पैराग्लाइडिंग एक सपने की तरह है, एक सपना जिसमें आप हवा में पंछी की तरह उड़ रहें हो! कुछ साल पहले, ये सपना मैंने और मेरे अज़ीज़ दोस्त अर्चित ने साथ में देखा था। मज़े की बात यह है की इंडिया में यह सपना बहुत ही आसानी से पूरा हो सकता है। बीर-बिलिंग, दुनिया की दूसरी सबसे अच्छी पैराग्लाइडिंग साइट है। हिमाचल में बसी यह खूबसूरत जगह आपको दीवाना बना देगी। इस एडवेंचर पर मैं और अर्चित साथ में निकले, हमारे साथ उस ट्रिप पर क्या हुआ यह जानने के लिए आगे पढ़िए।
दिल्ली से बीर-बिलिंग का सफर
दिल्ली से बीर के लिए सीधी बस आसानी से मिल जाती है। ये बस करनाल-चंदीगढ़ रूट से होकर गुज़रती है। बताने की ज़रूरत तो नहीं पर बस आई.एस.बी.टी से चलती है। अगर आपने प्राइवेट वॉल्वो बुक करी है तो वो बसें बस अड्डे से थोड़ा दूर एक खाली फ्लाईओवर पर खड़ी होती है। आप रेडबस या किसी और ऐप से बस बुक करके उसकी लोकेशन फ़ोन पर पूछ सकते हैं। थोड़ा ध्यान रखिएगा, मैं करनाल की तरफ निकल गया था और काफी लेट हो गया। अर्चित बेचारा अकेल परेशान होकर मेरा इंतज़ार कर रहा था। 800 से 1300 रुपए के बीच में आपको AC बस मिल जाएगी।
अब बस में बैठे-बैठे रात कब गुज़र गयी, हमें पता भी नहीं चला। दिन की थकान थी, तो नींद भी आ गई। सुबह आँख खुली तो पहाड़ दिखे। देखते ही देखते हम 10 बजे के करीब बीर पहुँच गए। गो स्टॉपज़ होस्टल में हमारी बुकिंग के चलते अपना समान खींचते हुए हम वहाँ पैदल ही चल दिए। वहाँ की बालकनी से जब पैराग्लाइडिंग का पहला नज़ारा मिला, कसम से होश उड़ गए। नीला आसमान, बर्फीले पहाड़ और पंछियों की तरह उड़ते पैराग्लाइडर्स।
पहला दिन: बीर-बिलिंग की सैर
थोड़ा आराम और नहा धोकर हम निकल गए लन्च के लिए। थोड़ा अविश्वसनीय है पर मैं अपनी ज़िन्दगी का सबसे अच्छा साउथ इन्डियन खाना बीर में खाया, अम्मास नाम के एक रेस्तरां में। ये रेस्तरां एक फैमिली चलाती है और बहुत उम्दा खाना मिलता है।
एक बढ़िया लंच के बाद हम टहलने के लिए निकले। बीर बिलिंग में 3 - 4 बौद्ध मठ हैं और उसमें सबसे खूबसूरत था पेलपांग शेरबलिंग और चॉकलिंग। सफेद, लाल और सुनहरे रंगों में रंगी इन मोनेस्टरी में शांती और अध्यात्म का एक अलग ही एहसास होता है। पहाड़ों के बीच, हरियाली और शांती से भरपूर जगह में कुछ पल गुज़ारने को मिल जाए, बस और क्या चाहिए?
