शेरपा लोग हमारे बैग लेकर आगे बढ़ गए और हम भी बिना खाना खाए ही उस परिवार को अलविदा कह कर आगे बढ़े। सबसे पहले हमे उसी उपर लेंडस्लाइड वाली जगह तक चढ़ कर पहुंचना था।मेरे परिवार के हम 4 लोगों के अलावा दोनों शेरपा , टैक्सी ड्राइवर और उस परिवार से एक सदस्य ,टोटल 8 लोग थे, जो रिस्क लेकर इस गांव से निकलने को आगे बढ़े।कुछ देर में चढ़ाई करके जैसे ही हम उस लैंडस्लाइड वाली जगह पहुंचे ,तो वो खतरनाक मंजर याद आ गया जब इसी जगह पर हमारे आगे ही पहाड़ से पत्थरों की बारिश होना शुरू हुई थी। यहां भारी तबाही मची हुई थी ,मंदिर पूरा टूट कर नीचे खाई में गिरा हुआ था। सड़क दूर दूर तक मलबे ,बड़े बड़े पेड़ों,पत्थरों से भरी हुई थी। हमे तो केवल इस मलबे वाले इलाके को पार कर सड़क के उस पार पहुंचना था। इसके लिए अब हमे मलबे वाले इलाके से नीचे खाई की ओर पैदल उतरना था वो भी एक दम सीधे उतार पर से ,रास्ता बना कर उतरना था फिर नीचे बह रही नदी पर बने पुल को क्रॉस कर सामने वाले पहाड़ पर पहुंचना था।वहां पर सड़क के समानांतर कुछ किलोमीटर चल कर ,फिर वापस नदी क्रॉस करके इधर वाली सड़क पर पहुंचना था।
मलबे वाली जगह से नीचे उतरना आसान ना था, क्योंकि मलबा नीचे खाई तक गया हुआ था और पूरे पहाड़ पर नीचे तक मलबा फैला था जिसपर से हम फिसल कर नीचे भी गिर सकते थे। शेरपाओं ने मम्मी को नीचे उतारने का जिम्मा लिया।
यह उतार बहुत ही खतरनाक और फिसलन भरा था।हमे करीब 1000 फीट नीचे उतरना था। नीचे उतरते समय अगर उपर से फिर लैंडस्लाइड हो जाए तो हम सबका का कोई पता नहीं मिलना था।ये दो रिस्क थी,इसीलिए हमें जल्दी जल्दी कदम आगे रखने थे।जगह जगह टूटे हुए मंदिर के कुछ रंग बिरंगे अवशेष पड़े थे।कुछ ही देर में फिसलते,बचते हम नीचे पूल तक पहुंच गए और जैसे ही पूल क्रॉस करके दुसरे पहाड़ पर पहुंचे तब जाकर राहत की सांस ली।
अब शुरू हुआ सेकंड फेज। इस पहाड़ पर उपर चढ़ाई कर ,घने जंगल ,घास फूस और चट्टानों पर से रास्ता खुद बना कर हमे आगे बढ़ना था।हमने चढ़ाई चालू की।अभी इधर आए करीब 15 मिनिट ही हुए थे कि अचानक उसी जगह से एक धमाके की आवाज आई। शेरपा लोग कुछ अलर्ट होके ,सबको पीछे छोड़ कर आगे भागे। हमारे दोनो तरफ पेड़ होने से हम देख नही पा रहे थे कि सामने क्या हो रहा हैं।जैसे ही एक सही जगह हम पहुंचे देखा तो सामने वाला पहाड़ से पहले से भी ज्यादा खतरनाक तरीके से पत्थरों की नदिया बह रही थी।शेरपा आगे भागे क्योंकि उन्हें सीटिया बजानी थी जिस से अगर नीचे मलबे वाले इलाके को कोई पार कर रहा हो तो वो बच कर भागे।
पहाड़ों पर यही एक तरीका होता हैं लैंडस्लाइड से अलर्ट करने का।अगर कभी आप पहाड़ों पर जाओ और दूसरी और से लगातार सीटिया बजती सुनाई दे तो अलर्ट हो जाओ।
