मेरा कश्मीरनामा: पहली नजर का प्यार कैसा होता है ये कश्मीर जाकर समझ आया

Tripoto
Photo of मेरा कश्मीरनामा: पहली नजर का प्यार कैसा होता है ये कश्मीर जाकर समझ आया by Deeksha

घुमक्कड़ी में कुछ चीजें ऐसी होती है जिनसे आपको बहुत लगाव होता है। आप उन पलों को बार-बार याद करते हैं और सोचते हैं कि काश! मैं वो समय वापस आ सकता। इस समय मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। मेरे मन में भी रह-रहकर बस उस एक ट्रिप के ख्याल तैर रहे हैं जब मैंने कश्मीर को देखा था। दोस्तों के साथ 2019 में की हुई कश्मीर यात्रा हमेशा के लिए यादगार हो गई है। कश्मीर अपने आप में इतना खूबसूरत है कि इसके सौंदर्य को शब्दों में बांध पाना नामुमकिन है। मेरे हिसाब से हर घुमक्कड़ को एक बार कश्मीर जरूर घूमने जाना चाहिए। ये जगह जितनी मोहक है उतनी ही शांत भी है। कश्मीरियों की मेहमाननवाजी से आपका हर पल खास हो जाता है। अगर किस्मत अच्छी रहे तो किसी लोकल के घर खाना खाने जाइएगा। असल कश्मीर कैसा है आपको तब पता चलेगा। कश्मीरियत को जानने और समझने के लिए आप साल के किसी भी समय जा सकते हैं। ठंड में ये जगह थोड़ी कठोर जरूर हो जाती है लेकिन उस समय कश्मीर घाटी में बेपनाह खूबसूरती घर किए रहती है। कश्मीर से ये मेरी पहली मुलाकात थी और इस वजह से ये ट्रिप मेरे लिए और भी खास हो गई थी।

लो सफर शुरू हो गया

कॉलेज में छुट्टियाँ होने वाली थीं और हर बार की तरह इस बार भी हम सभी दोस्त कहीं घूमने जाने का प्लान बना रहे थे। दोस्तों के साथ घूमने जाने में कुछ अलग ही मजा होता है। कुछ खट्टी-मीठी यादें बन जाती हैं। क्योंकि मेरे दोस्तों के झुंड में ज्यादा लोग नहीं थे इसलिए हमें थोड़ी परेशानी कम हुई। हम कुल 4 लोग ही थे। 2 लड़के और 2 लड़कियाँ। इसलिए ट्रिप की प्लानिंग भी हम सब ने मिलकर ही की। प्लान के मुताबिक हम सबने तय किया दिल्ली एयरपोर्ट से श्रीनगर के लिए फ्लाइट ले लेंगे। दिल्ली एयरपोर्ट को भारत के सबसे अच्छे और बड़े हवाई अड्डों में गिना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि यहाँ से आपको दुनिया के किसी भी कोने के लिए आसानी से फ्लाइट मिल जाती है।

हमारी फ्लाइट सुबह की थी। क्योंकि सबके फ्लाइट टिकट बुक करने की जिम्मेदारी मेरी थी इसलिए मैंने सुबह 5.30 बजे की फ्लाइट बुक कर दी। सुबह की फ्लाइट लेने में कई सारे फायदे होते हैं। सबसे पहला की आपको सस्ते टिकट मिल जाते हैं और दूसरा अगर आप भाग्यशाली रहे तो आपको फ्लाइट से सनराइज देखने का मौका भी मिल सकता है। सूर्योदय देखना हर घुमक्कड़ को पसंद होता है और जब मौका मिल रहा था तो उसका फायदा क्यों ना उठाया जाए। खैर हम सब फ्लाइट से 4 घंटे पहले ही एयरपोर्ट पहुँच गए। कॉलेज में रात में सोने की आदत वैसे ही छूट गई थी इसलिए हमे इसमें ज्यादा परेशानी भी नहीं हुई। हम एयरपोर्ट पहुँचे और फ्लाइट का इंतजार करने लगे। हमारे पास सामान ज्यादा था नहीं इसलिए चेक-इन वाला प्रोसेस थोड़ी जल्दी हो गया।

