लद्दाख के उबड-खाबड़ इलाके में अनगिनत मठ आपको देखने को मिल जाएंगे क्योंकि यहां अधिकतर लोग बौद्ध धर्म को मानते हैं। ये मठ पर्यटकों को न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के कारण अपनी और आकर्षित करते हैं बल्कि इनकी शानदार वास्तुकला भी पर्यटकों को अपनी ओर खींच लाती है। पुरानी कलाकृतियां, भित्तिचित्र और इतिहास से जुड़ी दूसरी चीजें अनायास ही पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर खींच लेती हैं। इन गोंपा (तिब्बती शैली में बने मठ) का शांत परिवेश आपको फिर से तरोताजा कर देगा।थिक्सी गोम्पा या थिक्सी मठ भारत के केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में लेह से 25 कि.मी. की दूरी पर सिंधु नदी के किनारे स्थित है। थिकसे मठ के ऊपर से सिंधु घाटी के सुंदर नजारे को देखा जा सकता है। दीवारें अत्यंत सुंदर चित्रों और कलाकृतियों से मढ़ी हैं। यह मठ लेह के सभी मठों से आकर्षक और ख़ूबसूरत है।
थिकसे मोनेस्ट्री
थिकसे मठ भी भारत की बड़े मठों मे से एक है। लेह की पहाडियों पर बने इस मठ की खासियत यहां की सुंदरता में बसी शांति की है। ये जगह इतनी खूबसूरत है कि अगर आप यहां आते है तो आपको यहां की वादियां अपना बना लेंगी। यहाँ आने वाले पर्यटक सुन्दर और शानदार स्तूप, मूर्तियाँ, पेंटिंग,थांगका और तलवारों को देख सकते हैं जो यहाँ के गोम्पा में राखी हुई हैं। यहां के आप पास ठहर कर कुछ दिन यहां की खूबसूरती को निहारना और यहां कि हवा बिलकुल साफ और जादूई है। आत्मचिंतम के लिए ये बेहतरीन जगहों में से एक है। यहाँ पर एक बड़ा सा पिलर भी है जिसमें भगवान बुद्ध के द्वारा दिए गए सन्देश और उपदेश लिखे हुए हैं।
क्या खास है इस मठ में:-
स्थानीय भाषा में थिकसे का अर्थ है पीला। यह गोम्फा पीले रंग का होने के कारण 'थिकसे गोम्पा' कहलाता है।12 हज़ार फीट पर पहाड़ी के ऊपर बनी हुई यह गोम्फा तिब्बती वास्तुकला का सुंदर उदाहरण है।थिक्सी गोम्पा को 15 वीं शती में शेर्ब जंगपो के भतीजे पल्दन शेराब ने बनवाया था।12 मंजिलों वाले इस मठ में कई भवन, मंदिर और भगवान बुद्ध की मूर्तियाँ है। यहाँ लगभग 250 लामा रहते हैं।प्रमुख मन्दिर में बुद्ध की 15 मीटर ऊँची काँसे की मूर्ति को हर मंजिल से देखा जा सकता है।मठ की दीवारों पर बनी कलाकारी अद्भुत है और बुद्ध भगवान के मुकुट की चित्रकला अनूठी है।यह मठ लगभग 10 छोटे बौद्ध मठों की देखभाल करता है।17वीं और 18वीं शताब्दी के 12वें तिब्बती गुरु की स्मृति में कार्यक्रम इसी मठ में आयोजित होते हैं।थिक्सी मठ के कक्ष मूर्तियों, स्तूपों, थांगका, पुरानी तलवारों तथा तांत्रिक कलाकृतियों से दीवारें भरी हुई हैं।इस संरचना में 10 मंदिर और एक असेंबली हॉल है। इसका बाहरी हिस्सा लाल, गेरुआ और सफेद रंग से रंगा है। यह एक लैंडमार्क बन गया है जो मीलो दूर से दिखाई देता है। सिंधु घाटी के बाढ़ के मैदानों का दृश्य देखने के लिए फोटोग्राफर्स के लिए एक सुविधाजनक जगह बन गई है।
मठ में बौद्ध भिक्षुओं की शिक्षा-दीक्षा :-
भारतीय हिमालय की चोटी पर लद्दाख में स्थित है 15वीं सदी का बौद्ध भगवान को समर्पित Thiksey Monastery (थिकसे मठ)।यहां पर बच्चे बाल बौद्ध भिक्षुओं के रूप में शिक्षा-दीक्षा ग्रहण करने आते हैं। अगर आप सोच रहे हैं कि बौद्ध भिक्षु के रूप में ये बच्चे अन्य आम बच्चों से अलग व्यवहार करते होंगे, तो शायद आप गलत हैं।हां, ये बात अलग है कि बौद्ध धर्म के हिसाब से इनका परिधान लाल रंग होता है और शिक्षा-दीक्षा भी। मगर ऐसा नहीं है कि ये बच्चे खेलते-कूदते और मस्ती नहीं करते हैं।
थिकसे गस्टर के प्रमुख आकर्षण:-
थिकसे गस्टर दो दिनों के लिए मनाया जाने वाला एक त्यौहार है जो कि टोर्मा नामक केक के वितरण से संपन्न होता है। यह त्योहार एक महत्वपूर्ण मठवासी उत्सव है जो सभी बुराइयों को नष्ट करने और इसमें भाग लेने वाले लोगों के दिल और दिमाग को शांति प्रदान करने के लिए किया जाता है।
यह त्योहार सुबह की प्रार्थना और अनुष्ठानों के साथ शुरू होता है, जिसके तहत दिव्य देवताओं को एक तरल चढ़ाया जाता है। यह माना जाता है कि यह इस चढ़ावे के कारण देवता मुखौटा नृत्य देखने के लिए पृथ्वी पर आते हैं।
और नृत्य के पूरा होने के बाद, बलिदान केक का वितरण भी किया जाता है जिसे टॉर्मा के रूप में जाना जाता है। इस वितरण समारोह को स्थानीय भाषा में 'अरघम' भी कहा जाता है। यह जानना दिलचस्प है कि इस त्यौहार के दौरान तिब्बत के गद्दार राजा, लैंग दारमा, की हत्या का पुनर अभिनय भी होता है जो नौवीं शताब्दी के दौरान एक बौद्ध भिक्षु द्वारा किया गया था।
इस त्यौहार के दूसरे दिन, एक बलिदान आकृति जिसे आटे से बनाया जाता है उसे एक समारोह में नष्ट कर दिया जाता है जिसे दाओ-तुलवा कहा जाता है। समारोह के बाद जो टुकड़े रह जाते हैं, उन्हें चार दिशाओं में फैलाया जाता है, जो विशेष रूप से पूरी भूमि से दुश्मनों के विनाश का प्रतीक है।
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