भारत भूमि को लोग यहाँ की दंतकथाओं, प्राचीन रीतिरीवाज और शानदार विरासत की वजह से जानते हैं | बहुत सदियों तक भारत भूमि ने कई शासनों का उदय और पतन देखा | ये शासन तो अब मौजूद नहीं हैं मगर ये कई ऐसे बेहतरीन स्मारक छोड़ गए हैं जिन्हें देख कर हमें बीते समय की भव्यता का एहसास होता है | हम में से बहुत से लोग उत्तर में राजस्थान और बुंदेलखंड के किले, मंदिर और महलों के बारे में जानते हैं, तमिल नाडु के अनगिनत मंदिरों और हम्पी के प्राचीन खंडरों से भी वाकिफ़ हैं | हालाँकि भारत में सिर्फ़ यही नहीं है | भारत के कई ऐसे कोने हैं जहाँ सैलानी नहीं गए हैं मगर इन कोनों में भारत के सबसे भव्य और जटिल वास्तुकला के नमूने हैं |
भोरमदेव मंदिर
भोरमदेव मंदिर परिसर छत्तीसगढ़ राज्य में भगवान शिव को समर्पित चार हिंदू मंदिरों का एक समूह है। पुरातत्व विभाग की खोज के अनुसार ये जगह दूसरी शताब्दी जितनी पुरानी है जब यहाँ के शासकों ने यहाँ की नींव डाली थी | बाद में 10 से 14 शताब्दी में दक्षिण कौशल साम्राज्य के नागवंशी राजाओं ने इस मंदिर का विस्तार करवाया जो नाग की पूजा करते थे और तंत्र विद्या का अभ्यास करते थे |
भोरमदेव पत्थरों में बना परिसर का मुख्य मंदिर है। ये मंदिर सन 1100 में खजुराहो के मंदिरों से काफ़ी पहले बन चुका था, मगर इसे छत्तीसगढ़ का खजुराहो भी कहते हैं | अगर आप इस मंदिर की तस्वीर देखेंगे तो आपको लगेगा कि आप खजुराहो के मंदिरों में से किसी एक को देख रहे है | इस मंदिर में उकेरी हुई मनुष्यों की कामुक शिल्पकारी खजुराहो और उड़ीसा के कोणार्क सूर्य मंदिर से मिलती है | मंदिर पर महीन शिल्पकारी की गई है जिसमें मुख्य रूप से गरुड़ पर विराजे हुए विष्णु और लक्ष्मी और इनकी स्तुति करते राजा, स्तंभों के ऊपर सजे ऊए गण, शिवलिंग और फन फैलाए हुए शेषनाग, शिव गणेश की जोड़ी और राजा रानी की प्रतिमाएँ शामिल हैं |
इस्तलीक मंदिर
इस्तलीक मंदिर सोमवंशी द्वारा 2 और 3 शताब्दी के बीच बनाया गया पहला मंदिर था। मंदिर पकी हुई मिट्टी की ईंटों से बनाया गया है, और भोरमदेव मंदिर से लग कर बना हुआ है। सदियों से समय की मार से मंदिर जर्जर हालत में है मगर शिवलिंग, उमा महेश्वर और पूजन करते राजा रानी की मूर्तियाँ काफ़ी अच्छी हालत में मौजूद हैं |
मड़वा महल
सन 1349 में नागवंशी राजा रामचंद्र देव और राजकुमारी अंबिका देवी की शादी की याद में एक विवाह परिसर के रूप में मड़वा महल यानी दुल्हादेव बनवाया गया था | इस परिसर की बाहरी दीवारों पर कामासूत्र में दर्शाई गयी 54 मुद्राएँ बनी हुई हैं जो उस समय नागवंशी राजाओं में प्रचलित तांत्रिक संस्कृति को दर्शाता है |
चेरकी महल
परिसर के आख़िरी मंदिर में एक अधगढ़ा शिवलिंग स्थित है | मंदिर की छत पर कमल के आकार में महीन शिल्पकारी की हुई है और प्रवेश द्वार पर भी बारीक खुदाई की गयी है |
कैसे पहुँचे
भोरमदेव मंदिर परिसर छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले में कवर्धा शहर से 18 कि.मी. दूर, जंगलों से ढके मैकल पर्वतों की तलहटी में स्थित है।
परिसर से सबसे करीब हवाई अड्डा 134 कि.मी. दूर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में स्थित है | रायपुर भारत के मुख्य शहराओं से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है | रायपुर से कवर्धा के लिए टैक्सी 2.5 घंटे लेती है, बसें भी मिलती है |
छत्तीसगढ़ में रायपुर और मध्यप्रदेश में जबलपुर सबसे करीबी रेलवे स्टेशन हैं | कवर्धा रायपुर से 112 कि.मी. और जबलपुर से 220 कि.मी. दूर है |
कान्हा राष्ट्रीय उद्यान से लगकर रायपुर से मध्य प्रदेश हाईवे के लिए एक बाइपास सड़क भी जाती है |
यात्रा का कार्यक्रम कैसे बनाएँ
मध्यप्रदेश में कान्हा राष्ट्रीय उद्यान या नर्मदा नदी के उदगम स्थल अमरकंटक की ओर घूमने जाने के साथ ही भोरामदेव मंदिर परिसर भी घूमा जा सकता है | ये दोनों ही जगहें छत्तीसगढ- मध्यप्रदेश सीमा पर पड़ती है और कवर्धा से 1.5 कि.मी. दूर है |
यूँ तो आप शायद ही छत्तीसगढ़ घूमने जाएँगे मगर पहाड़ों और समुद्रतटों से अलग कुछ देखना या अनुभव करना चाहते हैं तो यहाँ ज़रूर जाएँ | इस चारों ओर से बंद ज़मीन पर बहुत कम बाहरी आक्रमण हुए हैं इसलिए यहाँ की सभ्यता अभी भी काफ़ी पवित्र है और जलवायु भी काफ़ी अलग है | और जैसे जैसे आप इस जगह की गहराइयों में जाएँगे, आपको कवर्धा इलाक़े में अजीबो ग़रीब रीति रिवाज़, वेशभूषा और आदिवासी लोगों की जीवन शैली देखने को मिलेगी |
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