भारत एक धार्मिक देश है जहां लोगो की भगवान के प्रति अटूट आस्था और विश्वास है।यही कारण है कि लोग मंदिरों में पूजा अर्चना करते है और भगवान की सेवा करते है।इन मंदिरों में भगवान को भोग लगाया गया भोजन जिसे यहां के लोग प्रसाद के रूप में ग्रहण करते है उसका विशेष महत्व है।ऐसी मान्यता है की जो भोजन हम भगवान को अर्पण करते है वो बहुत दिव्य होता है।इसे ग्रहण करने से भगवान की कृपा प्राप्त होती है।ये लोगो की आस्था ही है जो लोगो को प्रसाद ग्रहण करके एक सुकून और शांति का अहसास कराती है।भारत में ऐसे कई मंदिर है जहां अलग अलग तरह के भोग प्रसाद भगवान को चढ़ाए जाते है।ये भोग प्रसाद जितने दिव्य होते है उतने ही अधिक स्वादिष्ट भी।भारत में ऐसे कई मंदिर है जो इन भोग प्रसाद से कई सारे लोगो का पेट भरते हैं।जहां भंडारे और लंगर के रूप में इन भोग प्रसाद का वितरण किया जाता है।आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से भारत के कुछ ऐसे मंदिरों के बारे में बताएंगे जो अपने स्वादिष्ट भोग प्रसाद के लिए जाना जाता है।
जगन्नाथ मंदिर पुरी,का महाप्रसाद
उड़ीसा स्थित जगन्नाथ मंदिर को हिंदुओ के चार धामों में से एक माना जाता है। यहां पर स्थित भगवान जगन्नाथ को महाप्रसाद चढ़ाया जाता है जिसे 56 भोग कहते है।यह महाप्रसाद 56 प्रकार के खाद्य पदार्थ को एकत्र करते मिट्टी के बर्तन में लकड़ी पर तैयार किए जाते है।इस महाप्रसाद को तैयार करने के लिए एक हजार रसोइए प्रतिदिन कड़ी मेहनत करते है।कहते है इस महाप्रसाद को ग्रहण करना बहुत की सौभाग्य की बात होती है।यह महाप्रसाद इतना दिव्य माना जाता है कि चाहे कितने भी लोग आ जाए ये प्रसाद कभी कम नहीं पड़ता।यह महाप्रसाद जितना दिव्य है खाने में उतना ही स्वादिष्ट।तो अगली बार जब भी आप जगन्नाथ पुरी जाए तो यहां का महाप्रसाद खाना बिल्कुल भी मिस न करे।
शिरडी साईं बाबा मंदिर प्रसादालय
शिरडी के साईं बाबा मंदिर में प्रतिदिन लाखो लोग दर्शन के लिए जाते है।मंदिर ट्रस्ट के द्वारा संचालित लंगर में हजारों की संख्या में लोगो को प्रसाद का वितरण किया जाता है।यहां पर स्थित रसोई एशिया की सबसे बड़ी सौर ऊर्जा से संचालित होने वाली रसोई है।जहां प्रतिदिन स्वादिष्ट प्रसाद तैयार किया जाता है।यहां पर चावल,दाल और सब्जियां प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता हैं।
स्वर्ण मंदिर,अमृतसर का लंगर
अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के लंगर के विषय में कौन नही जानता। यहां के लंगर में प्रतिदिन इतना कड़ा प्रसाद,चावल, दाल,रोटी और सब्जी बनाई जाती है की आप चाहे तो साल भर में भी न खा पाए।पूरे सेवा भाव के साथ इनके रसोई में पकाया गया लंगर पेट के साथ ही साथ आपकी आत्मा को भी सुकून और संतुष्टि प्रदान करता है।लगभग दुनिया के प्रत्येक गुरुद्वारे में लंगर का आयोजन किया जाता।इस परंपरा को सिखों के प्रथम गुरु ने शुरू किया था।
मुरुगन मंदिर, कोयंबटूर का पंचामृतम
कोयंबटूर के दक्षिण-पूर्व में, लगभग 150 किमी दूर पलानी में अरुल्मिगु दंडयुधपानी स्वामी मंदिर स्थित है जिसे मुरुगन मंदिर के नाम से जाना जाता है।यह भारत का एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसके प्रसाद को भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग दिया गया है। यहां पर मिलने वाला प्रसाद को पंचामृतम कहा जाता है जो केले, गाय के घी, गुड़, शहद और इलायची के मिश्रण से तैयार की जाती है।कहते हैं इसको ग्रहण करना अमृत को ग्रहण करने के समान है।
तिरुमाला तिरुपति मंदिर प्रसाद
त्रिमाला मंदिर को भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है।यह मंदिर भारत के सबसे धनी मंदिरों में से एक है । यह मंदिर अपने प्रसाद के रूप में मिलने वाले लड्डुओं के लिए जाना जाता है।इस मंदिर के रसोई में प्रतिदिन लाखों लोगों के लिए तरह तरह के दक्षिण भारतीय भोजन बनाया जाता है।मंदिर का रसोई सौर ऊर्जा द्वारा संचालित है जहां लगभग 1100 रसोइए प्रतिदिन भोजन तैयार करते है और उसे प्रसाद के रूप में वितरित करते है।
काली मंदिर दक्षिणेश्वर,प्रसाद
कोलकाता में स्थित दक्षिणेश्वर मंदिर मां काली को समर्पित एक शक्तिपीठ है, जहां प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु आते हैं।यहां पर माता को भोग के रूप में चावल , दाल और विभिन्न प्रकार की सब्जियों को साथ मिलाकर तैयार खिचड़ी चढ़ाया जाता है।यही खिचड़ी श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में भी दिया जाता है।यह प्रसाद खाने में इतना स्वादिष्ट होता है कि आप चाह कर भी इसे अपने घर पर ऐसा स्वाद वाला नही बना सकते।
कोविल मंदिर, तमिलनाडू
दक्षिण भारत का सबसे लोकप्रिय व्यंजन इडली डोसा और सांभर है जिसे वहां के लोग बड़े की चाव से खाते है।पर कैसा लगेगा जब आपको यह प्रसाद के रूप में दिया जाएगा।जी हां अपने बिल्कुल सही सुना तमिलनाडु के सबसे पुराने मंदिरों में से एक कोविल मंदिर में भगवान विष्णु को भोग के रूप में डोसा सांभर,और लेमन राइस चढ़ाया जाता है और फिर इस भोग को प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं को वितरित किया जाता है।आपको भी एक बार इस प्रसाद को अवश्य ग्रहण करना चाहिए।
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