ट्रेन का सफ़र मतलब ज़िन्दगी का सफ़र। सबसे यादगार अनुभव अक्सर ट्रेन की राहों से गुज़रते मिलते हैं। अच्छा, एक बार सोचिए कि ट्रेन न होती तो कितना ख़ालीपन होता, कितनी ही दास्तानें ना बन पाती। अपने मुसाफ़िरनामे में ट्रेन से गुज़रते हुए कितने ही लोग मिलते हैं जो ज़हन में रह जाते हैं।
पर इसके साथ ही मिलते हैं कुछ चमन, जो क्यों हैं मुझे आज तक समझ नहीं आया। ट्रेन के सफरनामें को इन्होंने जो गुलज़ार किया है, सफ़र जन्नत से जहन्नुम हो गया है। आइए मिलते हैं कुछ ऐसे ही लोगों से, जिनके ज्ञान की जितनी व्याख्या की जाए, कम है।
1. पंखे पर जूते चप्पल कौन रखता है भाई
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जूताचोरों से बचने के लिए हमने एक नया तरीका इजाद किया है। अपने जूते स्लीपर में पंखे के ऊपर ऐसे सेट करके रखते हैं कि भूकंप आ जावे लेकिन जूता न गिरने पावे। नया टैलेंट है। ठोंको ताली।
2. रात में ट्रेन में ही सोता रह गया
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दिल्ली से कानपुर के लिए रात को ट्रेन में चढ़ा मैं। बगल वाले अंकल को भी कानपुर उतरना था। मैंने उनसे बोला कि ख़ुद उतरें तो मुझे भी जगा देना। अंकल ने भी इतना कॉन्फ़िडेंस के साथ बोला था कि हाँ, टेन्सन न लो बेटा, सुबह होते ही जगा दूँगा। सुबह उठा तो इलाहाबाद आने वाला था। अंकल बिना मुझे उठाए ही कानपुर उतर लिए।
रोने वाली बात ये है कि ऐसा मेरे साथ दो बार हो चुका है। कोई मुझे चुल्लू भर पानी दे दो।
3. पेन साथ में लेकर चलें, क्या पता पंखा चलाने में काम आ जाए।
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स्लीपर कोच में पंखे इस तरह से डिज़ाइन होते हैं जो बटन से नहीं, पेन से चलते हैं। अगर आप के पास पेन नहीं है तो भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है आपको।
लेकिन अगर आप साइड अपर की सीट पर हैं तो पेन और बटन भी कुछ नहीं कर सकते। वहाँ का पंखा भगवान जाने किधर हवा फेंकने के लिए लगाया गया है।
4. वॉशरूम का लॉक बनाया ही क्यों है?
क्यों, आख़िर क्यों?? वॉशरूम को कोई बाहर से बन्द नहीं करता। सब खुला छोड़कर जाते हैं। दर्द उनसे पूछो जिनका बर्थ नंबर 1-8 या 65-72 में होता है। उनमें से कोई या तो बार-बार दरवाज़ा बन्द करता है या फिर बदबू का आनंद लेता है।
5. स्लीपर की खिड़की कभी पूरी बन्द नहीं होती।
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इसका जवाब तो नास्त्रेदमस भी नहीं दे पाए। जाड़े में ठंडी हवाओं से बचने के लिए आप खिड़की बन्द करते हो तो बिल्कुल नीचे से ठंडी हवा साँय साँय करके जमाती रहती है। बारिश में ये खिड़की पानी भी नहीं रोक पाती। वो खिड़की बनाई इसलिए गई है कि आपको तकलीफ़ हो और आप तंग आकर एसी में टिकट बुक करो।
6. रेलवे ट्रैक सिर्फ ट्रेनों की आने-जाने के लिए नहीं बना
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जी हाँ साथियों! जहाँ पर रेलवे ट्रैक है, वहाँ पर पहले कभी वॉशरूम थे। रेलवे ने उन्हें तोड़कर ट्रेनें चलानी शुरू कर दीं। इससे लोगों को घोर दुःख हुआ और अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए रेलवे ट्रैक को ही वॉशरूम बना लिया। कम-से कम रेलवे प्लैटफॉर्म के नज़ारों को देखकर तो यही कहानी सच लगती है।
7. ट्रेन का राइट टाइम होना कभी राइट नहीं होता
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एक बार मेरे पापा ने एक ट्रेन को देखकर बोला कि, ये ट्रेन तो हमेशा 17-18 घंटा लेट रहती है, तो आज के दिन ये राइट टाइम क्यों चल रही है। उनके बगल वाले साथी ने बोला कि, ये ट्रेन राइट टाइम नहींं है, ये तो आज 24 घंटा लेट चल रही है। तो जान लो, अगर कोई ट्रेन राइट टाइम मिले तो एक बार फिर से चेक करो कि वो 1 दिन लेट तो नहीं।
8. खिड़की वाली सीट का मज़ा सिर्फ बचपन तक ही है
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बच्चों से पूछो कि कहाँ बैठना है, तो बोलेंगे खिड़की वाली सीट पर। जब बड़े हो जाएँगे तो पता चलेगा कि खिड़की वाली सीट जानलेवा है। बारिश में पानी नहीं रुकता और सर्दी में ठंड। गर्मी में तो जो थपेड़े पड़ते हैं, स्किन टोन 2 अंक तक गिर जाए।
एक उम्र होने के बाद हमको अपर सीट अच्छी लगने लगती है। जहाँ न कोई छेड़ने वाला होता है, ना ही कोई पूछने वाला।
9. कोच का वो रोता हुआ बच्चा
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एकदम अन्दरूनी ख़बर लाया हूँ आपके लिए। हर कोच में ट्रेन वालों की तरफ़ से एक बच्चा बिठाया जाता है जिसका काम होता है रात को 3 बजे रोना शुरू करना। जिसे उसके माँ-बाप हो या ट्रेन के एक्सपर्ट कोई चुप नहीं करवा सकता, बस समझ जाओ क्या माहौल होता है।
अगर ये क़िस्सा आपकी आँखों से होकर नहीं गुज़रा, तो आप ट्रेन के ट्रेन्ड खिलाड़ी नहीं हो।
अगर आपके ट्रेन क़िस्सों में इनकी शुमारी नहीं है तो आपको ट्रेन का बड़ा सफ़र तय करना बाकी है।
आप क्या कहना चाहेंगे अपने ट्रेन सफ़र के बारे में, उन क़िस्सों के बारे में जो हमसे छूट गए, हमें कमेंट बॉक्स में लिखना न भूलें।