सिर्फ खूबसूरत मठ के अलावा यहाँ खाने-पीने के लिए काफी कैफे हैं जहाँ आपको हर तरीके का खाना मिल जाएगा। हाँ, मोमोज़ खाना मत भूलिएगा।
दूसरा दिन: सपनों की उड़ान
अगले दिन सुबह 9 बजे ही हमें गाड़ी लेने आ गई जो उस पहाड़ पर लेकर जाएगी जहाँ पैराग्लाइडिंग शुरू होती है। 2500 रुपए में आधा घंटा पैराग्लिडिंग और पूरी वीडियो आपको मिल जाएगा। बिना वीडियो के 500 रुपए कम लगेंगे। ऊपर पहुँच कर दूसरे लोगों को देखकर शायद डर लगे पर अपने पाइलट की इंस्ट्रक्शंस पर ध्यान देना। सिर्फ एक ही चीज़ दिमाग में रखनी है कि पाइलट और आपको साथ में खाई की तरफ भागना है और बैठना तो बिलकुल नहीं जब तक हवा में ना हो। सुनने में शायद अटपटा लगे पर आसान है, बस ध्यान होना चाहिए।
अब हम इक्विपमेंट पहन चुके थे और हमारे पाइलट ने सब चेककिंग भी कर ली थी। धड़कने तेज़ हो चुकी थी और अब वक्त था उस सपने को अंजाम तक पहुँचाने का। मुझे नहीं पता कि अर्चित के साथ क्या हो रहा है, अब मेरा ध्यान सिर्फ मेरी उड़ान पर है। जैसे ही पाइलट ने बोला 'गो' मैं खाई की तरफ भागने लगा। कुछ पाँच से छह क्षणों में मैं हवा में था। पाइलट ने सेल्फी स्टिक एडजस्ट करी और उस मस्त सर्दियों कि धूप में मैं हवा में लहरा रहा था। कुछ बातें पाइलट के साथ भी की और कुछ क्षण सोच में बिता दिए। उतरने से पहले पाइलट थोड़े मज़े भी करवाते हैं, अच्छे से ऊपर नीचे हिला कर। थोड़ा बचकाना था पर मज़ा आया। फिर देखते ही देखते हम लैंडिंग साइट के बहुत करीब पहुँच गए और उतरने का समय आ गया।
पाँच मिनट बाद, अर्चित भी आ गया और हमने पैसे देकर अपनी यादगार वीडियो ट्रांसफर करवा ली। वहीँ से हम पैदल निकल पड़े गो स्टोपज़ से ज़ॉस्टल शिफ्ट होने के लिए। ज़ॉस्टल काफी बढ़िया बना हुआ है पर नज़ारे के मामले में गो स्टोपज़ का कोई मुक़ाबला नहीं। अब हमारे पास 24 घंटे थे दिल्ली की बस पकड़ने से पहले। हमने फिर एक भारी भरकम लंच किया और थोड़ी तस्वीरें खिचवाई। शाम को हमने सोचा कि आज रात को एक-आधा जाम हो जाए। उसी का अरेंजमेंट करके हम लौटे ज़ॉस्टल। जाम बनते गए और रात कट गयी। कुछ नई शख्सियतों से मुलाक़ात हुई, ना दोबारा मिलने का वादा किया और ना ही दूसरी मुलाक़ात की बात हुई। यही चीज़ मुझे काफी पसंद है। आप होस्टल्स में रहो, कहानियाँ सुनाओ, कहानियों सुनो और फिर अपने अपने रास्ते निकल पड़ो। कोई बंदिश नहीं होनी चाहिए।
तीसरा दिन: बीर को अलविदा
आखरी सुबह अब आ चुकी थी। अर्चित और मैं दोनों इतने खूबसूरत नज़ारों के बीच बेहद खुश थे पर मन में वापसी की उदासी भी थी। नाश्ता हमने खुले आसमान के नीचे एक शांत कैफे में किया। सिल्वर लाइनिंग्स नाम का यह कैफे काफी आकर्षक तरीके से बना हुआ है, ज़रूर जाइएगा। फिर हम लैंडिंग साइट पर जाकर घास पर लेट गए और आसमान में उड़ रहे सैंकड़ों ग्लाइडर्स को नीचे आते देखा। नीले आसामान में तैरते ग्लाइडर्स ने मानों रंग भर दिए हों।
वापिस जाने का ना मन था ना ही इच्छा, पर दिल्ली बुला रही थी। देखते ही देखते बस का टाइम हो गया और हम निकल पड़े बस अड्डे की तरफ। जगह को अलविदा तो नहीं कहा, पर दोबारा मिलने का वादा ज़रूर देकर आया हूँ।
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