नए अनुभव लेने लोग जंगलों में घुस जाते हैं...
नैशनल पार्क में घुस जाते हैं। ..
घाटियों में घुस जाते हैं। ...
समुंदरों में घुस जाते हैं...
लेकिन क्या आपने लोगों को घूमने-फिरने की खातिर झोपड़-पट्टियों में घुसते देखा है?
ज़रूर देखा होगा। गली बॉय फिल्म में रणवीर सिंह उर्फ़ मुराद को अँगरेज़ के सामने नाज़ का रैप गाते ज़रूर देखा होगा।
ये अँगरेज़ स्लम में ही घूमने आया था।
हर साल लाखों विदेशी सैलानी भारत घूमने आते हैं, जो ताजमहल, लाल किले और गेटवे ऑफ़ इण्डिया के अलावा यहाँ की झोपड़-पट्टियों में भी घूमते हैं।
ये लोग इस तरह के घूमने को स्लम टूरिज़्म कहते हैं। स्लम टूरिज़्म का क्या मतलब है, लोग क्यूँ यहाँ घूमने जाते हैं, इससे इन गरीब इलाकों पर क्या फर्क पड़ता है .....ये सब जानने के लिए मैं भी अभी हाल ही में दिल्ली की झोपड़-पट्टी संजय कॉलोनी में घूम आया।
संजय कॉलोनी घूमते हुए मुझे कई बातों का पता चला जैसे .....
'स्लम टूरिज़्म' असल में है क्या ?
लोग अक्सर शहर की ऊँची इमारतों, और बड़े-बड़े मकानों की चमक के पीछे छुपी बस्तियों को अनदेखा कर देते हैं। हर शहर में कुछ ऐसी बस्तियाँ होती हैं, जहाँ पूरे शहर का मैला साफ़ करने वाले लोग रहते हैं। यहाँ की खुली नालियों में मच्छर और सीले तंग झोपड़ों में बच्चे पनपते हैं।
ऐसी जगह का टूर करने भला कौन जाना चाहेगा ?
मगर बताइये ट्रिपएडवाईज़र 'टॉप 10 ट्रैवलर्स चॉइस एक्सपिरियंसेस 2019 : वर्ल्ड-एशिया में पहले नंबर पर कौनसा अनुभव रहा होगा ?
दुनिया की सबसे बड़ी झोपड़-पट्टी धारावी में घूमने का।
जी हाँ। धारावी में घूमने के अनुभव को ताजमहल देखने के अनुभव से भी ऊपर रखा गया है।
झोपड़-पट्टियों की पतली-पतली गलियाँ , बदबू और संघर्ष से पके चेहरों की तस्वीरें लेने के लिए सैलानी सिर्फ मुंबई की ही नहीं, बल्कि दिल्ली , रियो डी जेनेरियो , मनिला, जोहानेसबर्ग की झोपड़-पट्टियों में घूमने जाते हैं।
स्लम टूर को रिएलिटी टूर और पॉवर्टी टूर भी कहते हैं, क्यूंकि ये शहरों और देशों की सच्चाई और गरीबी दिखाता है।
मैं जब दिल्ली आया था तो लाजपत नगर, सरोजिनी मार्किट, कनॉट प्लेस की चौड़ी-साफ़ सडकों को ही दिल्ली मान बैठा था।
मगर जब संजय कॉलोनी गया तो पता चला कि दिल्ली के दो रूप हैं। एक वो जिन्हें साफ़ पानी, खुली हवा और सरकारी सुविधाएं मुहैया होती हैं। दूसरा वो जिन्हें इनमें से कुछ नहीं मिलता।
क्यों जाते हैं लोग झोपड़-पट्टियाँ घूमने ?
कई लोग यहाँ जाते हैं, ताकि बाकी दुनिया जो यहाँ नहीं जाती उन्हें इसकी सच्चाई मालूम पड़ सके।
कई लोग यहाँ चैरिटी करने के मिजाज़ से भी जाते हैं।
स्लम टूरिज़्म से झोपड़ पट्टियों के विकास के लिए पैसा जुटाया जाता है।
कई ऐसे युवा, जो समाज सेवा को ही अपना करियर बनाना चाहते हैं, जो लोगों की समस्याओं से रूबरू होना चाहते हैं, वो भी स्लम टूर के लिए निकल जाते हैं।
स्लम टूर से झोपड़ पट्टियों पर क्या फर्क पड़ता है
ये इलाका यहाँ का ही कोई इंसान ठीक से घुमा सकता है। इसलिए टूर कम्पनियाँ यहाँ के लोगों को गाइड का काम देती हैं।
ऐसे इलाकों की तस्वीरें सोशल मीडिया और इंटरनेट पर जाती है, तो वो लोग भी यहाँ की हालत जान पाते हैं जो यहाँ नहीं आना चाहते, या यहाँ आने से घबराते हैं।
यहाँ के हालात जब लोगों के सामने आते हैं तो यहाँ के विकास के लिए बनायी जाने वाली पॉलिसियाँ भी प्रभावित होती हैं।
स्लम टूर की मस्ती
आज स्लम टूर के नाम पर सिर्फ उदास चेहरे नहीं बेचे जाते, बल्कि यहाँ खाना पकाने और खाने का अनुभव, यहाँ की अतरंगी कला और घरों की बनावटें भी दिखाई जाती है।
झोपड़-पट्टियों में त्यौहार साथ मिलकर काफी धूम धाम से मनाये जाते हैं, इसलिए यहाँ त्यौहार के दौरान भी जा सकते हैं।
कई टूर कम्पनियाँ बेहद काम दामों में स्लम टूर करवाती हैं। एक बार गूगल सर्च करने पर काफी नाम सामने आ जायेंगे। रिव्यू पढ़ने के बाद आप जिसे चाहें चुन सकते हैं।
मुंबई जाएँ तो एक बार धारावी टूर ज़रूर करके आएं। यहाँ घूमने के अनुभव को ही ताज महल से ऊँचा दर्जा मिला हुआ है।
क्या आपने कभी कोई झोपड़-पट्टी की सैर की है? कैसा लगा वहाँ जाकर ?
अगर नहीं की तो क्या आप वहां जाना चाहेंगे ? आपके शहर का नाम कमेंट्स में लिख दो। मैं आपको वहाँ के स्लम टूर के बारे में बता दूंगा।
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