जब मैं ये कहानी लिख रहा हूँ तो मेरी आँखों के सामने स्वदेस फ़िल्म के ढेर सारे दृश्य सामने आ रहे हैं। उम्मीद है आपने भी देखी हो ये फ़िल्म, किस तरह से शाहरुख़ ख़ान अपने एक छोटे से गाँव में बिजली पहुँचाते हैं।
अभी कुछ ही दिन पहले गुज़रा शाहरुख़ ख़ान का जन्मदिन और सामने आई ये सच्ची कहानी। हम बात कर रहे हैं दो ट्रैवलर्स राजीव और मेरविन की, जिनकी मदद से अरुणाचल के 45 गाँवों तक बिजली पहुँची। इन 45 गाँवों में 400 से भी अधिक परिवार आते हैं।
कहाँ से हुई सफर की शुरुआत!
कहते हैं ना, एक जैसा शौक़ दूर दराज के दो लोगों को भी मिला देता है। राजीव और मेरविन दोनों को ही ट्रैवलिंग से प्यार है। राजीव जहाँ इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे, वहीं मेरविन एक कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर थे।
एक दोस्त की मदद से 2005 में दोनों संपर्क में आए। फिर शुरू हुई ट्रैवलिंग के क़िस्से। ढेर सारी जगहें घूम कर दोनों की दोस्ती और गाढ़ी हुई। घूमते-घूमते ही दोनों को एक दूसरे के बारे में शहरों से एक ख़ासी नापसन्दगी वाली बात पता चली।
साल 2010 में राजीव ने कॉलेज बीच में ही छोड़ दिया और अपना कपड़ों का व्यापार शुरू कर दिया। लेकिन ये काम भी कुछ ख़ास चला नहीं। वहीं मेरविन ने भी अपनी कॉरपोरेट ज़िन्दगी से तंग आकर जॉब छोड़ दी।
अब दोनों साथियों के पास बस एक ही चीज़ बची थी, जो उन्हें सबसे ज़्यादा पसन्द थी, ट्रैवलिंग।
और वो लम्हा जब मुकम्मल हुई ये यादगार ट्रिप
2010 में इस बार दोनों साथियों ने प्लान किया अरुणाचल का ट्रिप, जिसमें उन्होंने दो गाँवों को चुना, विजयनगर और गाँधीग्राम। इन दोनों जगहों की एक ख़ास बात है, यहाँ आप बिना पैदल चले नहीं पहुँच सकते, ना ही यहाँ इंटरनेट और ना ही बिजली की व्यवस्था। यहाँ पहुँचने के लिए ही आपको कुछ दिनों का पैदल सफ़र तय करना पड़ता है। सीधे शब्दों में इक्कीसवीं सदी में दूसरी सदी के मज़े।
अगले ही साल गाँधीग्राम के लोगों ने अतिथि के रूप में दोनों को बुलाया और इस बार चॉकलेट या बर्फ़ी ले जाने की बजाय दोनों ने बिजली ले जाने का प्लान बनाया। 'द बत्ती प्रोजेक्ट' अपने असली स्वरूप में आ रहा था।
'द बत्ती प्रोजेक्ट' क्या है??
एक ऐसा प्रोजेक्ट, जिसने भारत के सबसे दूर दराज वाले इलाक़ों में बिजली पहुँचाई है। इसके पहले इन गाँवों में बिजली सिर्फ़ काग़ज़ों पर ही पहुँची थी।
दोनों साथियों का यह प्रोजेक्ट बहुत मूलभूत चीज़ों पर काम करता है। जैसे कि सबसे पहले उन जगहों को तलाशना, जहाँ आज तक बिजली नहीं पहुँची हो। फिर ये टीम कॉरपोरेट्स और सामान्य जनता से चंदा इकट्ठा करते हैं।
एक बार जब चंदा इकट्ठा हो जाता है, तो पूरी टीम सीधे निर्माताओं से सोलर लाइट ख़रीद लेते हैं। बेहद प्रशस्त कामगारों की टीम ठीक जगहों पर सोलर लाइट्स लगाती है।
गाँव वालों को क्या फ़ायदा हुआ??
राजीव और मेरविन ने अपनी एक रोचक किट बनाई है जिसे वे 'बत्ती किट' कहते हैं जो पूरी तरह से ग्रामीण लोगों की सुविधा के लिए बनाई गई है। इस बत्ती किट में 3 वॉट की 3 एलईडी ट्यूब लाइट, 21 वॉट का पैनल और 3 एमएएच की बैट्री आती हैं, वो भी बाज़ार के दामों से दस गुना सस्ती।
इस प्रोजेक्ट की ख़ासियत यह है कि कोई भी गाँव वालों पर दबाव नहीं बनाता। अगर गाँव वालों की इच्छा होती है, तो ही दोनों साथियों की जोड़ी उनके गाँव के लिए प्लान बनाकर काम करती है।
राजीव और मेरविन की इस जोड़ी पर आपके क्या विचार हैं, हमें कमेंट बॉक्स में लिखें।
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