मैंने गंगटोक में बिताए 3 दिन, पूरी सफर की जानकारी जान लो काम आएगी

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Photo of मैंने गंगटोक में बिताए 3 दिन, पूरी सफर की जानकारी जान लो काम आएगी by Rishabh Dev

जब आप शहर की बोरियत भरी ज़िंदगी से बोर हो जाते हैं तो ब्रेक लेने के लिए पहाड़ से बढ़िया कुछ नहीं है। पूर्वोत्तर प्राकृतिक सुंदरता से सरोबार है। सिक्किम भारत के सबसे सुंदर राज्यों में से एक है। जो भी एक बार सिक्किम जाता है, बार-बार यहाँ आने की हसरत रखता है। सिक्किम की घुमावदार सड़कें, हरे-भरे पहाड़ और फूलों से ढंकी घाटियाँ किसी जन्नत से कम नहीं है। गंगटोक सिक्किम की राजधानी भी है और सिक्किम का सबसे बड़ा शहर है। गंगटोक में मैंने तीन दिन बिताए। गंगटोक को मैंने क्या-क्या देखा और क्या-क्या किया? ये विस्तृत जानकारी मैं आपको देने जा रहा हूँ।

दिन 1:

गंगटोक

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गंगटोक समुद्र तल से 1,650 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। मैं दार्जिलिंग से गंगटोक पहुँचा। पहली नज़र में मुझे गंगटोक एकदम बढ़िया शहर लगा। यहाँ के लोग काफ़ी मददगार है और पहाड़ के लोग होते ही शानदार हैं। महात्मा गांधी मार्ग गंगटोक की सबसे फ़ेमस जगहों में से एक है। एमजी मार्ग गंगटोक का मुख्य आकर्षण है। यहाँ पर आपको खाने-पीने और शॉपिंग के लिए कई सारी दुकानें मिल जाएँगी। महात्मा गांधी मार्ग पर ही मुझे ठहरने के लिए एक होटल मिल गया। होटल में कुछ देर आराम और तैयार होने के बाद घूमने के लिए निकल पड़ा।

नामग्याल तिब्बत विज्ञान संस्थान

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मैं गंगटोक आया और उसी दिन दलाई लामा भी किसी कार्यक्रम के चलते गंगटोक आए। दलाई लामा के कार्यक्रम के चलते गंगटोक में वाहनों का आवागमन बंद था। इसके बाद मेरे पास आसपास की जगहें देखने का विकल्प बच गया। ऐसे ही पैदल चलते हुए मैं नामग्याल तिब्बत विज्ञान संस्थान पहुँच गय लेकिन किसी कारण से कुछ दिन के लिए संस्थान बंद था। इसके बारे में अगर बात की जाए तो यहां आप कला का कार्य, वस्तुएं, पांडुलिपिया, स्मृति चिन्ह और तिब्बती दस्तावेजों आदि की प्रदर्शनी देख सकते हैं। इस संस्थान की आधारशिला 14वें दलाई लामा ने रखी थी।

दो द्रूल चोर्टन

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नामग्याल तिब्बत विज्ञान संस्थान के आगे कुछ किलोमीटर की दूरी पर दो द्रूल चोर्टन स्तूप है। मैं पैदल चलते हुए दो द्रूल चोर्टन पहुँच गया। इसका निर्माण 1946 में त्रुल्शि रिन्पोचे ने करवाया था। दो द्रूल चोर्टन में प्रवेश करते हुए आपको बड़ा-सा स्तूप देखने को मिलता है। इस मठ में एक प्रार्थना हॉल भी है जिसमें कई सारे स्थानीय देवी-देवताओं की मूर्तियाँ रखीं हुईं हैं। इसके अलावा यहाँ 108 प्रार्थना चक्र स्थापित हैं। कुछ देर ठहरने के बाद मैं वापस महात्मा गांधी मार्ग लौट आया।

दिन 2:

इनहेंची मोनेस्ट्री

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अगले दिन सबसे पहले मैंने गंगटोक में एक स्कूटी किराए पर ली। 800 रुपए में मुझे पूरे दिन के लिए स्कूटी मिल गई। इसके बाद मैं स्कूटी से घूमने के लिए निकल पड़ा। सबसे पहले मैं पहंची इनहेंची मोनेस्ट्री। इनहेंची मोनेस्ट्री लगभग 200 साल पुरानी है और इसका निर्माण 1909-1910 के बीच करवाया गया था। इस मोनेस्ट्री में लगभग 90 बौद्ध भिक्षु रहते हैं। इस बौद्ध मठ को देखने के लिए 20 रुपए का टिकट लगता है। इस मोनेस्ट्री में कई सारे मंदिर और प्रार्थना हॉल हैं, जिनके अंदर फ़ोटो और वीडियो लेना मना है। इनहेंची मठ को देखने के बाद मैं हनुमान टोक को देखने के लिए निकल पड़ा।

