दिल्ली में बरसात का मौसम में घूमे नहीं तो क्या किए! बात पिछले साल के मॉनसून की शुरुआत की है। मैं कनॉट प्लेस में 'चाय पॉइन्ट' में बैठा चाय पीते हुए खिड़की से बाहर, सुहाना मौसम और हल्की-हल्की बारिश की बूंदों को देखता हुआ सोच ही रहा था कि ज़िन्दगी में अब क्या किया जाए। जैसे ही मुझे लगा कि बरसात शुरू होने वाली है मैं वैसे ही फट से चाय ख़त्म कर जल्दी से घर के लिए निकला। पर मुझे क्या पता था यह घर लौटने का सफ़र कुछ और ही मोड़ ले लेगा। जैसे ही मैं बाहर निकलकर बस पकड़ने के लिए सुपर बाज़ार के बस टॉप पर पहुँचा तो मुझे बस का इंतज़ार करते हुए घण्टा भर हो गया लेकिन बस आने का नाम ही नहीं ले रही थी और साथ ही अब बरसात भी शुरू हो गई थी।
अब मैंने सोचा कि थोड़ा आगे चलकर पालिका से बस पकड़ी जाए। मेरी यह आदत कॉलेज के दिनों में लगी थी। जब भी अधिक देर तक बस नहीं मिलती है तो कुछ बस स्टॉप्स का सफ़र पैदल ही तय किया करता हूॅं। और ऐसे आदतन मैं पालिका के लिए रवाना हो गया। पालिका पहुँचते-पहुँचते बरसात बहुत तेज़ हो गई तो मैंने सोचा क्यों न पालिका बाज़ार ही घूम लिया जाए। पालिका में मैंने निजी तौर पर कुछ खरीदा तो नहीं पर विंडो शॉपिंग ख़ूब की। कुछ समय पालिका में बिताने के बाद मैं बाहर आया तो देखा कि बारिश कुछ कम हो गई है पर जगह-जगह पर पानी भरा हुआ है। अब मेरा मन हुआ क्यों न एक बार जनपथ मार्किट भी घूम लिया जाए। मन में विचार आया और मैं सीधा एक मार्केट से निकल दूसरी मार्केट पहुँच गया। जनपथ में भी विंडो शॉपिंग के अलावा मैंने इस वक्त कुछ ख़ास नहीं किया। अब बारिश फ़िर तेज़ हो गई और अबतक मैं बारिश से ख़ुदको बचता-बचाता फिर रहा था। पर अब मैं बारिश में भीगने का पूरा का पूरा मूड बना चुका था लेकिन ऐसे रास्ते में खड़े-खड़े भीगने में भी कोई मज़ा है क्या?
यह सब सोचते हुए जब जनपथ से नज़दीकी बस स्टॉप की तरफ़ आ रहा था तभी मेरी नज़र ‘जंतर-मंतर’ पर पड़ी। अब भीगने और घूमने के लिए जंतर-मंतर से अच्छी जगह और कौनसी हो सकती है? फ़िर मैं टिकट ले कर जा पहुँचा जंतर-मंतर। अन्दर कुछ गिने-चुने लोग ही थे जो मेरी तरह मौसम का भरपूर मज़ा ले रहे थे। ऐसे में मस्ती करने के बाद मुझे काफ़ी भूख लगने लगी। आस-पास बारिश की वजह से कोई दुकान नहीं लगी। अब इस भूख का क्या किया जाए? कुछ समझ में न आने पर मेरी नज़र जंतर-मंतर के बाहर खड़े एक सरदारजी पर गई। उनको देखते ही गुरुद्वारा श्री बंगला साहिब की याद आ गई।
फ़िर अपनी भूख को शान्त करने के लिए मैं बंगला साहिब के लिए रवाना हो गया। ज़्यादा दूर न होने के कारण मैं पैदल ही गुरुद्वारा बंगला साहिब चल दिया। पैदल जाने पर कुछ वक्त लगा और पहुँचते-पहुँचते भूख भी काफ़ी बढ़ चुकी थी। अब जल्दी से दर्शन कर मैं लंगर खाने के लिए पहुँच गया। चावल, दाल, रोटी और पनीर का स्वादिष्ट भोजन खा कर मेरी भूख शान्त हो गई। और तब तक बारिश बिल्कुल रुक गई थी जिस वजह से मुझे बंगला साहिब के बाहर से ही घर के लिए बस मिली। मुझे लगा कि अब जाकर बस मिली है तो मेरा आज का सफ़र यही ख़त्म होता है। पर मुझे क्या ही पता था अभी तो और बाक़ी है।
बस चलते-चलते इण्डिया गेट के पास जाकर बन्द पड़ गई। अब इसे मेरी किस्मत कहें या कोई इत्तेफ़ाक, पर सफ़र में मुझे इण्डियन आर्मी को श्रद्धांजलि देने का मौका मिला। अब बस ख़राब हो गई और मैं बाकी पैसेंजर की तरह रास्ते में फॅंस गया। मैं रास्ते में फॅंसना नहीं चाहता था। इसलिए मैं पैदल ही अगले बस स्टॉप की तरफ़ चल दिया। चलते-चलते मुझे वॉर मेमोरियल दिख गया। अब मेरे पास समय की कोई कमी नहीं थी और वॉर मेमोरियल घुमा भी नहीं था। तो मेरी यात्रा एक और बार शुरू हुई और मुझे वॉर मेमोरियल के अन्दर पहुँचा दिया। वॉर मेमोरियल में मेन शहीद हुए जवानों को देख दिल में देश और इण्डियन आर्मी के लिए इज़्ज़त और बढ़ गई। वॉर मेमोरियल में कभी न बुझने वाली अमर ज्योति को देख पाता नहीं पर दिल में देश के लिए प्रेम की भावना और बढ़ गई।
अब इसी भावना के चलते मैं इण्डिया गेट भी पहुँच गया। और वहाँ पहुँचते ही मैं इण्डिया गेट को देखते हुए बस देश को आज़ादी दिलाने वाले बोस, गाॅंधी, भगत सिंह और सभी देशभक्तों के बारे में सोचते हुए अपने महान देश भारत पर गर्व कर रहा था। और इण्डिया गेट पर अपने देश के उज्ज्वल भविष्य की कामना कर रहा था। अब मैं भारत के बारे में और जानने की इच्छा होने लगी अब इस इच्छा की पूर्ति करने के लिए मैं खान मार्किट में 1951 से स्थापित ‘फ़क़ीर चंद बुक स्टोर’ के लिए चल दिया। यह बुक स्टोर इस बरसात की आख़िरी मंज़िल साबित हुई। किताबे पढ़ते-पढ़ते कब शाम हुई और शाम से रात पता ही नहीं चला।