हिमालय जिसके चप्पे चप्पे में छुपी है कई सारी कथाएँ। जहाँ दफ़न हैं कई सारे राज। जिसका कण कण है पवित्र। जिसके बारे में सोचने मात्र से मिलता है दिल को सुकून। बस इतना ही नहीं इस हिमालय के चप्पे चप्पे में छुपी है मौत भी जी हाँ मौत।
आज आपको बताने जा रहा हूँ भारत के साथ साथ दुनियाँ के killer mountain के बारे में जहाँ छुपे हैं कई राज और डेड बॉडी।
ये पर्वत देखने में जितना सुन्दर और पवित्र है उस से कई ज्यादा है खतरनाक। इसका नाम है नंदा देवी। इसके नाम से ही दैविक अहसास होता है। इसकी ऊँचाई है 7816 मीटर और ये भारत का दूसरा और दुनियाँ का 23 वाँ सबसे ऊँचा शिखर है।भारत की सबसे ऊँची चोटी है कंचनजंघा 8586 मीटर की। कंचनजंगा भारत और नेपाल दोनों देशों के बीच है अगर पूरी तरह से भारत में पड़ने वाली चोटी की बात करें तो नंदा देवी सबसे ऊँची है।
नंदा देवी शिखर बेहद खूबसूरत है और उत्तराखंड के अलग अलग जगहों से देखने पर इसका अलग अलग रूप देखने को मिलता है। अगर आप गढ़वाल साइड से इसको देखेंगे तो एक अलग नंदा देवी आपको दिखाई देगा और कुमाऊं साइड से इसका एक अलग रूप दिखाई देगा।
अगर आप जोशीमठ या औली से इसको देखते हैं तो आपको ये चोटी बिल्कुल सबसे अलग ही दिखाई देगी सबसे अलग सबसे ऊँची जबकी अगर आप कौसानी और या चौकोड़ी से इस चोटी को देखेंगे तो यहाँ से पूरा नंदा देवी ईस्ट और वेस्ट दिखाई देता है साथ में दिखता है इनके बीच का रिज भी।
औली से नंदा देवी की सिर्फ वेस्ट चोटी ही दिखाई देती है। नंदा देवी ईस्ट को सुनंदा देवी भी बोलते हैं। इन दोनों के बीच का रिज 2 km लम्बा है। नंदा और सुनंदा को बहन माना जाता है। माँ नंदा देवी को पार्वती माता समझा जाता है।
उत्तराखंड को पार्वती देवी का मायके और कैलाश पर्वत को ससुराल कहा जाता है। हर 12 वर्ष में माँ पार्वती अपने मायके यानि उत्तराखंड आती हैं और उनके मायके से ससुराल जाने को ही नंदा जात या राज जात यात्रा कहा जाता है। हर 12 साल में इस यात्रा का भव्य आयोजन होता है।
नुक्लियर राज
2021 में उत्तराखंड के तपोवन में NTPC का पूरा प्रोजेक्ट नंदा देवी में ग्लेशियर फटने के कारण तबाह हो गया । रैनी गाँव वाले लोग इसके पीछे साल 1965 में नंदा देवी पर्वत पर खोये नुक्लियर डिवाइस को मानते हैं।
क्या था ये डिवाइस और क्यों इसको नंदा देवी के शिखर पर ले जाया जा रहा था। बात है साल 1964 की ये समय था शीत युद्ध का चाइना लगातार अपनी शक्तियां बड़ा रहा था। बार बार नुक्लियर टेस्ट कर रहा था जिससे अमेरिका बहुत परेशान था। अमेरिका को चाइना की लगातार बढ़ती शक्तियों से डर लगने लगा था।
चीन जिस ऊंचाई वाले क्षेत्र पर अपने न्यूक्लियर टेस्ट को अंजाम दे रहा था, वहां पर सैटेलाइट के जरिए जासूसी करना मुमकिन नहीं था। ऐसे में अमेरिका ने , चीन की जासूसी करने के लिए भारत का रुख किया।
1962 भारत-चीन युद्ध और देश की सुरक्षा व्यवस्था को देखते हुए भारत, अमेरिका के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। इसके बाद जासूसी के लिए भारत की दूसरी सबसे ऊंची चोटी नंदा देवी पर्वत को चुना गया । मिशन को अंजाम देने के लिए ये स्ट्रैटिजिक रूप से काफी महत्वपूर्ण लोकेशन थी।