हमने फिर इस लैंडस्लाइड को भी केमरे में कैद किया ।कुछ ही मिनट में हर तरफ धूल ही धूल उड़ रही थी।सामने क्या हो रहा है यह दिखना कम हो गया था। अब हमे याद आया कि बढ़िया किया जो उस परिवार के साथ खाना खाने को नहीं रुके । अगर 10 मिनिट भी ज्यादा रुक जाते उधर तो हम इस लैंडस्लाइड की चपेट में आ जाते ,मलबे से उतरते वक्त और भाग भी नही पाते। सभी लोग एक जगह रुक और इस चीज पर बात करके भगवान को धन्यवाद दिया और बाते होने लगी कि हम आठों में से ही किसी के अच्छे कर्म आड़े आ गए आज भी। हम दो बार लेंडस्लाइड से बचे थे दो दिन में।पहली बार केवल कुछ सेकंड के अंतराल से और दूसरी बार ,केवल 10 से 15 मिनट के अंतराल से हम बचे।
खैर हम इस पार सेफ थे ,लेकिन बार बार इधर भी उपर देख रहे थे कि कहीं इधर कुछ ना हो जाएं।
यहां भी कई जगह फिसलन थी।कहीं उतार तो कही चढ़ाव था। कही चट्टानों पर चढ़कर निकलना था तो कही लम्बी घासों के उपर पैर रखकर।
उस दिन करीब 2 से 3 घंटे के ट्रेक में,हमने उस सामने वाली जगह 4 से 5 बार लैंडस्लाइड देख ली। कई जगह गिरते गिरते भी बचे।मेरी मम्मी भी इतना सब ट्रेक कर लेगी यह अंदाजा नहीं था।लेकिन जेसे ही एक प्वाइंट पर आकर हमे उस पार ,"बागेपुल" गांव दिखा ,हमारी खुशी की सीमा नही रही।अब तो कदम तेजी से आगे बढ़ने लगे और सीधे ही कुछ घरों के पीछे से होते ही बागेपुल पहुंच गए।
वहां पहुंच कर ,शेरपा भाइयों को उनका मेहनतनामा दिया।हमारे टैक्सी ड्राइवर ने हम चारो को रामपुर तक छोड़ने के लिए एक टैक्सी कर दी। उस परिवार से को भैया हमारे साथ थे,टैक्सी ड्राइवर उनके साथ वही रह गया।क्योंकि टैक्सी तो अभी उसी गांव में फंसी थी।ड्राइवर को पेमेंट 5000रूपए हमने दिए हुए थे।
रामपुर पहुंच कर मैंने अपनी बहन और मम्मी के लिए स्पीति यात्रा के लिए एक कैब कर दी।मुझे और काजल को 3 दिन इन्हीं इलाके को एक्सप्लोर कर,कल्पा एक कार्यक्रम में पहुंचना था।फिर कल्पा में 2 रात रुक , हमे किन्नौर कैलाश यात्रा पर जाना था। जब तक उधर स्पीति यात्रा खत्म हुई ,हम दोनो इधर रामपुर ,सराहन , श्रायीकोटि माता , रिकोंगपियो आदि जगहों को घूमे।
और हां, उस गांव का नाम था - छिल्लर । उस परिवार से हम अच्छे संपर्क में हैं। हमारी टैक्सी भी वहा से 5 दिन बाद निकल पाई। वो भी ड्राइवर ने रिस्क लेकर मलबे पर से निकाल ली।लेकिन जेसे ही ड्राइवर ने गाड़ी निकाली ,कुछ देर बाद फिर भू स्खलन से वो रास्ता वापस बंद हो गया।
आगे की यात्राएं भी हमारी बहुत बढ़िया रही। श्राई कोटि माता तक पहुंचना बहुत रोमांचक रहा।एप्पल के बगीचे , हिमाचल में खुद दाल बाटी बनाकर खाना ,कल्पा में कार्यक्रम और गाने गाना ,चंडीगढ़-अमृतसर घूमना ,कई फेसबुक दोस्तों से मुलाकात जैसी कई चीजों ने आगे की यात्रा को भी यादगार बना दिया।जिनके बारे में आर्टिकल्स जल्द ही आएंगे।
-Rishabh Bharawa