सह ली सारी यातना, कर्त्तव्य सर्वोपरि रखा,
त्याग, शील, संकल्प को जिस तरह जीवित रखा
बोलो कहाँ तक टिक सकोगे, यदि राम सा संघर्ष हो
यदि राम सा संघर्ष हो!
ऐसा क्या है राम नाम के इस चरित्र में, जो भारतवासी ने इसे पिछले 3000 सालों से याद रखा हुआ है।
आज भी राम की याद में दशहरा मनाया जाता है, टीवी धारावाहिक बनते हैं, मंच पर रामलीला दिखाई जाती है, घरों और दुकानों में तस्वीरें लगाई जाती है, बच्चों के नाम रखे जाते हैं।

राम के किरदार को समझने के लिए मैनें उत्तर भारत की उन जगहों पर जाना शुरू किया, जिनके बारे में वाल्मीकि रामायण में लिखा गया है। आइये आज आपको भी लिए चलता हूँ :
अयोध्या
जयपुर हवाई अड्डे से लखनऊ हवाई अड्डे तक कुछ एक घंटे के सफर के बाद राम जन्म भूमि अयोध्या सिर्फ 120 कि.मी. और दूर थी। इसके लिए टैक्सी ली जा सकती है। अयोध्या में रेलवे स्टेशन भी है और उत्तर प्रदेश में किसी भी जगह से यहाँ तक खूब बसें भी चलती हैं।
त्रेता के ठाकुर
कहते हैं कि वनवास से लौटकर राम ने यहाँ अश्वमेध यज्ञ किया था। प्रतापी राजा अपने राज्य को बढ़ाने और सुसंचालन के लिए अश्वमेध यज्ञ करते थे।
शृंगवरपुरम और प्रयाग
अयोध्या से 170 कि.मी. दूर श्रृंगवेरपुर धाम जाने के लिए टैक्सी ले ली। 14 साल के वनवास के लिए जाते हुए श्रीराम के रास्ते में शृंगवर आया। ये मछुआरे, मांझी (जिन्हें निषाद कहा जाता था) उनकी नगरी थी। यहाँ गंगा पार करने के लिए राम ने केवट नाविक से सहायता ली थी।
मगर केवट ने राम को यूँ ही नाव में नहीं बैठा लिया। नाव में कदम रखने से पहले केवट की शर्त ये थी कि वो अपने हाथों से राम के पैर धोएगा।
हिन्दू दंतकथाओं के अनुसार ये केवट किसी ज़माने में समुद्र में रहने वाला कछुआ हुआ करता था, जिसने भगवान विष्णु के पैर के अंगूठे को छूने की कोशिश की थी, मगर छू न पाया था। कई जन्म लेने के बाद जब उसने मनुष्य जन्म लिया और केवट कहलाया तो भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम के पैर धोकर अपनी मनोकामना पूरी की।
आज भी श्रृंगवेरपुर में गंगा नदी के किनारे राम का मंदिर बना है, जिसे रामचुरा भी कहते हैं।
श्रृंगवेरपुर से सिर्फ 45 कि.मी. दूर हिन्दुओं का ख़ास तीर्थ प्रयागराज है, जहाँ गंगा-यमुना-सरस्वती नदी का संगम होता है। भारत में चार तीर्थ हैं जहाँ हर चार साल में कुम्भ मेला आयोजित होता है: हरिद्वार में गंगा के किनारे, उज्जैन में शिप्रा के किनारे, नाशिक में गोदावरी के किनारे और प्रयाग राज में संगम स्थल पर।
चित्रकूट, मध्यप्रदेश
अपने वनवास के कुछ साल श्रीराम यहाँ रहे। चित्रकूट में ही भरत ने राम से मिलकर उन्हें अयोध्या आने का अनुग्रह किया था। जल्द ही राम को चित्रकूट छोड़ना पड़ा क्योंकि अयोध्या के करीब होने के कारण यहाँ अयोध्या वासियों का जमघट लगा रहता था। इसलिए वनवास की शर्त के विरुद्ध अयोध्या से दूर होते हुए भी राम अयोध्या से दूर नहीं जा पा रहे थे।

विंध्य पर्वतों से घिरे चित्रकूट पर प्रकृति की ख़ास कृपा रहती है। पहाड़ों से गिरते झरने, बहती मंदाकिनी नदी और घने जंगलों वाले चित्रकूट में कुछ दिन बिताने में काफी सुकून मिला। अयोध्या से चित्रकूट आने में साढ़े तीन घंटे लगे। 130 कि.मी. का रास्ता टैक्सी में बड़े आराम से कटा।
कामदगिरि
इस पर्वत की परिक्रमा करने पूरे भारत से श्रद्धालु आते हैं, क्योंकि इस पर्वत को ही राम का रूप मान लिया गया है। जंगलों से घिरे इस पर्वत की तलहटी पर कई मंदिर बने हैं और 5 कि.मी. की परिक्रमा के रास्ते में खाने-पीने और पूजन सामग्री की खूब दुकानें और राममुहल्ला , मुखारविन्दु , साक्षी गोपाल , भारत-मिलाप (चरण-पादुका ) व पीली कोठी जैसे मंदिर आते हैं।
राम घाट
मंदाकिनी नदी के किनारे बने इस पावन घाट पर श्री राम, लक्ष्मण और जानकी (सीता) स्नान करते थे। घाट पर रोज़ आरती होती है। यहीं भरत मंदिर भी बना है। कहते हैं कि इसी घाट पर कवि तुलसीदास को राम दर्शन हुए थे।