फ्लाइट में चढ़ने के बाद हम सभी की खुशी का ठिकाना नहीं था। वो जगह जिसको आजतक मैंने सिर्फ यूट्यूब वीडियो और फोटोज में देखा था अब आखिर मैं भी उसको अपनी आँखों से देखने वाली थी। मैंने जल्दी से विंडो सीट पकड़ी और फ्लाइट टेक ऑफ होने का इंतज़ार करने लगी। प्लेन ने रफ्तार पकड़ी और कुछ ही मिनटों में हम हवा से बातें कर रहे थे। क्योंकि मैंने खिड़की वाली सीट ली हुई थी इसलिए सनराइज देखने के लिए मेरा मन जोर से मचल रहा था। लेकिन कहते हैं ना जब आप किसी चीज को पूरे मन से चाहें तो पूरी कायनात आपको उससे मिलाने की कोशिश करती है। मेरे साथ थोड़ा उल्टा हुआ। बादलों की घनी चादर में सनराइज तो छोड़ो मुझे कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था। उस समय थोड़ी निराशा जरूर हुई लेकिन मुझे पता था कश्मीर में ऐसे बहुत सारे सनराइज मेरा इंतजर कर रहे हैं।

श्रीनगर

कुछ घंटों की फ्लाइट के बाद हम श्रीनगर पहुँच चुके थे। हमने सामान उठाया और जल्दी से एयरपोर्ट से बाहर निकल आए। मैं मन भर कश्मीर को देख लेना चाहती थी। पहली नजर में प्यार हो जाना किसे कहते हैं ये कश्मीर को देखकर समझ आया। खैर एयरपोर्ट से हमें होटल जाना था। सोशल मीडिया के जमाने में आप दुनिया के किसी भी इंसान से जुड़ सकते हैं। इस ट्रिप के लिए पूरी जानकारी जुटाने के चक्कर में हम लगभग कश्मीर के आधे लोगों से बात कर चुके थे। आमिर हमें एयरपोर्ट पर लेने आने वाला था। आमिर अपने बड़े भाई के साथ कश्मीर में रहते हैं। डल झील पर उनकी अपनी हाउस बोट भी है जहाँ हमें रुकना था। हमारी पूरी ट्रिप पर आमिर हमारे साथ ही रहने वाला था।

एयरपोर्ट से झील तक का रास्ता बेहद खूसूरत था। ऐसा लग रहा था मानो पूरा श्रीनगर हमारे स्वागत के लिए तैयार खड़ा है। साफ-सुथरी और बिना भीड़ वाली सड़कें, शांत नजारे, खुशनुमा मौसम। आमिर ने गाड़ी में कोई कश्मीरी गाना भी चला रखा था जिसकी वजह से पूरा माहौल और भी खूबसूरत हो गया था। हम हाउस बोट पहुँचे जहाँ आमिर के भाई उजैर ने हमारे स्वागत के लिए सारी तैयारी कर ली थी। हम किसी तरह की जल्दबाजी नहीं करना चाहते थे। कश्मीर को मन भर महसूस कर लेने की चाहत केवल मेरे ही नहीं बल्कि मेरे सभी दोस्तों के मन में भी थी। हाउस बोट में रहने का अनुभव किसी सुन्दर सपने को जीने जैसा था। पानी पर तैरता लकड़ी से बना एक शानदार घर जिसको बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई थी। उस छोटी-सी नाव में इतना सुकून था कि मानो हर एक कोने को प्यार से सींचा गया है। कहीं दूर से अजान की आवाज आ रही थी जो पूरी झील में गूंज रही थी। नक्काशीदार लकड़ी और कार्पेट से सजी बोट बेहद सुंदर लग रही थी। यकीन मानिए इस बोट हाउस के सामने आपको कोई पांच सितारा होटल भी कुछ नहीं लगेगा।

दिन के लिए हमारा कुछ खास प्लान नहीं था। हमने सोचा था दिनभर बोट पर बैठकर डल के नजारे देखेंगे और शाम को आसपास इलाकों में टहलने निकलेंगे। हम जबतक हाथ-मुंह धोकर बाहर आए आमिर ने हमारे लिए गर्म कहवा तैयार कर दिया था। हमने कहवा पिया और आमिर से बातें करने बैठ गए। उजैर हमें श्रीनगर में टूरिज्म के बारे में बता रहे थे। उन्होंने बताया कश्मीर के ज्यादातर लोगों की आमदनी टूरिज्म पर ही नर्भर है। ऐसे में जब टूरिस्ट सीजन नहीं होता है तो लोगों को बहुत बार परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है। दोपहर हो चुकी थी और अब भूख लगनी भी शुरू हो गई थी। आमिर का झील के पास एक रेस्त्रां भी हैं। इस रेस्त्रां को चलाने से लेकर खाना बनाने का सारा काम आमिर की दादी और अम्मी करती हैं। रेस्त्रां में हमने पारंपरिक कश्मीरी जायकों का स्वाद लिया। हाक से लेकर मटन तक सभी चीजें इतनी स्वादिष्ट थीं कि खाने वाले का पेट भर जाएगा लेकिन मन नहीं भरेगा। आमिर और उजैर को काम था इसलिए हम अकेले ही श्रीनगर की सड़कों को टटोलने निकल पड़े। हम लाल चौक पर थे। श्रीनगर की हवा ने मेरे ऊपर जादू करना शुरू कर दिया था। दोस्तों का साथ और बेहतरीन नजारे। हमने एक दुकान से फिरन खरीदे और डल की खूबसूरती को निहारने बैठ गए। डल झील से पहले ढलता सूरज मुझे शायद इतना खूबसूरत कभी नहीं लगा था। पहाड़ों को चूमकर आती हुई हवा के बीच देखा वो सनसेट मेरी जिंदगी के सबसे शानदार लम्हों में से है।

