मंदार पर्वत
बिहार राज्य के बांका जिला के बौंसी में यह मंदार पर्वत स्थित है यह वह स्थान है जहाँ समुद्र मंथन हुआ था, यह वही पर्वत है, जिसकी मथानी बनाकर कभी देव और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था। सदियों से खड़ा मंदार पर्वत आज भी लोगों की आस्था का पर्वत है।ये काले ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित 700 फीट ऊंचा मंदार पर्वत है।मंदार हिल तीर्थयात्रा का एक अद्भुत स्थान है।हिन्दू मान्यताओं के अनुसार समुंद्र मंथन में भगवान विष्णु सदैव मंदार पर्वत पर निवास करते हैं। और देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए मंदरा पर्वत का उपयोग करके दूध के सागर का मंथन किया था। जिसमें हलाहल विष के साथ 14 रत्न निकले थे।
कालिदास ने अपने महाकाव्य कुमारसंभव में मंदरा पर्वत पर विष्णु के पैरों के निशान का उल्लेख किया है। पहाड़ी में हिंदू देवताओं की कई मूर्तियां हैं जो इसकी चट्टानों में कटी हुई हैं। भगवान शिव, कामधेनु और वराह की कई दुर्लभ मूर्तियां, जो 11-12वीं शताब्दी ईस्वी की मानी जाती हैं, मंदार पर्वत के आसपास बिखरी हुई हैं,जो यह खमेर और थाई दोनों कला का एक लोकप्रिय आदर्श है।
समुन्द्र मंथन के साक्ष्य
मुद्र मंथन में कहा जाता है कि सर्प राजा वासुकी ने खुद को दूध के सागर को मथने के लिए रस्सी के रूप में इस्तेमाल करने की पेशकश की थी। जिसका साक्ष्य पहाड़ पर अंकित लकीरों से होता है।प्रमाण के रूप में मंदार पहाड़ी पर अभी भी एक कुंडल के धुंधले निशान खड़े हैं। पर्वत पर एक समुद्र मंथन को दर्शाता हुआ स्मारक भी बनाया गया है।
मंदार पर्वत का पापहरणी तालाब
मंदार पर्वत की तलहट्टी में उपस्थित पापहरणि तालाब का लोकमान्यता यह है कि इस तालाब में स्नान करने से कुष्ठ रोग से मुक्ति मिलती है।प्रचलित कहानियों के मुताबिक कर्नाटक के एक कुष्ठपीड़ित चोलवंशीय राजा ने मकर संक्रांति के दिन इस तालाब में स्नान किया था, जिसके बाद से उनका स्वास्थ लाभ हुआ। तभी से इसे पापहरणी के रूप में जाना जाता है। पापहरणी तालाब को ‘मनोहर कुंड’ के नाम से भी जाना जाता है । लोग मकर संक्रांति के दिन अवश्य यहां स्नान करते हैं।
तालाब के बीच लक्ष्मी -विष्णु भगवान का मंदिर
पापहरणी तालाब के बीचों बीच लक्ष्मी -विष्णु मंदिर सहित है। हर मकर संक्रांति पर यहां मेले का आयोजन होता है। मेले के यात्रा भी होती है, जिसमें लाखों लोग शामिल होते हैं।
इतिहास प्रसिद्ध मंदार का मेला
मकर संक्रांति पे यहाँ मेले का आयोजन किया जाता है, जो पंद्रह दिन तक का होता है। हिंदुओं के लिए यह पर्वत भगवान विष्णु का पवित्र आश्रय स्थल है तो जैन धर्म को मानने वाले लोग प्रसिद्ध तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य से इसे जुड़ा मानते हैं। आदिवासियों के लिए मंदार पर्वत एक सिद्धि क्षेत्र है ।
मकर संक्रांतिके दिन पापहरणि तालाब में लोग मकर संक्रांति के दिन अवश्य यहां स्नान करते हैं। उसके बाद भगवान मधुसूदन की पूजा अर्चना करते हैं। दही-चूड़ा और तिल के लड्डू विशेष रूप से खाए जाते हैं। यह सबसे बड़ा संताली मेला है जहां प्रतिवर्ष रातभर के लिए एक लाख से अधिक लोग (सफा संप्रदाय के अनुयायी) आते हैं।आदिवासी और गैर-आदिवासी बड़े पैमाने पर मिलजुल कर मेले का आनंद लेते हैं।
शंखकुड नामक एक प्राकृतिक जलाशय है। इस कुंड में एक विशाल सफेद शंख है, जिसे कोई उठा नहीं सकता है।
यहाँ मेले में जगह-जगह जल रही आग का लुत्फ उठाते हैं।मकर संक्रांति के दिन यहां से आकर्षक शोभायात्रा निकलती है।
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