हनुमान धारा
चित्रकूट से 8 कि.मी. दूर सीतापुर में पहाड़ों से एक झरना बहता है। इस झरने का पानी पास बनी हनुमान की मूर्ती को छूता हुआ नीच बने कुंड में गिरता है। कहते हैं कि लंका को आग लगाने के बाद हनुमान ने इसी झरने के पानी से पूँछ में लगी आग बुझाई थी।
ये जगहें भी देखीं: राघव झरना, शबरी झरना, गुप्त गोदावरी, दशरथ घाट, पर्णकुटी
उज्जैन
दशरथ के निधन के बाद राम ने उज्जैन में शिप्रा नदी के सिद्धवट घाट पर पिंड दान और श्राद्ध किया था। यहाँ कुम्भ मेला भी लगता है। कहते हैं कि शिव-शक्ति की संतान कार्तिकेय का मुंडन भी यहीं हुआ था। इसीलिए यहाँ सिद्धवट महादेव का मंदिर भी है।
चित्रकूट से 670 कि.मी. दूर उज्जैन आने के लिए रेल सबसे बढ़िया साधन है। एडवांस में बुकिंग करवा कर रखता हूँ, तो आराम से एसी कोच में बैठ कर आया।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
भारत में 12 ज्योतिर्लिंग हैं, जिनमें से एक महाकालेश्वर शिप्रा नदी के तट पर स्थापित है। ये ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के रूप हैं, जिन्हें स्वयंभू के नाम से भी जाना जाता है। स्वयंभू का अर्थ है जो स्वयं प्रकट हुआ हो। इन ज्योतिर्लिंगों की शक्ति इनमें आपमें निहित होती है, जबकि बाकी शिवलिंगों को मंत्र शक्ति की मदद से स्थापित किया जाता है।
राजा भृर्तहरि गुफा
किसी समय में उज्जैन शहर के राजा भर्तृहरि अपनी पत्नी पिंगला की मौत से शोकाकुल होकर राज-पाट अपने छोटे भाई विक्रमादित्य के सुपुर्द करके नाथ पंत के संत हो गए। अमरत्व का फल चखे भर्तृहरि ने इस गुफा में समाधि ली थी।
काल भैरव मंदिर
शिव के विनाशकारी स्वरुप काल भैरव की पूजा तांत्रिक कई सदियों से करते आये हैं। तामसिक प्रवृति की इस देव की आराधना करने आने वाले भक्त शराब ज़रूर लाते हैं। इसीलिए इस मंदिर के बाहर दुकानों में फूल मालाओं के साथ अद्धी-पौव्वी शराब की बोतलें भी बिकती है। हैरानी की बात कि यहाँ कल भैरव की मूर्ती शराब पीती भी है।
पंचवटी, नाशिक
अपने राज्य से दूर, अपनी सेना से दूर, अपने लोगों से कोसों दूर दो भाई, हाथ में तीर-कमान लिए अपनी कुटिया में कुछ ढूँढ रहे हैं। बड़े की पत्नी और छोटे की भाभी सीता का कोई अता-पता नहीं है। क्या कोई जानवर खा गया, या कहीं जंगल में भटक गयी। कहीं कोई उठा कर तो नहीं ले गया ?
तपोवन
ये वही जगह है, जहाँ रावण की बहन सूर्पणखा राम को देख कर मोहित हो गयी थी, और लक्ष्मण के हाथों अपनी नाक कटवा बैठी। पास ही में बहती गोदावरी नदी के सहारे लक्षमण मंदिर है।
सीता गुफा
वनवास के दौरान तप करने के लिए सीता इस गुफा में जाया करती थी। गुफा का मुहाना छोटा सा है, और अंदर जाते हुए छत और नीचे होती रहती है। कुछ ही मिनट में गुफा के अंदर जाकर बाहर भी आ जाएँगे।
राम कुंड
कहते हैं श्रीराम इस कुंड में नहाते थे। यहाँ श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है, और इस जगह को तीर्थ की तरह पूजा जाता है। लोग यहाँ डुबकी लगाने ही नहीं, बल्कि अपने परिजनों की अस्थि विसर्जन के लिए भी आते हैं। कहते हैं, यहाँ अस्थियाँ डालते ही पानी में घुल जाती हैं। भारत की जानी-मानी हस्तियों जैसे पंडित नेहरू और इंदिरा गाँधी की अस्थियां भी यहीं विसर्जित की गयी थी।
इसे भी अवश्य पढ़ें: खुसरो बाग
हमारी हिन्दू संस्कृति में कई ऐसी कहानियाँ और किरदार हैं, जिनसे हम काफी कुछ सीख सकते हैं। अगर आप घुमते-फिरते हैं , तो क्यों ना ऐसी जगहों पर जाया जाए, जिनका ज़िक्र इन कहानियों में मिलता है। फिर कहानियों से रस की बारिश होने लगेगी।
क्या आप भी कभी ऐसी यात्रा पर गए हैं? यहाँ क्लिक करें और अपना अनुभव Tripoto मुसाफिरों के साथ बाँटें।
("बोलो कहाँ तक टिक सकोगे ?" नाम की यह सुन्दर सी कविता कवि संदीप द्विवेदी ने रची है। )