अगली सुबह की शुरुआत डल पर शिकारा की सवारी से हुई। क्योंकि हम चार चिनार से सनराइज देखना चाहते थे इसलिए हम जल्दी निकल पड़े। अजान की आवाज मां की लोरी जैसी लग रही थी और डल का शांत पानी किसी बच्चे की मासूमियत। अगर आपको चार चिनार के बारे में नहीं पता है तो बता दें ये झील में बना टापू है जिसके चारों कोनों पर चिनार के पेड़ हैं। जिसकी वजह से इस जगह को चार चिनार कहा जाता है। कहते हैं डल का सबसे खूबसूरत स्पॉट चार चिनार ही है। बढ़िया शिकारा राइड के बाद आज हमें युस्मर्ग के लिए निकलना था। अच्छी बात ये थी कि आमिर भी हमारे साथ आने वाला था।

श्रीनगर से युसमर्ग

अगली सुबह हम युसमर्ग के लिए निकल गए। हम गुलमर्ग भी जाना चाहते थे लेकिन क्योंकि हमारे पास समय कम था और हम सब ऑफबीट जगहों को देखना चाहते थे इसलिए हमने युसमर्ग जाना बेहतर समझा। श्रीनगर से युसमर्ग का रास्ता बेहद खूबसूरत था। सड़क के दोनों तरफ बर्फ थी। ऐसा लग रहा था कि किसी ने हमारे स्वागत के लिए फूलों की जगह बर्फ बिछा दी है। दोनों तरफ पेड़ों से सजी संकरी सड़क पर चलना बेहद खूबसूरत लग रहा था। अच्छी बात ये थी कि गुलमर्ग की तुलना में युसमर्ग बहुत कम लोग आते हैं इसलिए हमें भीड़ नहीं मिलने वाली थी। हम खुश थे लेकिन हमसे ज्यादा खुश वो दो लोग थे जिनसे हम युसमर्ग में मिलने वाले थे। आमिर ने हमारे लिए उत्सव जैसी तैयारी कर रखी थी। ये दो लोग आमिर के दोस्त थे। युसमर्ग में हम इन्हीं के घर में ठहरने वाले थे।

रास्ता तो खूबसूरत था है लेकिन युसमर्ग उससे कहीं ज्यादा सुंदर था। चारों तरफ बर्फ ही बर्फ थी जो हमारे जूतों की खूब परीक्षा ले रही थी। मुझे याद है युसमर्ग में ज्यादातर घर हरे रंग के थे। इसकी वजह तो मुझे नहीं याद है लेकिन युसमर्ग जैसा भी था बेहद खूबसूरत था। युसमर्ग में हमारे पास करने के लिए दो चीजें थीं। या तो हम दूतगंगा नदी देखने जा सकते थे या निलनाग तक ट्रेक कर सकते थे। दूतगंगा का नजारा बहुत सुंदर था। ठंड की वजह से नदी का पानी लगभग जम गया था लेकिन बीच-बीच में कहीं से हमे कलकल बहते पानी की आवाज भी सुनाई दे रही थी। नदी के दोनों तरफ बड़े-बड़े पत्थर थे जिनपर बर्फ ने कब्जा कर लिया था। कुछ देर दूतगंगा में रुकने के बाद हम वापस श्रीनगर के लिए निकल पड़े।

