भारत देश देवों और ऋषि मुनियों का पवित्र देश है,यहां आपको हर राज्य, हर शहर में न जाने कितने ही मंदिर मिल जायेंगे जो न जाने कितने चमत्कारों से भरा पड़ा है। हर मंदिर की अपनी अलग पहचान, विशेषता और अपना एक अलग इतिहास है।कश्मीर से कन्याकुमारी तक ऐसे कितने ही स्थान है जहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते है और सिर्फ यहीं नहीं बल्कि विदेशों से भी ज्यादा से ज्यादा संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं।इन्ही मंदिरों में से एक है दक्षिण भारत का श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर ।तो आइए जानते है इस मंदिर के विषय में।
श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर
तमिलनाडु में तिरुचिरापल्ली के श्रीरंगम में स्थित श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित एक हिंदू मंदिर है।इस मंदिर में भगवान रंगनाथ की पूजा की जाती है जिसे भगवान विष्णु का ही अवतार माना जाता है।यह मंदिर मैसूर से 16 किमी की दूरी पर कावेरी नदी द्वारा बने एक द्वीप पर स्थित है। रंगनाथस्वामी मंदिर के नाम पर ही इस कस्बे का नाम श्रीरंगपटना पड़ा है। यह कर्नाटक के मंद्या जिले में है। पहले इसको श्रीरंगपुरी के नाम से जाना जाता था।इस मंदिर का विस्तार 155 एकड़ में है।इस मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा शयन मुद्रा में है।जोकि भगवान विष्णु का शयन कक्ष है।यह मंदिर द्रविड़ शैली में बनाया गया है।इस मंदिर की वास्तुकला और बनावट इतनी ज्यादा आकर्षक है कि देखने वाले देखते ही रह जाते हैं।
मंदिर की वास्तुकला
इस मंदिर का निर्माण तमिल शैली में किया गया है।मंदिर की वास्तुकला और बनावट इतनी ज्यादा आकर्षक है कि देखने वाले देखते ही रह जाते हैं। वैसे तो मंदिर ग्रेनाइट पत्थर से बनाया गया है लेकिन मंदिर में मुख्य देवता की मूर्ति स्टुको से बनी हुई है।वास्तु कला के लिहाज से इस मंदिर में तमिल शैली की बहुलता देखने को मिलती है। मंदिर का जिक्र संगम युग( 1000 ई. से 250 ई.) के तमिल साहित्य और शिलप्पादिकारम (तमिल साहित्य के पांच श्रेष्ठ महाकाव्यों में से एक) में भी मिलता है। यह मंदिर विशाल परिसर वाले मंदिरों में से है। मंदिर में और भी देवताओं के देवालय है जहां और भी देवताओं के मूर्ति स्थापित है।3 नंवबर, 2017 को इस मंदिर को बड़े पैमाने पर पुननिर्माण के बाद सांस्कृतिक विरासत संरक्षण हेतु ‘यूनेस्को एशिया प्रशांत पुरस्कार मेरिट, 2017’ भी मिला था।
श्री रंगनाथस्वामी मंदिर का इतिहास
मंदिर का इतिहास 9 वी से 16 वीं शताब्दी के बीच के समय से जुड़ा हुआ है।मंदिर के शिलालेख से चोला, पांड्या, होयसला और विजयनगर साम्राज्य का उल्लेख मिलता है।बताया जाता है कि श्री रंगनाथम की प्रतिमा पहले जहां स्थापित की गई थी वहां कुछ समय बाद जंगल बन चुका था, कुछ सालों के बाद एक बार जब चोला राजा शिकार के लिए जंगल पहुंचे तो उन्हें अचानक भगवान की प्रतिमा उस सुनसान जंगल में दिखी। इसके बाद राजा ने रंगनाथस्वामी मंदिर परिषद को विकसित कर विशाल मंदिर बनाने का निर्णय लिया।
रामायण काल से भी जुड़ी है मान्यता