इस मिशन की पूरी रूपरेखा तैयार की गई। एक खास तरह के न्यूक्लियर डिवाइस को बनाकर यह तय किया गया कि इसे भारत की दूसरी सबसे ऊंची चोटी नंदा देवी पर्वत पर ले जाया जाएगा। हालांकि, 56 किलोग्राम के इस डिवाइस को चोटी पर ले जाना काफी चुनौतीपूर्ण काम था।
ऐसे में इस डिवाइस को नंदा देवी पर्वत पर ले जाने की कमान मनमोहन सिंह कोहली को सौंपी गयी । एम.एस कोहली उस दौरान भारत के मशहूर क्लाइंबर्स में से एक थे। मिशन को अंजाम देने के लिए अमेरिका की सीआईए और भारत की इंटेलिजेंस ब्यूरो ने साथ आकर एक स्पेशल टीम को तैयार किया । इस टीम में दोनों देशों के सर्वश्रेष्ठ क्लाइंबर्स, इंटेलिजेंस ऑफिसर, न्यूक्लियर एक्सपर्ट और रेडियो इंजीनियर शामिल थे।
साल 1965 में कैप्टन एम.एस कोहली के नेतृत्व में इस टीम ने 56 किलो के इस न्यूक्लियर डिवाइस को लेकर नंदा देवी पर्वत की चढ़ाई शुरू करी । इस डिवाइस में लगभग 10 फीट का एक एंटीना, ट्रांसीवर और एक स्नैप जनरेटर था। इसके अलावा इसमें सात प्लूटोनियम कैप्सूल भी थे।
नंदा देवी पर्वत की चढ़ाई करना काफी मुश्किल काम था। पर्वतारोहण के दौरान जब टीम शिखर के नजदीक पहुंची ही थी कि तभी अचानक एक बड़ा बर्फीला तूफान आ गया। मामले की गंभीरता और टीम के लोगों की जान के खतरे को देखते हुए, एम.एस कोहली उस न्यूक्लियर डिवाइस को वहीं छोड़कर वापस नीचे उतरने का फैसला किया ।
स्थिति सामान्य होने के बाद साल 1966 में टीम दोबारा उस न्यूक्लियर डिवाइस को लेने के लिए पर्वत पर गयी । चौंकाने वाली घटना ये हुई कि जिस जगह पर न्यूक्लियर डिवाइस को रखा गया था, वह वहां पर नहीं मिला। इसके बाद डिवाइस को ढूंढने के लिए कई खोजबीन अभियान चलाए गए। पानी के सैंपलों को लेकर उसमें रेडियो एक्टिविटी की जांच भी की गई। इसके बाद भी न्यूक्लियर डिवाइस के बारे में कुछ खास जानकारी नहीं मिली। आज भी ये न्यूक्लियर डिवाइस हिमालय के पर्वतों पर कहीं गुम है।
इस मिशन में जिस प्लूटोनियम पीयू 238 का इस्तेमाल किया गया था। उसकी आधी लाइफ अर्थात प्लूटोनियम पीयू 238 रेडियो आइसोटोप्स के आधे भाग को डिके होने में 88 साल लगेंगे, यानी गुम हो चुके इस प्लूटोनियम की आधी लाइफ स्पैन को डिके होने में अभी भी कई साल बचे हैं।
अगर निकट भविष्य में ये प्लूटोनियम, ऋषि गंगा या दूसरी नदियों के संपर्क में आकर उसको दूषित करता है। ऐसे में एक बड़ा संकट देश के समक्ष खड़ा हो सकता है, क्योंकि यही नदियां देश की प्यास बुझाती हैं, अगर ये रेडियोएक्टिव हो गईं, तो परिणाम आप सोच सकते हैं।
इस घटना पर लोकप्रिय फिल्म होम एलोन के डायरेक्टर स्कॉट रोसेनफेल्ट एक फिल्म बनाने की योजना बना रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस फिल्म में रणबीर कपूर कैप्टन कोहली के रूप में नजर आ सकते हैं।
इस प्लूटोनियम की गर्मी की वजह से इस पर्वत पर समय समय पर एवलांच आते रहते हैं जिस वजह से बहुत सारे पर्वतारोहियों ने यहाँ अपनी जान गवाई है। इस वजह से ही नंदा देवी को THE KILLER MOUNTAIN बोला जाता है।