ़ी लोकप्रिय है जहाँ कई प्रजाति की हिरण देखे जा सकते हैं | बाज़ार देर रात 1 बजे तक खुले रहते हैं |
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