हनुमान टोक

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गंगटोक शहर से हनुमान टोक लगभग 8 किमी. की दूरी पर है। नाथुला चेक पोस्ट से पहले एक रास्ता ऊपर की ओर जाता है। उसी पतले रास्ते को पकड़ते हुए मैं हनुमान टोक पहुँच गया। इस जगह के बारे में कहा जाता है कि लक्ष्मण के लिए संजीवनी लाने के दौरान हनुमान यहाँ ठहरे थे। यहाँ से आपको गंगटोक का बेहद सुंदर नजारा देखने को मिलता है। हरे-भरे पहाड़ और चारों तरफ़ फैली हरियाली इस जगह को सुंदर बनाती है। इस जगह को देखने के बाद मैं निकल पड़ा गणेश टोक की तरफ़।

गणेश टोक

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कुछ ही देर में मैं गणेश टोक पहुँच गया। गंगटोक से क़रीब 7 किमी. दूर एक पहाड़ी पर गणेश जी का मंदिर है। गणेश मंदिर को ही गणेश टोक के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण 1953-54 में भारत सरकार के अधिकारी अपा बी. पंत ने करवाया था। यहाँ से गंगटोक शहर का बेहद सुंदर नजारा देखने को मिलता है। गणेश टोक के सामने ही जूलोजिकल पार्क है लेकिन जाने का मन नहीं हुआ। गणेश जी के दर्शन करने के बाद मैं निकल पड़ा ताशी व्यू प्वाइंट के लिए।

ताशी व्यू प्वाइंट

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कुछ दूर आगे बढ़ने पर ताशी व्यू प्वाइंट मिल गया। ताशी व्यू प्वाइंट से सूर्योदय और सूर्यास्त का बेहद सुंदर नज़ारे देखने को मिलता है। ताशी व्यू प्वाइंट गंगटोक से लगभग 8 किमी. की दूरी पर है। ये जाना तो जाता है अपने सुंदर नज़ारे के लिए लेकिन मुझे तो यहाँ से कुछ ख़ास नजारा देखने को नहीं मिला। गंगटोक की इस जगह ने मुझे निराश किया।

रूमटेक मठ

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गंगटोक से लगभग 20 किमी. दूरी पर रूमटेक मठ है। रूमटेक मठ को धर्मचक्र सेंटर के नाम से भी जाना जाता है। यह स्थान तिब्बती बौद्ध धर्म से संबंध रखने वाले करमा कग्यु वंश के मुखिया ग्यालमा करमापा 16वें की गद्दी के रूप में प्रसिद्ध है। 16वीं सदी में बनी यह मोनेस्ट्री सिक्किम की सबसे बड़ी मोनेस्ट्री है। गंगटोक से रूमटेक पहुँचने में लगभग 1 घंटे का समय लगा। रूमटेक मठ के प्रार्थना हॉल में साक्य मुनि बुद्ध की 10 फ़ीट ऊँची प्रतिमा स्थापित है। मठ में एक गोल्डन स्तूप भी है जिसे मैंने देखा। इसके बाद गंगटोक पहुंचते-पहुंचते अंधेरा हो गया। कुछ देर महात्मा गांधी मार्ग पर टहलते हुए खाना खाया और फिर सोने के लिए चला गया।

दिन 3:

गंगटोक रोपवे

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अगले दिन मुझे नाथुला दर्रा के लिए निकलना था लेकिन देर रात भारी बर्फ़बारी के चलते नाथुला पास बंद हो गया। इस वजह से मेरा नाथुला दर्रा, बाबा हरभजन सिंह मंदिर और चांगू लेक देखने का प्लान रद्द हो गया। अब मेरे पास करने को कुछ नहीं था तो रोपवे करने के लिए निकल पड़ा। गंगटोक में रोपवे देओरली बाज़ार में है। नामग्याल तिब्बत विज्ञान संस्थान के पास में ही गंगटोक रोपवे है। इसका टिकट 130 रुपए है और लगभग 1 किमी. की यात्रा होती है।

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एक केबल कार में लगभग 20 लोग खड़े रहते हैं। केबल कार से गंगटोक का बेहद सुंदर नज़ारा देखने को मिलता है। इसके बाद मैंने ब्लैक कैट डिवीजन संग्रहालय को भी देखा।पूरा दिन मेरा ऐसे ही निकल गया और अगले दिन गंगटोक से बागडोगरा के लिए निकल पड़ा। बागडोगरा पहुँचने में पूरा दिन निकल गया। बागडोगरा से फ़्लाइट पकड़ी और दिल्ली आ गया। इस तरह से मेरी गंगटोक की यात्रा पूरी हुई।

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