श्रीनगर से अरु घाटी और अहरबल झरना

अगर आप सोच रहे हैं कि हम युसमर्ग से उसी दिन वापस क्यों आ गए तो उसकी वजह जान लेनी चाहिए। श्रीनगर में अगली सुबह हमने एक बहुत ही खास जगह के लिए रिजर्व कर रखी थी। आज हमें ख़नक़ाह-ऐ-मौला और जामा मस्जिद जाना था। अगर आप श्रीनगर में हैं और आपने इन दोनों जगहों को नहीं देखा तो यकीन मानिए आपकी श्रीनगर की यात्रा अधूरी रह जाएगी। हरे रंग में लिपटा ख़नक़ाह-ऐ-मौला मस्जिद शानदार जगह है। इस जगह की खास बात है कि यहाँ आपको ढेर सारे कबूतर देखने को मिलेंगे। शायद ख़नक़ाह-ऐ-मौला में आम लोगों और टूरिस्टों को जाने की अनुमति नहीं है। लेकिन अगर आप किसी लोकल इंसान के साथ हैं तो शायद आपको अंदर जाने मिल जाएगा। अंदर का नजारा भी बाकी सबकी तरह बेहद सुंदर था। श्रीनगर का जामा मस्जिद दिल्ली वाले से एकदम अलग था। दिल्ली के जामा मस्जिद में घुसते ही आपको बड़ी खाली जगह दिखाई देती है। यहाँ ऐसा कुछ नहीं था। ऊँची खिड़कियों से आती हुई मखमली धूप जमीन पर बिछे कालीन के कुछ हिस्सों पर स्वर्णिम छटा बिखेर रही थी। मस्जिद के शालीन माहौल में कुछ अलग तरह की शांति थी।

मस्जिद से निकलने के बाद अब हमें अरु घाटी की तरफ जाना था। अरु घाटी जाने का हमारा मुख्य कारण था कि हमें अहरबल झरना देखना था। श्रीनगर से अहरबल जाने के लिए हमें पहलगाम से होकर निकलना था। हम खुश इसलिए थे क्योंकि चाहे चलती गाड़ी से ही सही हमें पहलगाम में होने का थोड़ा एहसास मिलने वाला था। पहलगाम से अहरबल जाने वाले रास्ते पर एक अजीब सी शांति थी। ऐसा सचमुच था या सिर्फ मुझे ऐसा लग रहा था ये नहीं पता। मैंने गाड़ी की आगे वाली सीट पकड़ रखी थी इसलिए मैं अपने ख्यालों में डूबी हुई थी। रास्ते के दोनों तरफ बर्फ से ढके लंबे पेड़ थे। लेकिन पेड़ों पर पत्तियाँ नदारद थीं। शायद कश्मीर की ठंड ने इन्सानों के साथ-साथ प्रकृति पर भी काबू पा लिया था।

पहलगाम की एक बात मुझे बहुत अच्छी लगी। हम जिन हिस्सों से निकल रहे थे वहाँ कुछ स्कूल भी थे और इस इलाके में बच्चों की खनक साफ सुनाई दे रही थी। सच कहते है बच्चों के होने से हर मायूस पड़ी चीज जी उठती है। पहलगाम में भी ऐसा ही था। बर्फ से ढके लैंडस्केप के बीच बहता अहरबल झरना बहुत सुंदर लग रहा था। ये झरना वेशु नदी पर बना हुआ है। पीर पंजाल के पहाड़ों की घने देवदार पेड़ों से भरी घाटी में 25 मीटर की ऊँचाई से गिरता हुआ ये झरना देखने में बेहद खूबसूरत लग रहा था। ये झरना बहुत ऊँचा नहीं था लेकिन इसमें गिरते हुए पानी की मात्रा बहुत ज्यादा थी। जिसकी वजह से ये बेहद मोहक लग रहा था।

आ अब लौट चलें

इतना सब कुछ देखने और महसूस करने के बाद अब हमें वापस जाना था। हमारी श्रीनगर से वापसी की फ्लाइट थी इसलिए आमिर का साथ आखिर तक मिलने वाला था। आमिर की अम्मी ने हमारे लिए खाना भी पैक कर दिया था। हमने उजैर को बाय कहा और एयरपोर्ट के लिए निकल गए। वो सड़कें जो कुछ दिन पहले तक खाली किताब जैसी थीं, आज हमारे कश्मीर के किस्सों से भर चुकीं थीं। किसी भी जगह को अलविदा कहना हमेशा मुश्किल होता है। लेकिन अगर आप उस जगह पर हों जिसे धरती का स्वर्ग कहा जाता है तो जाना और भी दर्द भरा होता है। जाना हिंदी की सबसे खौफनाक क्रिया होती है। इसका मतलब अब समझ आ रहा था। लेकिन आज जब कश्मीर में बिताए उन दिनों के बारे में सोचती हूँ तो अलग खुशी होती है। बकेट लिस्ट का एक प्वॉइंट पूरा होने की खुशी से भी ज्यादा वाली खुशी मुझे कश्मीर आकर मिली।

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