अगर कहीं स्वर्ग है तो, भारत- तिब्बत की सीमा पर बसे चितकुल नाम के गाँव में ही है | यूँ तो मैं किन्नौर घूमते वक़्त चितकुल के इस हिमालयी गाँव में आया था, मगर तब भी मुझे पता था कि मैं एक बार और यहाँ घूमने ज़रूर आऊँगा |
तो इस बार मैं पब्लिक ट्रांसपोर्ट के भरोसे कम बजट में चितकुल घूमने निकल गया |
रूट
नई दिल्ली – रामपुर बुशहर – करछम – सांगला – चितकुल
रामपुर बुशहर
शाम साढ़े सात बजे कश्मीरी गेट दिल्ली से बस में बैठो और अगले दिन सुबह दस बजे आप हिमाचल के शिमला जिले में बसे छोटे से कस्बे रामपुर शहर में पहुँच जाएँगे | अगर शिमला और नरकंडा घूमना चाहते हो तो इस कस्बे में रुक सकते हो, मगर इससे आपकी ट्रिप में 1-2 दिन और बढ़ सकते हैं | शहर के बस स्टैंड पर मैंने खीरे और समोसों का हल्का-फुल्का नाश्ता कर लिए | फिर रिकांग पिओ जाने वाली बस पकड़ ली |
करछम
रामपुर से करछम तीन घंटे का रास्ता है | करछम से सड़क दो रास्तों में बँट जाती है | एक रास्ता रिकांग पिओ जाता है और दूसरा सांगला गाँव | अगर कल्पा और नाको जैसे किन्नौर के हिस्से नहीं घूमने तो करछम उतर जाओ और यहाँ से सांगला जाने वाली बस पकड़ लो |
सांगला
करछम से सांगला 1 घंटे के रास्ता है, मगर नज़ारे ऐसे हैं कि आपका मन करेगा कि रास्ता कभी ख़त्म ही ना हो | इस रास्ते पर लिफ्ट लेकर भी आ सकते हो, मगर लिफ्ट के भरोसे ही मत रहना | इस सड़क पर आपको ज़्यादा साधन दिखेंगे नहीं |
अगस्त 2018 में सांगला से चितकुल जाने वाली सड़क भूस्खलन यानी लैंड स्लाइड के कारण बंद हो गयी थी | सिर्फ़ छोटे साधन जा पा रहे थे | बसों में बैठ कर किन्नौर घूमने आए बड़े-बड़े ग्रुप्स को आस-पास के गाँवों में कई दिनों तक रुकना पड़ा | जहाँ सड़क बंद थी, वहाँ मेरी बस ने मुझे उतार दिया | बंद सड़क को पार करके मैं काफ़ी दूर पैदल चला, फिर मुझे लिफ्ट मिल गयी |
इस घटना से मुझे एक सीख मिली कि हिमाचल घूमने के लिए सही वक़्त निकलना ही समझदारी है | बारिश का मौसम हिमाचल में घूमने के लिए उतना अच्छा नहीं है, मगर मार्च से जून और सितंबर से दिसंबर के महीने सही हैं |
चितकुल
हिमाचल की हिचकोले खाती रोडवेज़ बसों में बैठकर 600 कि.मी. दूर आने की थकान चितकुल में पैर रखते ही दूर हो गयी | भेड़ों के पीछे भागते बच्चे चितकुल के लकड़ी के घरों के आस-पास ही खेल रहे थे | पहाड़ों से बहते बर्फ़ीले ठंडे पानी की धारा सफेद दूध जैसी लग रही थी | थोड़ा सिर उठा कर देखो तो लकड़ी के घरों के पीछे हिमालय के पहाड़ इतने पास लग रहे थे, कि दौड़ कर चढ़ने का मन कर जाए | तिब्बत की सीमा के पास बसा होने से चितकुल में इंडो-तिबेतियन बॉर्डर पुलिस की कड़ी निगरानी रहती है |
चितकुल के लोग
चितकुल के रहने वाले लोगों को शहरी भाग-दौड़ के बारे में कुछ नहीं पता | जानवर पालने, खेती करने और पर्यटन से जो भी कुछ आमदनी हो जाती है, उसी में खुश रहते हैं | काफ़ी धार्मिक किस्म के लोग हैं, जो आज भी अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं | जल्दी से शहरी लोगों से घुल-मिल कर बात करना नहीं जानते | शर्मीले हैं तो फोटो लेने से पहले एक बार पूछ लेना |
खाने में यहाँ कुछ ऐसी ख़ास डिशेज़ नहीं मिलती, मगर जो भी मिलता है उससे पेट भर जाता है | चितकुल में रुकना चाहते हो तो यहाँ सही दामों पर होमस्टे और होस्टल मिल जाएँगे | पास के गाँव रक्चम में भी काफ़ी ओप्शन हैं | गाँव बिल्कुल साफ-सुथरा है, तो उम्मीद है कि आप भी इसे साफ रखने में मादक करेंगे और कचरा यूँ ही हर कहीं नहीं फेकेंगे | हिमाचल रोडवेज़, सादा खाने और सस्ते होमस्टे में रुक सकते हो तो इस चार-पाँच दिन के ट्रिप का खर्चा ₹3000 के आस-पास ही आएगा |
हिमाचल की बातें पढ़कर आपको भी कोई किस्सा याद आ गया ? शरमाइए मत, लिख दीजिए |
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