ऐसी मान्यता है कि त्रेता युग में भगवान राम ने सीता अपहरण के बाद यहां लंबे समय तक आराधना की थी। लंका विजय के बाद जब वे वापस लौटे तो यह मंदिर उन्होंने विभीषण को सौंप दिया और यही पर विभीषण के सामने भगवान राम इसी स्थान पर विष्णु रूप में प्रकट हुए थे और कहा था कि वे यहां रंगनाथ के रूप में निवास करेंगे और लक्ष्मी रंगनायकी के रूप में सदैव रहेंगी।
एकमात्र ऐसा मंदिर जहां होती है ममी की पूजा
वैष्णव संस्कृति के दार्शनिक गुरु रामानुजाचार्य का भी स्थान से बहुत गहरा संबंध है।ऐसी मान्यता है कि श्री रामानुजाचार्य अपनी वृद्धावस्था में यहां आ थे और करीब 120 वर्ष की आयु तक श्रीरंगम में ही रहे थे।कुछ समय बाद भगवान श्री रंगनाथ से देहत्याग की अनुमति ली, तदोपरांत अपने शिष्यों के सामने देहावसान की घोषणा कर दी। माना जाता है कि भगवान रंगनाथ स्वामी की आज्ञा के अनुसार ही उनके मूल शरीर को मंदिर में दक्षिण पश्चिम दिशा के एक कोने में रखा गया है। यह मंदिर दुनिया में एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां एक वास्तविक मृत शरीर को हिंदू मंदिर के अंदर कई वर्षों से रखकर पूजा जाता है।इस मंदिर में रामानुजाचार्य के 1000 वर्ष पूर्व के मूल शरीर को संभाल कर रखा गया है।वैसे तो आम तौर पर ममी निद्रा भंग रूप में होती हैं लेकिन रामानुजाचार्य की ममी सामान्य बैठने की स्थिति यानी उपदेश मुद्रा में प्रतीत होती है।इस ममी पर केवल चंदन और केसर का लेप लगाया जाता है। इसके अलावा किसी अन्य रासायनिक पदार्थ का उपयोग इस ममी को संरक्षित करने के लिए नहीं किया जाता है।
श्री रंगनाथ के उत्सव और त्यौहार
रंगनाथ स्वामी मंदिर में कई उत्सव और त्यौहार मनाए जाते है। यहां का सबसे धूम धाम से मनाया जाने वाला त्योहार ओंजल उत्सव है।ये उत्सव दिवाली के पहले कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की दूज से एकादशी तक 9 दिनों का पर्व मनाया जाता है। इस उत्सव में श्री रंगनाथ स्वामी की भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। इस दौरान वैदिक मंत्रों और तमिल गीतों का उच्चारण किया जाता है।इसके अलावा यहां वैकुंठ एकादशी, श्रीरंगम मंदिर ब्रह्मोत्सव, स्वर्णजरूवर उत्सव, रथोत्सव, बसोत्सव, ज्येष्ठाभिषेक, श्री जयंती, पवित्रोत्सव, थाईपुसम आदि प्रमुख त्यौहार मनाए जाते है।
श्रीरंगम मंदिर खुलने और बंद होने का समय
रंगनाथस्वामी मंदिर में दर्शन का समय प्रातः 8 बजे से दोपहर 1 बजे तक और संध्या 4 बजे से रात 8 बजे तक।
कैसे पहुंचे
वायु मार्ग द्वारा : श्री रंगनाथ से 166 किमी दुरी पर बेंगलुरू में स्थित केंपेगोवड़ा अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट यहां का सबसे निकटतम हवाई अड्डा है।
रेल मार्ग द्वारा : यहां का सबसे निकटम रेलवे स्टेशन शहर के केंद्र में स्थित श्रीरंगपटना रेलवे स्टेशन है जहां से राज्य के अन्य शहरों और देश के कई हिस्सों से ट्रेनें आती हैं।
सड़क मार्ग द्वारा : अगर आप श्रीरंगपटना सड़क मार्ग द्वारा जाना चाहते है तो इस शहर की सड़क व्यवस्था काफी दुरुस्त है और श्रीरंगपटना के लिए मुख्य शहरों से नियमित बसें भी चलती हैं।
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